"चुनावी दंगल जीतने की साईंस समय के साथ
विकसित होती है
डॉ शोभा
भारद्वाज
दिल्ली में चुनाव प्रचार का दौर थम गया अब मत पत्र पेटियों में पड़ने बाकी है इस चुनाव के मुख्यतया तीन
दिग्गज हैं आप पार्टीं के मुख्यमंत्री पद का चेहरा केजरीवाल पांच वर्ष का सत्ता
सुख ले चुके हैं |बीस वर्ष से दिल्ली विधान सभा से बाहर भाजपा ,तीसरा कांग्रेस
उनकी स्वर्गीय शीला दीक्षित जी दिल्ली की 15
वर्ष तक मुख्यमंत्री रही उनके काम हार गये केजरी वाल जी के सत्तर वादें ,मुफ्त बिजली
पानी का का वादा जीत गया | जीतने की कला में जनता के सेवक बहुत पारंगत रहे हैं उम्मीदवार
के पक्ष में लहर बनाई जाती जितनी लहर मजबूत प्रभावी उतना ही जीतने के आसार बढ़ जाते
थे |समय के साथ उम्मीदवारों के प्रचार तन्त्र उन्नत हो रहे हैं | पहले भी फ़िल्मी
गानों पर प्रचार एवं नारे गढ़े जाते थे इंदिरा जी के जमाने में वह कहते हैं “इंदिरा
हटाओ मैं कहती हूँ गरीबी हटाओ” आज कल
भाजपा का नारा “मोदी है तो सब मुमकिन है” “अच्छे होंगे पांच साल दिल्ली में तो
केजरी वाल” अब तो वह दिल्ली के बेटे बन गये हैं “दिल्ली को हमने बनाया, दुनिया में इसको नाम दिलाया। अब बुरा हुआ
है इसका हाल, कांग्रेस संग बनाएं इसे खुशहाल" पहले तत्काल कोई कार्यकर्ता नारा गढ़ देता था और हिट बैठता अब एड एजेंसियों को विज्ञापन
का ठेका दिया जाता है नियमित प्रचार एवं कई नारे उछाले जाते हैं कौन सा हिट बैठता
है समय बताता है लोकसभा चुनाव के समय चोकीदार चोर है नारा जनता ने स्वीकार न हीं
किया था |
पहले चुनावों से पहले राजनीतिक दलों की आमने सामनें स्टेज सजती थी उम्मीदवार
सफेद लक झक कपड़े पहन कर कुर्सी नुमा सिंहासन पर बिराजमान होते कार्य कर्ता पूरी
तैयारी से वाद विवाद में भाग लेते थे लोगों का भारी जमावड़ा लगता कुछ लोग सामने
वाले के सवालों का जबाब लिख -लिख कर स्टेज पर पर्चियां भेजते रहते कहीं उनका वक्ता
पिछड़ न जाये हर दल के वक्ता का गला बैठ जाता था तालियाँ बजती बीच-
बीच में नारे लगते थे |
अब भी स्टेज
सजती है ‘अलग-अलग चैनलों में’ जमकर वाद प्रतिवाद होते हैं कुछ चैनल स्टूडियो से
निकल कर सार्वजनिक स्थलों पर मंच जमाते है वक्ता अपने –अपने पक्ष को मजबूती से
रखते हैं कुछ वक्ता अपने पक्ष रखने की पूरी आजादी चाहते हैं लेकिन जब दूसरा पक्ष
बोलता है टोकते हैं ,या अपनी बात पर जोर देते रहते हैं फिर उन बयानों पर चैनलों
में बहस शुरू हो जाती बहस क्या पूरा समर क्षेत्र होता है प्रत्याक्षी इस बात से
खुश होते हैं उनका नकारात्मक ही सही प्रोपगंडा हो रहा है जनता में उनकी पब्लिसिटी एवं
चर्चा चल रही है | निजी आक्षेप लगाना ऐसा शोर मचाना जिससे कई बार चैनल वालों को
अपना कैमरा बंद करना पड़ता है | दोनों के विचार सुनाई नहीं देते घरों में सुनने वाले चैनल बदल लेते हैं | एक
