दक्षिण अफ्रीका मोहन दास करमचन्द गाँधी जी की कर्म भूमि
डॉ शोभा भारद्वाज
इंग्लैंड से बैरिस्टरी पास करने के बाद भी गांधी जी वकालत में असफल रहे| उनकी पहली कर्मभूमि दक्षिणी अफ्रिका की धरती बनी ,सौभाग्य से भारतीय व्यापार ी, अब्दुल्ला सेठ जिनका व्यापार दक्षिण अफ्रीका में था उनका 40,000 पौंड के दावे का मुकदमा चल रहा था उन्हें एक जूनियर वकील की जरूरत था उन्होंने एक वर्ष के अनुबंध पर गाँधी जी को दक्षिण अफ्रिका बुलवा लिया | अप्रैल 1893 को गांधी जी अफ्रीका के लिए रवाना हुए| दक्षिण अफ्रीका (नेटाल )की धरती पर उतरते ही गांधी जी समझ गये थे गोरों की नजर में यहाँ बसे भारतीयों का कोई सम्मान नहीं है.| डरबन की अदालत में गाँधी जी पगड़ी पहन कर पहुंचे मैजिस्ट्रेट ने उन्हें पगड़ी उतारने का आदेश दिया | वह अदालत के बाहर चले आये |अब्दुल्ला सेठ का मुकदमा प्रिटोरिया में चल रहा था वहीं उनके प्रतिवादी तैयब हाजी खान रहते थे गांधी जी ने पहले केस समझा उसके बाद अब्दुल्ला सेठ को समझाया मैं कोशिश करूंगा आपसी समझौता हो जाये | उन्होंने अपने अथक प्रयासों से तैयब जी और अब्दुल्ला सेठ के बीच चल रहे मुकदमे का स्वीकार्य समझौता करा दिया.|
गांधी जी को प्रथम श्रेणी के टिकट पर यात्रा कर रहे थे रात में 9 बजे मेरित्सबर्ग स्टेशन पर एक अंग्रेज अफसर नें उन्हें तृतीय श्रेणी की बोगी में जाने को कहा,अफ्रीका में भारतीयों के नाम या पद से पहले कुली लगाया जाता था विरोध करने पर अफसर ने सिपाही की सहायता से उन्हें गाड़ी से धक्का देकर उतरवा दिया और सामान बाहर फिकवा दिया |इंगलैंड से एडवोकेट की डिग्री प्राप्त हिंदी, अंग्रेजी और लैटिन भाषा के ज्ञाता, गाँधी जी ठंडी रात में स्टेशन पर बैठे सोचते रहे थे अपमान जनक व्यवहार के बाद वह मुकदमा छोड़ कर वापस भारत जान कायरता है क्यों न रंग भेद नीति का विरोध करें उन्होंने रंग भेद के महारोग के खिलाफ संघर्ष का मन बना लिया |
प्रिटोरिया में अनेक कट्टर ईसाई धर्म के अनुयायी उनसे धर्म चर्चा कर धर्म परिवर्तन के किये समझाने लगे |डरबन में मिस्टर स्पेंसर वाल्टन दक्षिण अफ्रीका में मिशनरी थे उनके साथ गाँधी जी के पारिवारिक सम्बन्ध बन गये थे उनसे अक्सर धर्म चर्चा होती थी उन्हे ईसाई धर्म की अनेक अच्छाइयों के बावजूद हिन्दू धर्म में कोई कमी नज़र नहीं आती थी | गाँधी जी सुबह उठते ही नियमानुसार गीता पढ़ते थे गीता के बाद वह रस्किन की पुस्तक का भी अध्धयन करते थे | यहाँ उनके हृदय में सर्वधर्म समभाव के भाव का उदय हुआ उन्होंने गीता पर टीका भी लिखी जिसे गाँधी जी की गीता कहते हैं | वह भारतीयों से सम्पर्क बनाने लगे | वहाँ भारत से आए अनेक समुदायों के लोग रहते थे. गाँधी जी ने सभी भारतीयों की सभा बुलाई और आपस के मतभेद भुला कर मिल कर रहने का सन्देश दिया |
