लोहड़ी एवं श्री गुरु गोविन्द सिंह जी की 352 वीं जयंती पर्व
डॉ शोभा भारद्वाज
लोहड़ी का पर्व एवं खालसा पन्थ
के संस्थापक गुरु गोविंद सिंह जी की 352 वी जयंती एक दिन मनाई जा रही है प्रधान
मंत्री जी द्वारा आयोजित कार्यक्रम में कई केन्द्रीय मंत्रियों एवं पूर्व प्रधान मंत्री डॉ मनमोहन सिंह जी की
उपस्थिति में उनकी स्मृति में स्मारक सिक्का जारी किया गया | श्री गुरु गोविन्द
सिंह जी का मूल मन्त्र था
“ पहले मरण कबूल कर जीवन की छड आस’ । जीवन केहर क्षेत्र में सफलता का आज भी यही मूल मन्त्र है |उन्होंने वीरों की वीरता का आह्वान करते हुए निराश देश में ऐसी हुंकार भरी हर बाजू फड़क उठी
चिड़ियाँ
तो मैं बाज लड़ाऊँ ,सवा लख से एक लड़ाऊँ ,ताँ गोविन्दसिंह नाम कहाऊ” जिसने सोये निराशा में डूबे नौजवानों में जोश भर
दिया था |
लोहड़ी का उत्सव पंजाब हरियाणा हिमाचल और जम्मू दिल्ली में
धूमधाम से मनाया जाता है| कड़कड़ाती सर्द शाम को एक ख़ास चौराहे पर लकड़ियाँ और
उपले जिन्हें पहले लडके लडकियाँ घर – घर से मांग कर लाते थे असली
समाजवाद –अमीर और
गरीब सबकी बेटियाँ बेटे कुछ दिन पहले से ही गुट बना कर लगभग हर घर के दरवाजे पर
शुभ गान गाती हुई अनुनय करती हैं इस ईधन से आग जलाई जाती है आज कल उपले
उपलब्ध नहीं है अत :लकड़ियाँ ही जलाई जाती हैं लोग अपने घरों में भी लोहड़ी की अग्नि
जला कर पूजा करते हैं | अब चंदे से सामूहिक लोहड़ी में रंगारंग कार्यक्रम का
आयोजन होता है बाजार वाद |कृषि प्रधान देश भारत में यह त्यौहार फसल का त्यौहार हैं खेतों
में गेहूं ,सरसों ,मटर ,चने की फसल
लहलहाती है गन्ना रसीला हो जाता है भट्ठियों में ताजा पकते गुड़ की सुगंध चारों
फैलती है सर्दी भी जोरों पर होती है |
कुछ लोग जिनकी मांगी मन्नत पूरी हो जाती है गोबर
के उपलों की माला बना कर जलती अग्नि को भेंट करते हैं मान्यता है लोहड़ी का पर्व
सूर्य एवं अग्नि देव को समर्पित है लोहड़ी के पावन अवसर पर नवीन फसलों एवं तिल
रेवड़ियां मूंगफली भुनी मक्का गुड़ गजक पूरा परिवार अग्नि के चारो तरफ चक्कर लगा कर
अग्नि को समर्पित करते हैं अग्नि देव एवं सूर्य का श्रद्धा पूर्वक आभार प्रगट किया
जाता है मानते हैं फसल का कुछ अंश देवताओं तक पहुंचता है ताकि उनकी कृपा दृष्टि से
खेत में फसल लहलहाए खलिहान अन्न से भंडार
में रखी मटकियों में गुड़ शक्कर भरा रहे |
लोहड़ी के
दिन शाम के समय गन्ने के रस में खीर बनती
है जिसे अगले दिन मक्रर संक्रान्ति के दिन खाया जाता है गन्ने के रस की खीर
स्वादिष्ट एवं पोष्टिक होती है इसे मेवों से सजाते है एक कहावत भी जुड़ी है “ पोह
रिद्धि माघ माह खादी” पोष माह की शाम खीर पकाई गयी अगले दिन माघ माह में खायी गयी
