राम राम कहि राम कहि पार्ट 2 राम वन गमन
डॉ शोभा भारद्वाज
कोपभवन में जा कर रानी ने आभूषण फेक दिया राजसी वस्त्र उतार कर काले वस्त्र धारण किये वह लम्बी -लम्बी साँसे लेने लगी |रात को महाराज रानी के महल में आये पूरे महल में उदासी छाई थी महाराज के मन में अनजाना भय जगा उनकी प्रिय महारानी जमीन पर घायल नागिन की तरह फुंकार रही थी राजा के बार-बार अनुनय करने पर कैकई ने कहा मेरे दो वरदान क्या आप को याद हैं ? में जो मांगूंगी आप दे नहीं सकेंगे राजा ने राम को सौगंध लेकर कहा महारानी मांगों तुम्हें क्या चाहिए मेरे लिए कुछ भी देना असम्भव नहीं है | तब धनुष से छूटे दो वाण की तरह दो वरदान महाराज के सीने में उतर गये | मेरे पुत्र भरत को राजतिलक राम के लिए तापस वेश में 14 वर्ष का बनवास |निरपराध राम के लिए बनवास किस लिए रानी? यह वरदान नहीं तुम अपने लिए वैधव्य मांग रही हो महाराज ने अनुनय करने पर भी निष्ठुर रानी स्थिर बनी रही| बेहाल राजा सूर्य नारायण से प्रार्थना करने लगे इस रात का कभी अंत न हो |
जब देर तक महाराज जगे नहीं महामंत्री सुमंत कैकई के भवन में पहुंचे देखा कोपभवन में महाराज श्री हीन ,दयनीय हैं उनका गला रुंधा हुआ था महारानी ने आज्ञा दी राम को शीघ्र बुला लाओ राम के आकर नतमस्तक होकर दोनों को प्रणाम किया महाराज की दीन दशा का कारण पूछा महाराज निरुत्तर थे कैकई बोली राम मेरे दो वरदान महाराज पर उधार थे मैने मांगे अपने पुत्र एक लिए राज्य तुम्हारे लिए बनवास मैने कहाँ भूल की ? नहीं माता नहीं राम ने वनवास स्वीकार किया लेकिन राम अकेले वन नहीं गये उनकी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण अपना –अपना धर्म निभाने साथ जा रहे थे| सारे नगर में अशुभ समाचार फैल गया नगर वासियों ने राजमहल को चारो ओर से घेर लिया महाराज ने सुमंत को आज्ञा दी सबसे तेज रथ पर राम को ले जाकर वन में घुमा कर लौटा लाओ |
राम वन जाने के लिए आज्ञा लेने महाराज के पास महल में गये | महाराज व्याकुल होकर कांप रहे थे उन्होंने कहा पुत्र वचन मैने दिए थे तुमने नहीं राम ने हाथ जोड़ कर कहा आप धर्म का स्वरूप हैं मेरा कर्तव्य है आपके हर बचन का पालन करना |14 वर्ष बीत जाने के बाद लौट कर आपके चरण स्पर्श करूंगा लेकिन आप से मेरी प्रार्थना है आप माता कैकई को अपशब्द नहीं कहेंगे भरत को स्नेह देंगे | महाराज सीता को मेरे साथ जाने की आज्ञा दीजिये हमारी रक्षा के लिए लक्ष्मण भी जा रहे है | महाराज ने लम्बी सांस लेते हुए कहा दोनों अपना धर्म निभा रहें है अच्छा महाराज विदा| सीता ने महाराज के चरण छूते हुए कहा अब मेरा घर वन है पिता श्री आज्ञा दें| लक्ष्मण ने प्रणाम करते हुए कहा महाराज आप हजारों वर्ष तक राज करें| बेसुध होकर महाराज तड़फ उठे सब कुछ समाप्त हो गया|
महल के पीछे के भाग में जाकर राजपुत्रों ने राजसी वस्त्र त्याग कर कमर पर काले हिरन की खाल लपेटी वही ओढ़ी जिसे जूट की रस्सी से बाँध लिया पैरों में खडाऊं पहनी लेकिन गुरु वशिष्ठ ने राजलक्ष्मी सीता को राजसी परिधान में जाने की आज्ञा दी उन्होंने राम से कहा उन सभी अस्त्र शस्त्रों को सदैव ध्यान रखना जिनकी विश्वामित्र ने तुम्हे शिक्षा दी थी| महामंत्री सुमंत अब शांत थे उन पर राजाज्ञा के पालन का दायित्व था वह रथ ले आये | रथ में चार लाल घोड़ों बंधे थे जो सरपट उड़ने को तैयार थे |महामंत्री ने कहा राज कुमार मैं आपको वन की और ले चलूँगा परन्तु इतना आसान नहीं है अयोध्या के हर कूचे में पुरुष चीख रहे हैं औरते विलाप कर रहीं है राज्य की सभ्रांत प्रजा, व्यापार ी और योद्धा परिवार सहित आपके साथ वन जाने के लिए राजमहल को घेरे हुए है | ऐ राजकुमार सद्गुण के अवतार ऐसी महान विदा फिर कभी इतिहास में देखने को नहीं मिलेगी |
लक्ष्मण ने रथ के एक कोने में अग्नि का पात्र रखा अपने धनुष बाण तरकश रथ के सामने रखे| गुरु ने सहारे से सीता को रथ पर बिठाया |तीनों को आशीर्वाद दिया |राजमहल के पीछे के हिस्से से द्वार पार करता हुआ रथ दक्षिण द्वार की ओर आगे बढ़ा महामंत्री ने घोड़ों की लगाम खिंची संकेत मिलते ही हवा के वेग से घोड़े उड़ने लगे| महाराज को होश आया वह कक्ष से निकल कर छज्जे पर आ गये जाते हुए रथ को देख कर चीखे ठहरो –ठहरो रोको द्वार के रक्षक भागे लेकिन द्वार बंद करने का समय नहीं था उन्होंने रथ के वेग को रोकने के लिए रथ के सामने आकर उसे घेरने का प्रयत्न करने लगे लेकिन क्रोध में महामंत्री दोनों तरफ कोड़े फटकारते हुए रथ को राजमार्ग पर ले आये उन्होंने देखने का प्रयत्न ही नहीं किया कोड़ा किस पर पड़ रहा है |
सीता से कहा पुत्री कस कर दंड को पकड़ों उनके सफेद बाल हवा में लहरा रहे थे घोड़े पवन वेग की तरह उड़ रहे थे रथ के पीछे तैयार अयोध्या वासी वाहन सवार और पैदल रथ का पीछा करने लगे | रथ चौड़े राजमार्ग से निकल कर छोटे मार्गों से कच्चे मार्गों पर दक्षिण दिशा की और भाग रहा था नगरी पीछे छूट गयी ग्राम दिखाई देने लगे |ऊंचे –ऊंचे वृक्षों पर बैठे पक्षी चहचहाना भूल कर पंखों को समेत सहम गये | चारो तरफ शोर और क्रन्दन और कुछ नहीं था ,था तो आगे राजपुत्रों के लिए अनिश्चित भविष्य था जिसे अपने पुरुषार्थ से उन्हें बनाना था |
बेहाल महाराज क्रन्दन करते हुए भूमि पर गिर पड़े उनकी आँखों में खून उतर आया आँखों से दिखाई देना बंद हो गया शरीर सुन्न हो गया पक्षाघात
राम राम कहि राम कहि राम राम कहि राम | तनु परिहरी रघुवर बिरह राऊ गयऊ सुर धाम