प्रवासी भारतीयों की दशा सुधारने के लिये कार्य करने लगे जिसमे वह काफी कुछ सफल भी रहे उनकी भारत लौटने की पूरी तैयारी थी अचानक उन्होंने एक अखबार में ‘इंडियन फ्रेंचाईज’ शीर्षक से छपी एक खबर पढ़ी जिसके अनुसार भारतीयों का नेटाल कौंसलिंग में सदस्य चुनने के अधिकार को वापस लेने के लिए असेम्बली में बहस चल रही थी | इससे भारतीयों की स्थिति बहुत कमज़ोर हो जाने वाली थी | गांधी जी को यह मामला गम्भीर लगा, उन्होंने कहा कि अफ्रीका में रह रहे भारतीयों को इसके खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए समझाया | उनकी अफ्रीका में लम्बे समय तक प्रवास की भूमिका तैयार हुई उन्होंने नेताल के भारतीय समाज के दस हजार हस्ताक्षर के साथ आवेदन पत्र तैयार किया उसकी अनेक प्रतियाँ अधिकारियों, प्रशासन के मंत्रियों और अखबारों के दफ्तरों में भिजवाईं |अखबारों ने इस विषय को मुख्य समाचार बनाया |
यहाँ से मोहनदास का असली सफर शुरू हुआ
उन्होंने नेटाल के सर्वोच्च न्यायालय में वकालत करने की इजाजत मांगी मुश्किल से मिली, वकालत के पेशे में कभी अपने सिद्धांतों से समझौतों नहीं किया, मुकदमों में सदैव ही सत्य का सहारा लिया बहुत से अंग्रेज भी अपने मुकदमों की पैरवी उनसे करवाने लगे | गाँधी जी ने 22 मई 1894 में नेटाल इंडियन कांग्रेस की स्थापना कर इंडियन ओपिनियन साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन भी किया जिनका मुख्य उद्देश्य, अफ्रीका में जन्मे और शिक्षा पाए भारतीयों की सेवा करना और उनकी दशा सुधारना , शोषित-पीड़ित भारतीय जनों को सहारा देना और उन्हें उनके अधिकार दिलाना था| उन्होंने फीनिक्स आश्रम की स्थापना कर आश्रम में आश्रमवासी बच्चों के लिए पाठशाला भी खोली यहाँ वह अध्यापन भी करते थे बाद में वह जोहन्सबर्ग आ गये |
अफ्रीका में भारतीय मजदूरों को 5 साल के एग्रीमेंट पर बुलाया जाता था | इसके बाद वह भारत लौट सकते थे या एग्रीमेंट पूरा होने पर वहां रुक कर खेती या व्यवसाय कर सकते थे | वह अंग्रेजों के लिये चुनौती बनने लगे थे अतः वहां की सरकार ने हर भारतीय पर 25 पौंड (375 रूपए) वार्षिक कर लगाना तय किया |गाँधी जी की नेटाल कांग्रेस के जबरदस्त विरोध करने पर यह कर 3 पौंड वार्षिक कर दिया गया लेकिन तीन वर्ष तक विरोध चलता रहा किया| भारत में अपने अल्प प्रवास के दौरान गाँधी जी यहाँ के नेताओं, अफसरों, बुद्धिजीवियों और सरकार के बीच अपने अफ्रीका में चल रहे आन्दोलन के लिये समर्थन जुटाने के लिए उन्होंने एक पुस्तिका लिखी जो हरी पोथी के रूप में लोकप्रिय हुई|
1899 में बोअर युद्ध की शुरुआत हुई अत: गांघी जी ने अपने साथियों को इकट्ठा कर घायलों की सेवा के लिए एक टुकड़ी बनाई टुकड़ी में 1100 स्वयं सेवक थे |सबने रेडक्रास के संरक्षण में अपनी अमूल्य सेवायें दी | 1901 तक युद्ध शांत हो गया | 1906 के जुलू विद्रोह में भी उन्होंने घायल अंग्रेज सैनिकों के उपचार में सहायता की |उनके अनुसार यदि भारतीयों को साउथ अफ्रिका की नागरिकता चाहिये, नागरिकता को क़ानूनी जामा पहनाने के लिए सरकार को युद्ध के प्रयासों में सहयोग देना चाहिए |
1901 में ‘भारतीयों के नेटाल कौंसलिंग में सदस्य चुनने के अधिकार’ की लड़ाई जीतने के बाद वह स्वदेश लौटना चाहते थे | प्रवासी भारतीयों को लगा कि अब वह नेता विहीन हो जाएँगे |भारत में गाँधी जी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में भाग लेकर ,अफ्रीका के प्रवासी भारतीयों की दशा के बारे में अपना वक्तव्य देना चाहते थे यहाँ वह अफ्रीकी प्रवासी भारतीयों के पक्ष में प्रस्ताव पारित कराने में सफल रहे| यहीं पर