|स्पष्ट है लोहड़ी पर्व पोष माह की रात को मनाया जाता है रात भर अलाव के पास बैठ कर
लोग गीत गाते हैं अगले दिन मकर संक्रान्ति को नदियों में स्नान का अपना महत्व है
मन्दिरों में खिचड़ी का दान खाने में खिचड़ी ही पकाई जाती है|
प्रचलित
लोक कथा के अनुसार लोहड़ी के अवसर पर गाया जाने वाला लोकप्रिय गीत “सुन्दरिये नी मुन्दरिये हो ,तेरा कौन बचारा हो ,
दुल्ला भट्ठी वाला
,दुल्ले
ने धी बयाई , सेर शक्कर पाई” है |दिल्ली में मुगल बादशाह अकबर का विशाल साम्राज्य था उनके
राज्य के पंजाब प्रांत ,आज के बाघा बार्डर से 200 किलोमीटर
दूर पाकिस्तान स्थित पिंडी भट्टियाँ गावँ का निवासी दुल्ला भट्टी नाम का नायक
राजपूत था इसे पंजाब का राबिन हुड माना जाता था |यहाँ चौराहे पर उठा कर लायी गयी कन्यायें बिकती
थीं जिन्हें अमीर लोग गुलाम की तरह खरीद
लेते थे वह इन कन्याओं को मुक्त ही नहीं कराता था उनका सम्मान बचा कर उनकी सुयोग्य
वर से शादी करवाता था | दुल्ला
ने दो अनाथ कन्याओं सुन्दरी और मुंदरी को अपनी बहन मान कर उनकी शादी करवाई | वह
छुड़ाई
गयी लड़कियों को जंगल में आग जला कर फेरे करवाता | एक सेर शक्कर विवाह के अवसर पर
नव विवाहिताओं की झोली में डालता |उसके सम्मान में आज भी लड़के गीत
गाकर प्रश्न और उत्तर शैली में गाते हैं| दुल्ला भट्टी पंजाबियों का नायक है |
एक और पौराणिक कथा शिव पुराण से ली गयी है दक्ष
प्रजापति की पुत्री सती शिव जी से ब्याही थी एक दिन सती ने देखा देव गण अपने –अपने विमानों पर एक ही दिशा में
जा रहे थे |सती ने
शिव जी से पूछा यह देवगण क्यों और कहाँ जा रहे हैं शिव जी ने बताया तुम्हारे पिता
दक्ष प्रजापति के घर विशाल यज्ञ का आयोजन है सभी उसी यज्ञ में भाग लेने जा रहे हैं
| शिवजी और
दक्ष प्रजापति के आपसी सम्बन्ध अच्छे नहीं थे अत : उनको न्योता नहीं दिया गया | सती भी अपने पिता के घर जाना
चाहती थी पति के मना करने पर भी उन्होंने हठ ठान ली उनका तर्क था बेटी को अपने
मायके जाने के लिए न्योते की क्या जरूरत है? हठ से लाचार होकर शिव जी ने अपने गणों के साथ
उन्हें पितृ घर भेज दिया बिन बुलाये मायके आई सती का किसी ने उनका स्वागत नहीं
किया केवल माँ नें कुशल क्षेम पूछी |सती खिन्न थी यज्ञ में आहुति
देने का समय आया शिव जी का नाम आने पर दक्ष ने मना कर दिया सती आहत हो गयीं
उन्होंने कहा मेरे पति का अपमान , देवाधिदेव पूज्य नील कंठ का ऐसा अपमान वह यज्ञ कुंड में कूद
गयीं यज्ञ विध्वंस हो गया उनका अगला जन्म पार्वती के रूप में हुआ कठिन तप करने के
बाद उन्हें शिव जी की पति के रूप प्राप्ति हुई | मान्यता है माता पिता, मायके में किये गये सती के
अपमान को भूल मान कर अपनी विवाहित बहन और बेटी को मायके बुला कर सम्मान देते हैं|