चैनल ने वाद विवाद का अलग ढंग निकाला है सरकार के कामों की प्रशंसा वाले एक तरफ विरोधी
दूसरी तरफ हंगामा होता है एंकर कभी बीच बचाव करते दिखते हैं या विवाद बढ़ाते हैं इसमें जनता से भी प्रश्न पूछे जाते
हैं जनता भी उत्तेजित रहती है हाँ चुनावों
में सरकार के उम्मीदवारों का प्रचार ,विरोधी
पक्ष सरकार की आलोचना कर अपने उम्मीदवार की जोर-शोर से वकालत कर लेते हैं |
एक प्रचलित
दिलचस्प तरीका चैनल अलग-अलग चुनाव क्षेत्रों में जाकर उम्मीदवारों में बहस कराते हैं
जनता से प्रश्न पूछ कर काम का ब्योरा माँगा जाता है वह अपनी शिकायते भी गिनवाते
हैं हर उम्मीदवार अपने कार्यकर्ताओं को तालियाँ पिटवाने के लिए ले कर आते हैं
इसमें हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा| हर उम्मीदवार चाहता है उनके क्षेत्र में चैनल पधारें
चैनलों की टीआरपी बढ़ती है |
कैसे मीडिया और
चैनलों की हेड लाइन बना जा सकता है सत्ता के शीर्ष तक पहुंचने का दावँ खेला जा
सकता है अरविन्द केजरीवाल से सीखें | अरविन्द केजरी वाल अन्ना
आन्दोलन एवं निर्भया कांड की बदौलत सुर्ख़ियों में आये (गुरू जी का चेला शक्कर हो
गया ,जनता आज तक निर्भया के आरोपियों की फांसी का इंतजार कर रही है )|उनकी टीम का
राजनीति पटल पर उदय हुआ आम आदमी ‘ पार्टी के नाम से नये दल का उदय हुआ जिसका चुनाव चिन्ह झाड़ू बना
|जनता को
लोक लुभावन वादे किये गये किसी पर भी हाथ में कागज लेकर ,आरोपों
की झड़ी लगाना, नये ढंग के प्रोपगंडे की शुरुआत हुई आज सभी दल इसी प्रकार की नीति
पर चल रहे हैं , मिडिया
ने भी इस दल को हाथों हाथ लिया उनकी टीआरपी बढ़ने लगी |हर चैनल पर आप के प्रवक्ता जोर
शोर से केवल सरकार में कमियां गिना इल्जाम लगा कर छाने लगे देखते देखते वह भाजपा
और कांग्रेस जैसी पुरानी पार्टियों के बराबर आ गये मिडिया भी उनके प्रोपगंडे का
साधन बना|
चुनाव आयुक्त स्वर्गीय
शेषन ने चुनाव खर्चो पर रोक लगा दी थी |वह चाहते थे चुनाव
धन के बल पर जीतने के बजाय उम्मीदवार की योग्यता आधार बने
पहले पूरा चुनाव
क्षेत्र झंडे बैनरों से भरा रहता था कोई दीवार ऐसी नहीं थी जिसमें पोस्टर के ऊपर
पोस्टर न चढ़ें हों अब झंडे ,पोस्टर ,ढोल वालों का धंधा मंदा पड़ गया है ढोल वालों
की जरूरत पड़ती जब डोर-टू डोर उम्मीदवार या उनके प्रचार के लिए बड़े नेता आते हैं |अब
ई रिक्शा या थ्री व्हीलर हर मोहल्ले में घूमते है चुनाव प्रचार के साथ ढोल की आवाज
एवं नारे भरे टेप चलते है ऐसा लगता है बहुत बड़ी रैली चली आ रही है |
मीडिया नेताओं द्वारा महंगे रोड शो कवर कर लाईव प्रचारित करता हैं
जहाँ प्रत्याशी पर टनों गुलाब और गेंदा के फूलों की वर्षा की जाती है |चुनाव के लिए जब प्रत्याशी
पर्चा भरने आते हैं ऐसा सिद्ध करने की कोशिश की जाती है जैसे बिना लड़े सब चुनाव जीत गयें हैं