उन्हें एक तार द्वारा फिर से दक्षिण अफ्रीका से बुलावा आ गया. वहाँ प्रवासी भारतीयों को परेशान किया जा रहा था उन्हें गाँधी के नेतृत्व की आवश्यकता थी | गाँधी जी अपने वादे के अनुसार नेटाल के लिये रवाना हो गये जैसे ही उनका जहाज नेटाल पहुंचा गोरों की भीड़ ने उन पर जान लेवा हमला कर दिया उस दिन उनकी सहयात्री पुलिस सुपरिटेंडन्ट की पत्नी ने पुलिस को सूचित किया , बीच बचाव कर उनके प्राण बचाए लेकिन उन्होंने हमलावरों के खिलाफ कार्यवाही नहीं की |
यहाँ उन्होंने 21 वर्ष तक संघर्ष किया प्रवासियों के जीवन स्तर में बहुत से सुधार किये | अपने समय के महान दार्शनिक टालस्टाय से भी सम्बन्ध स्थापित किया उनका संबंध 1910 में टालस्टाय की मृत्यू तक चलता रहा | गांधी जी फीनिक्स को छोड़ कर जोहन्सबर्ग आ गये यहाँ उन्होंने टालस्टाय फार्म नाम से सहकारी कालोनी की स्थापना की आश्रम 1100 एकड़ जमीन पर बना है |
1907 का ‘ब्लैक एक्ट’ भारतीयों तथा अन्य एशियाई लोगों के ज़बरदस्ती विवाह पंजीकरण के विरूद्ध सत्याग्रह- कानून द्वारा हर भारतीय का विवाह नजायज करार दे दिया गया |ब्लैक एक्ट द्वारा प्रत्येक भारतीय को हमेशा अपने पास अपनी दसों उँगलियों के निशान वाला एक प्रमाण पत्र रखना पड़ता था उन्होंने सत्याग्रह द्वारा अन्याय का अहिंसात्मक प्रतिरोध किया | अपने सहयोगियों से कहा वह लम्बी लड़ाई के लिए तैयार हो जायें परन्तु उँगलियों की छाप न दें जेल जायें लेकिन इस काले कानून के आगे सिर न झुकायें अन्याय का विरोध करें मृत्यु का भय छोड़ दें मेरे ऊपर निर्भर न रहें अपनी आत्मिक शक्ति को पहचानें | उनकी अहिंसक सेना में हर भारतीय शामिल हुआ |गाँधी जी पांच हजार निहत्थे अनुशासित सत्याग्रहियों की शन्ति पूर्वक मार्च करती टोली को लेकर आगे इस दल के साथ वह पैदल चलते थे खुले आकाश के नीचे सोते थे पानी जैसी दाल अधपका चावल हरेक का भोजन था | इन अहिंसक सत्याग्रहियों की सेना के ढाई हजार को सरकार ने जनवरी 1908 में कठोर श्रम के साथ सजा दी कई सत्याग्रही मर गये कई बर्बाद हो गये गाँधी उनके साथियों को दो माह के लिए जेल भेज दिया गया व्यपारियों ने गाँधी जी के साथ पत्थर तोड़े | अंत में समझौता हुआ जिसके अनुसार यदि भारतीय स्वेच्छा से पंजी करण करवा लेंगे अनिवार्य पंजीकरण कानून रद्द कर दिया जाएगा |
अहिंसा और सत्याग्रह के अचूक हथियार ने ऐसी जन जाग्रति पैदा की जिसका मुकाबला करना मुश्किल था |सत्याग्रह के जंग की गूँज लन्दन और भारत तक सुनाई दी| भारत में कांग्रेस के अधिवेशन में दक्षिण अफ्रीका की समस्या पर विचार किया गया था |इस जत्थे के प्रतिदिन के खर्च के लिए भारत में चंदे की अपील की गई | रवीन्द्रनाथ नाथ टैगोर ने अपनी झोली फैला कर चंदा जमा किया | धनवानों ने धन दिया औरतों ने अपने कान की बलिया और चूड़ियाँ उतार कर दी झोली में डालीं | 1909: जून – भारतीयों का पक्ष रखने वह इंग्लैण्ड रवाना हुये नवम्बर- दक्षिण अफ्रीका वापसी के समय जहाज़ में ‘हिन्द-स्वराज’ लिखा था । गांधी जी की ख्याति विश्व में फैल चुकी थी | सत्याग्रह की मशाल जला कर उन्होंने भारत लौटने का निश्चय किया उनकी जन्म भूमि को उनकी जरूरत थी | उनसे पहले उनकी गाथा भारत में पहुँच चुकी थी |