लोहड़ी की एक कथा भगवान श्रीकृष्ण से संबंधित है। कहते हैं बाल कृष्ण का वध
करने के लिए कंस ने लोहिता नाम की राक्षसी को नन्द गावं भेजा अगले दिन मकर
संक्रान्ति थी सभी उसके आयोजन में व्यस्त थे श्री कृष्ण लोहिता का वध कर दिया नन्द
गाँव के लोगों ने उसी शाम अग्नि जला कर उत्सव मनाया था |
लडकियाँ गीत गाती हैं “पा नी माईये पा काले कुत्ते नू वी पा काला
कुत्ता देवे बधाईयाँ
तेरे जीवन मझ्झी गाइयां , मझ्झी गाइयां दित्ता दूध ,तेरे जीवन सत्तो पुत्तर, सत्तो पुत्रां दी कमाई सानू बौता बौता पाईं |
ऐ माँ काले कुत्ते को भी खाने को दो | काल कुत्ता तुम्हारी शुभ मनायेगा तुम्हारे पशु धन की ख़ैर मनायेगा तुम्हारी गाय भैंसे जियें खूब दूध दें दूध पी कर इस घर के सातों बेटे हृष्ट पुष्ट होंगे | अनुनय की जाती है हें तुम्हारे सातों हष्ट पुष्ट बेटों की कमाई घर में आयें तुम हमें अधिक से अधिक दो | खेतिहर समाज में बेटों का बहुत महत्व रहा है आज कल सात बेटे सुन कर पसीना आ जाता हैं पंजाब के लोग चाहते हैं उनका बेटा विदेश जाये एनआरआई हो कर परिवार और परिचितों को वीजा दिलवायें खूब कमाये विदेश में उनका पिंड (गाँव )बस जाये| शहरी चाहते हैं उनके बच्चे बेस्ट डिग्री लेकर मल्टीनेशन कम्पनी में मोटा पैकेज लें या एवन वीजा लेकर यूएस जायें |
बेटी और बहन की शादी की पहली लोहड़ी पर उनके
सुसराल लोहड़ी पर्व पर रेवड़ी, गजक,
मिठाई और अन्य
सामान के साथ सुसराल वालों को अपनी हैसियत के अनुसार उपहार देने का चलन है |पुत्र के विवाह के बाद पहली लोहड़ी के अवसर पर
वर पक्ष का परिवार बहू के मायके वालों को सम्मान सहित बुलाते हैं उनका आदर करते
हैं अब उन्हें उपहार देने का भी चलन है | बेटे के जन्म और नौकरी के उपलक्ष में लोहड़ी घर में जला कर अपने जानकारों को
न्योता दिया जाता है आजकल समय बदल रहा है एक दो ही बच्चे हैं बेटी की भी लोहड़ी लोग
मनाते हैं और खुश होकर कहते हैं हमारी नजर में बेटा बेटी समान हैं गांवों में अभी
इतनी दरियादिली नहीं है |
समूहिक रूप से आग के चारो तरफ लोग खड़े हो कर कर अग्नि प्रज्वल्लित करते हैं परिवार अपने घर
से थाली में
में तिल गुड
भुनी मक्का रेवड़ी लाकर अग्नि पर चढ़ाते , गावों में अग्नि को गन्ने भी अर्पित करते
हैं जैसे ही ढोल बजता है हर उपस्थित का अंग अंग थिरकता है मर्द और औरतें सामूहिक
भंगड़ा नृत्य करतें हैं |गिद्दा औरतों का नृत्य है जिसमें तरह तरह से
बोलियाँ डाली जाती हैं कहावत है “तिल चटका पाला
खिसका”
अर्थात आज से
धीरे –धीरे सर्दी खत्म होने लगती है| अबकी बार प्रयाग राज में अर्द्ध कुम्भ का शुभ स्नान है हर्ष उल्लास
से लोहड़ी की रात गहरी होती जाती है कोई घर जाना नहीं चाहता लकड़ियों का अलाव
सूर्योदय तक सुलगता रहता है |