| चुनाव
में नेता गणों के भाषण के लिए शानदार ऊंचे स्टेज बनाये जाते हैं बड़े –बड़ें नेता
चुनावी भाषण देते हैं उन स्टेजों पर एक दूसरों के बारे में कुछ भी कहा जाता जैसे देश
के प्रधान मंत्री के लिये बेराजगारी पर कहा, छह सात महीने के बाद युवा पीठ पर डंडे मारेंगे इसका
जबाब मोदी जी ने लोक सभा में हंस कर दिया या ,’गद्दारों को’ श्रोताओं का जबाब गोली
मारों ,आरोप
प्रत्यारोप एक दूसरे पर इतने लगाये जैसे एक दूसरे के वैरी हों कभी आमना सामना नहीं
होगा | भाजपा ने दिल्ली विधान सभा चुनाव में पूरा जोर लगाया ,
देश के गृह मंत्री अमित शाह एवं अन्य मंत्रियों ने रोड शो किये |गृह मंत्री ने पैदल
जा कर कई क्षेत्रो में जन सम्पर्क कर पर्चे बांटे केजरी वाल उनको वाद विवाद की
चुनौती देते रहे |
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बुक पर विचार रखना चुनाव प्रचार का महत्वपूर्ण साधन बना हुआ है |
अबकी बार
केजरीवाल ने रैली के स्थान पर रोड शो पर जोर दिया है रैली में भीड़ इकठ्ठी करनी
पड़ती है रोड शो में अपने कार्य कर्ताओं से काम चल जाता है अंतिम दिन सभी दल अपना
रोड शो धूम धाम से निकालते हैं | चुनाव के लिए जब प्रत्याशी पर्चा भरने आते हैं
ऐसा सिद्ध करने की कोशिश की जाती है जैसे बिना लड़े सब चुनाव जीत गयें |केजरीवाल जी
का रोड शो ऐसा निकला उस दिन पर्चा नहीं भरा नहीं जा सका दूसरे दिन फिर से रोड शो
करते पर्चा भरने गये कुछ समय खड़ा रहना पड़ा इसके लिए भी सरकार को दोषी करार किया |
केजरी वाल जी का चुनाव प्रोपगंडा
बहुत पहले से विज्ञापनों द्वारा शुरू हो गया था सबेरे अखबार खोलते ही पूरे पेज पर उनके
दर्शन होते थे उन्होंने अमुक क्षेत्र के विकास की अमुक घोषणा की सत्तर क्षेत्र है
70 दिन विज्ञापन और भी अनेक एड जितना पैसा विज्ञापनों पर खर्च किया काश अधूरी टूटी पड़ी सडकों की मरम्मत करवाते
हुए सीवरों पर ढक्कन लगवा देते जनता खुश होती |इसी लिए कुछ ही कामों के विज्ञापन
कर रहे हैं |पहले लड़ते रहते थे मोदी जी काम नहीं करने देते एलजी से झगड़े उनके आफिस
में धरना ,ब्योरोकेट से लड़ाई अब अचानक अपने पाचँ साल के काम की दुहाई दे रहे हैं
,सीवर साफ हो रहे हैं पानी भी कुछ दिन से साफ़ आ रहा है ,सीसीटीवी गलियों के नुक्कड़
पर लग गये मोहल्ला क्लीनिकों में दवाई मिल रही है | सबसे बड़ी बात सीधी रिश्वत 200
यूनिट बिजली और महिलाओं को मुफ्त बस की राईड |
दिल्ली का शाहीन बाग़ धरना जनसंख्या
संशोधन बिल के नाम पर झूठा प्रचार लाखों लोगों की दिक्कत चुनाव रिजल्ट तय करेगा लेकिन
किसके पक्ष में समय बतायेगा दुखद सारा दिल्ली चुनाव प्रचार शाहीन बाग़ के इर्द गिर्द
ठहर गया हर प्रश्न शाहीन बाग़ से शुरू होकर वहीं खत्म विधान सभा के दायित्व पर
प्रश्न धुँआ हो गये |