26 जून 1975 देश में आपतकाल की घोषणा
डॉ शोभा भारद्वाज
26 जून 1975 ,आकाशवाणी से न्यूज रीडर के बजाय तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिराजी ने आठ बजे की न्यूज में स्वयं आपतकाल की घोषणा की ‘भाईयो और बहनों राष्ट्रपति महोदय ने आपतकाल की घोषणा की है इससे आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है’ |बहुत कम लोग है जिन्होंने भारत में आपतकालीन घोषणा उसके बाद की स्थिति लेकिन तानाशाहों की असली तानाशाही भी देखी है |
स्वर्गीय जय प्रकाश नारायण जी की विशाल रैली से पहले ही आपतकालीन घोषणा की भूमिका तैयार हो गयी जेल में राजनीतिक कैदियों की जगह बना दी गयी इंदिरा जी ने अपनी किचिन कैबिनेट से सलाह करने के बाद एक सफदर जंग रोड अपने निवास से राष्ट्रपति भवन तत्कालीन राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद से मिलने गयीं उन्होंने उनसे आपतकालीन घोषणा के बारे में विमर्श किया | श्री फखरूदीन अली अहमद में इंदिराजी का विरोध करने की हिम्मत नहीं थी वह उनसे दगा करने के बारे में सोच भी नहीं सकते थे |उनसे कहा गया देश बचाने के लिए आपतकालीन घोषणा जरूरी है | दो घंटे बाद एमरजेंसी का ड्राफ्ट उन तक पहुंच गया |संविधान की धारा 352 के अंतर्गत देश की परिस्थिति को देखते हुये आपतकालीन स्थिति की घोषणा की जाती है उन्होंने ड्राफ्ट पर दस्तखत किया आपात स्थिति में राष्ट्रपति के नाम से शक्तियाँ प्रधान मंत्री के हाथ में आ जाती हैं |वह रात राजनीतिक गलियारों की व्यस्त रात थी कैबिनेट की मीटिंग बुलाई गयी यह केवल पन्द्रह मिनट चली मंत्रियों को आपतकालीन घोषणा का मसौदा समझाया गया केवल तत्कालीन विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह ने कुछ कहना चाहा लेकिन उन्हें अपनी बात कहने नहीं दी गयी |
इंदिरा जी ताकतवर प्रधान मंत्री थी बंगलादेश निर्माण का श्रेय ,पोखरन में एटम बम का परीक्षण, उनका नारा गरीबी हटाओ ने उनको लोकप्रिय बना दिया था| | वह रायबरेली से चुनाव जीती थीं उनके प्रतिद्वंदी राजनारायण ने 1971 में हुए चुनाव परिणाम को चुनौती देते हुए दलील दी इन चुनावों में धन बल का प्रयोग ही नहीं सरकारी मशीनरी का भी इस्तेमाल हुआ है 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा जी का चुनाव ही निरस्त नहीं किया छह वर्ष के लिए उनके चुनाव लड़ने पर भी प्रतिबंध लगा दिया | इंदिरा जी ने हाई कोर्ट के निर्णय को मानने से इंकार कर त्याग पत्र नहीं दिया जबकि सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी उन्हें भय था यदि एक बार सत्ता उनके हाथ से चली गयी फिर उसे पाना उस पर मजबूत पकड़ बनाना मुश्किल होगा | इस समय विपक्ष उन पर हावी हो रहा था उनका विरोध भी हो रहा था युद्ध एवं बंगला देश के शरणार्थियों का बोझ, बढ़ती महंगाई , विश्व बाजार में कच्चे तेल की कीमतें निरंतर आसमान छू रहीं थी विदेशी मुद्रा भंडार कम हो रहा था | इन्हीं दिनों रेलवे कर्मचारियों ने हडताल कर दी यह 22 दिन तक चली जिसे दबाना जरूरी था गुजरात और बिहार में छात्रों के हिंसक आन्दोलन जिनका विपक्ष ने भी जम कर समर्थन किया यही नहीं आन्दोलनकारियों ने गुजरात विधान सभा से जबरदस्ती त्याग पत्र लिया इंदिरा जी ने गुजरात में राष्ट्रपति शासन की घोषणा कर दी बिहार में भी छात्र आन्दोलन जोरों पर था बिहार विधान सभा का घेराव किया पुलिस ने बल प्रयोग से आन्दोलन को दबाने की कोशिश की लेकिन विरोध बढ़ता रहा जयप्रकाश नारायण जबकि राजनीति से सन्यास ले चुके थे वह सक्रिय हो गये उनकी लोकप्रियता बढ़ रही थी |
मुझे याद है मैं इंडियन कौंसिल आफ वर्ड अफेयर सेंटर की लायब्रेरी में थी उस दिन एक सन्नाटा पसरा हुआ था सप्रू हाउस कैंटीन में चलने वाली चर्चाये खामोश हो गयीं कोई किसी से कुछ नही कह रहा था ज्यादातर स्टूडेंट ऐसे थे जनका आजादी के बाद जन्म हुआ था उन्होंने आजाद हवा में सांस ली थी उन्हें अधिकारों का ज्ञान था लेकिन संविधान में वर्णित राज्य के नीति निर्देशक तत्व और कर्त्तव्य का भान अधिक नहीं था | ऐसे ही दम घोटू वातावरण में मैं घर जा रही थी रास्ते में चाँदनी चौक के टाउन हाल में भीड़ इकट्ठी होने लगी, भीड़ से अधिक पुलिस खड़ी थी | दुकानदारों के चेहरे पर भी खामोशी थी अचानक भीड़ बढ़ने लगी विजयराजे सिंधिया भाषण देने आयीं इससे पहले वह माईक पर कुछ कहें पुलिस दल का घेरा उनके चारो तरफ बढ़ने लगा उन्हें गाड़ी में बिठा कर अज्ञात स्थान पर ले गये | नारेबाजी होने लगी लेकिन नारेबाजी में इंदिरा गांधी के खिलाफ किसी ने नारा नहीं लगाया पुलिस वहीं खड़ी रही भीड़ भी छटने लगी मैंने एक दूकान के चबूतरे से सारा दृश्य देखा राजनीति शास्त्र की विद्याथी अपनी उत्सुकता रोक नहीं सकी अधिकतर गिरफ्तारियां रात के अँधेरे में हो रही थी | जे पी, युवा तुर्क श्री चन्द्र शेखर अन्य प्रभावशाली नेता एवं विपक्ष राजनीतिक बंदी था छात्रनेता या तो बंदी थे या छिपने के ठिकाने ढूंढ रहे थे |दलों के कार्यकर्ता भूमिगत होकर सरकार के विरुद्ध प्रचार की जुगाड़ में थे सगे सम्बन्धियों ने जेल भेजे गये अपनों से मुहँ मोड़ लिया था |
26 जून को बहादुर शाह जफर मार्ग में छपने वाले अखबार निकल नहीं सके क्योकि बिजली काट दी गयी थी |अब अखबारों की खबरे बदल गयी आकाशवाणी की खबरो में आपतकालीन घोषणा को सही ठहराने वाले विचार ,इंदिरा गांधी एवं संजय गाँधी का गुणगान ,इंदिराजी का बीस सूत्री कार्यक्रम जिनमें देश में अनुशासन को प्रमुखता दी गयी अब किसी प्रकार की अनुशासन हीनता बर्दाश्त नहीं थी, चर्चायें बदल गयीं |लोग समय पर दफ्तर जाते दफ्तरों में अब फाईलों के ढेर कम नजर आते थे | अस्पतालों में डाक्टर चुस्ती फुर्ती से काम कर रहे थे रिश्वतखोरी की खबरें घट गयीं |पुलिस चुस्त दुरुस्त थी कहीं भी भीड़ इकट्ठी नहीं होती थी | छात्र अब क्लासों में दिखाई देते थे छात्र नेता, ख़ास कर जेएनयू के छिप गये या जेल गये |
यूथ कांग्रेस के नाम से जवानों का एक ग्रुप संजय गाँधी के नेतृत्व में काम कर रहा था हर दुकानदार की दूकान पर झंडे लगाता इंदिराजी के बिल्ले बांटे जा रहे थे जितने की पर्ची काटी जाती लोग दे देते कांग्रेस की सदस्य संख्या बढ़ती जा रही थी लोग सदस्यता के फ़ार्म भर रहे थे लेकिन आम आदमी के जीवन पर अधिक असर नहीं था | जबकि लगभग एक लाख लोग समेत राजनेता जेल में थे कहीं विरोध का स्वर नहीं था यंग जेनेरेशन जिन्होंने अंग्रेजी राज नहीं देखा था उन्हें अजीब लग रहा था सडकों पर होने वाली पक्ष या विपक्ष की चर्चाये बंद थीं न विरोधी नारे थे न जलूस |
असली ताना शाही क्या है मैने ईरान में देखी है ? जिसे पकड़ा गया परिवार समझ गया अब ज़िंदा लौटना असम्भव है मैने राजा को रंक होते देखा | सत्ता पर कुछ का अधिकार था उनकी ताकत गावों से आये पासदार नाम से भर्ती नौजवान थे वह इस्लाम के नाम से कुछ भी करने को तत्पर थे | 16 , सत्रह साल के किशोर हाथ में बंदूक लिए उससे खेलता नजर आते किसी की भी तलाशी लेते आलिशान मकानों पर कब्जा कर लिया गया गाँव से आये पासदार शानदार गाड़ियों को उलट कर तोड़ रहे थे हमारे यहाँ भी सरकारी संपत्ति, गाड़ियों को जलाने और तोड़ने का चलन बढ़ रहा है लेकिन तानाशाही नहीं है स्वतन्त्रता है |महिलाये हिजाब में जकड़ दी गयी सबसे अधिक त्रासदी यदि कोई जोड़ा घूमते देखा उनसे निकाहनामा मांगा जाता उस समय न होने पर जब तक लड़का सर्टिफिकेट लेकर आता उसकी साथी दुनिया से कूच कर जाती | नारे हवा में उछाले जाते आजादी आजादी लेकिन आजादी क्या है कोई नहीं जानता था ? इस्लामिक सरकार में विदेशी लगभग देश छोड़ कर जा चुके थे एयरपोर्ट पर उतरते ही असली तानाशाही के दर्शन हो जाते पूरा एयरपोर्ट अँधेरे में डूबा हुआ केवल रास्ते में रौशनी उस अँधेरे में हाथ मे बंदूक लिए आने वालों को घूरती आँखे आने वालों के सामान की तलाशी होती | स्कूल कालेज विश्वविद्यालय बंद थे हर चेहरे पर उदासी |
मिडिल ईस्ट के देशों में जहाँ भी डिक्टेटर हैं स्वयं ही समझ जायेंगे जुबान बंद केवल आदेश का पालन उत्तरी कोरिया के नागरिक बेहाल हैं कुछ ऐसे देश हैं जैसे सिंगापूर कानून व्यवस्था बहुत अच्छी है पुलिस नजर नहीं आएगी लेकिन आप कैमरे की नजर में हैं |नागरिक स्वयं ही अनुशासन में रहते हैं |