मुलायम सिंह यादव कुनबे में राजनीति क महत्वकांक्षा की फूट
डॉ शोभा भारद्वाज
कभी सब कितना अच्छा था
महाभारत की कथा सभी जानते हैं |कुल की लड़ाई में सब कुछ तबाह हो गया रह गया तो पांडवों का उत्तराधिकारी
परीक्षित |समाजवादी अपने को लोहियावादी कहते हैं लेकिन राजशाही, सबसे बड़ा राजनीतिक परिवार है जबकि बदनाम नेहरु गांधी परिवार हैं | पहले परिवार के लोगों का टिकट पर अधिकार होता है फिर दूसरों का नम्बर आता है| 4 अक्टूबर 1992 को मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी की स्थापना की थी |वह दूसरे दलों के समर्थन से तीन बार मुख्य मंत्री बने थे | मिली जुली सरकार में उन्हें रक्षा मंत्री बनने का सौभाग्य मिला था वह राष्ट्रीय राजनीति में आना चाहते थे उनकी सोच थी यदि मिली जुली सरकार बनी सपा को 40 सीटें मिल गयीं तो उनकी दावेदारी दिल्ली के सिंहासन पर बढ़ जायेगी| मोदी जी को बहुमत नही मिलता मिली जुली सरकार बनती उसमें शायद इनकी प्रधान मंत्री बनने की इच्छा पूरी हो सकती थी | यूपी के वोटर ने धोखा दिया उनके परिवार के उम्मीदवारों के अलावा किसी को नहीं जिताया |इनके छोटे भाई शिव पाल यादव भी 1996 ने जसवंत नगर सीट से विधान सभा में प्रवेश किया| मुलायम सिंह के राजनीतिक परिवार में घमासान मचा हुआ है जबकि वह परिवार में सर्वोपरी हैं उनकी बात कोई नहीं टालता लेकिन इस समय सारा झगड़ा उनके भाई और पुत्र में मचा हुआ है | इनके चचेरे भाई रामगोपाल यादव संभल से चुनाव लड़ कर सांसद बने आजकल वह राज्यसभा के सांसद हैं | जिन्हें वह प्रोफेसर साहब कह कर अपनी पार्टी का थिंक टैंक मानते थे उन्हें 6 वर्ष के लिए पार्टी से बाहर कर दिया|
मुलायम सिंह की दो पत्नियाँ हैं| पहली पत्नी से बड़े सपुत्र अखिलेश यादव दूसरी पत्नी से छोटे पुत्र प्रतीक यादव हैं| कहते हैं उनकी राजनीति में कोई रूचि नहीं है उनका रियल स्टेट का बिजनेस हैं यही नहीं आधुनिक साजो से युक्त जिम हैं ,फिजिकल फिटनेस के शौकीन हैं लेकिन उनकी पत्नी अपर्णा की राजनीति में रूचि है वह अभी से लखनऊ केंट की सीट से अपना प्रचार कर रहीं हैं यादव परिवार की बहू होने के नाते राजनीति में जबर्दस्त पारी खेल ना चाहती हैं | मुख्य मंत्री मायावती की यूपी में बहुमत की सरकार थी उनके खिलाफ अखिलेश यादव साईकिल पर सवार हो कर चुनावी बिगुल फूंक कर प्रचार करने निकले | लम्बी चुनावी यात्रा में वह रुक रुक कर जन सभाओं को सम्बोधित करते थे | परिवार एकजुट था | बड़ी कड़ी टक्कर के बाद समाजवादी कुनबे में जान आई थी |हर बात को हंस कर कहना बड़े से बड़े प्रश्न को घुमाने की कला में माहिर अखिलेश को बहुमत के बाद आसानी से सत्ता नहीं मिली थी उनके चाचा शिवपाल भी महत्व कांक्षी थे उनके अनुसार गाँव – गावँ साईकिल पर घूम कर उन्होंने पार्टी को यहाँ तक पहुंचाया है| शिवपाल चाहते थे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नेता जी बैठें लेकिन मुलायम सिंह ने सत्ता की कुर्सी अपने पुत्र को सौंपी उन्हें मुख्य मंत्री पद तो नहीं मिला हाँ मलाईदार विभाग मिला | यूपी की गद्दी पर अखिलेश युवा पढ़ा लिखा चेहरा था जनता उनकी तरफ आशा भरी नजरों से देख रही थी| इन पर भ्रष्टाचार का कोई मामला नहीं था जबकि मुलायम सिंह पर आय से अधिक सम्पत्ति का केस चल रहा था |सोचा था नौजवान हैं यूपी की काया कल्प कर देंगे लेकिन ऐसा हो नहीं पाया लैंड माफिया, गुंडा गर्दी और महिलाओं की सुरक्षा की समस्या बढ़ती रही |इनके मंत्री आजम खान भी प्रभावशाली हैं जो अपने अटपटे बयानों और मुस्लिम कार्ड खेलने की कला में माहिर हैं | चुनाव में सपा ने वादे ही वादे किये थे जिनमें मुस्लिम समाज को जम कर आशाएं बांटी थी | विकास पर कम जनता में धन बांटने पर अधिक जोर दिया| छात्रों को लैपटाप बाटें | अक्सर वह केंद्र से बड़े फंड की आशा करते थे |यूपी चुनाव नजदीक आ रहा है अत :अखिलेश जी ने विकास की अनेक योजनाओं को हरी झंडी दिखाई अखबारों में बड़े-बड़े विज्ञापन दिये लग रहा था यदि दुबारा उनकी सरकार बनी प्रदेश को खुशहाल कर देंगे | अखिलेश जी को मलाल था उन्हें खुल कर काम करने का मौका ही नहीं मिला | मुख्य मंत्री अखिलेश थे लेकिन कहते हैं यूपी में साढ़े चार मुख्यमंत्री हैं |उन्हें पिता के आदेश पर अनेक निर्णय लौटाने पड़े थे |
पिता की बगल में बैठे वह आज्ञाकारी बेटे की तरह अखिलेश को अक्सर डांट खाते देखा जाता था | ऐसा लगता था मुलायम अपनी छवि को महान नेता की छवि के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं | भेद खुला जब परिवार की कलह खुल कर सामने आ गयी पहले मंत्री मंडल छीने गये फिर लौटाए गये| मुलायम ने अपने पुराने मित्र अमर सिंह को राज्य सभा में पहुंचाया जिसका अखिलेश और चाचा राम गोपाल ने विरोध किया| अखिलेश चुनाव में विकास के मुद्दे को महत्व पूर्ण स्थान दे रहे थे लेकिन मुलायम सिंह और शिव पाल पहले समीकरण बिठा कर मुस्लिम ,यादव और अन्य जातियों के तोड़ मरोड़ की नीति अपनाना चाहते थे| पहला विवाद कौमी एकता के नेता मुख्तार अंसारी के दल के विलय के समर्थन पर दिखाई दिया| शिव पाल ने कौमी एकता दल को मिला कर ही दम लिया| घर जा झगड़ा बाहर आया | मुलायम सिंह यादव ने बेटे और भाई में सुलह कराने के लिए मीटिंग रखी अपने अधिकार का प्रयोग कर उन्होंने चाचा के पैर छू कर गले लगने को कहा अखिलेश ने वैसे ही किया लेकिन अबकी बार परिवार का झगड़ा नहीं राजनीतिक महत्वकांक्षा की टक्कर थी अखिलेश ने अपनी बात रखी उनका गला भर्राया हुआ था मन में अनेक शिकायतें थी सबसे बड़ी शिकायत चाचा अमरसिंह के लिए थी जो कहते है वह उनके बेटे की तरह है लेकिन यह वहीं शख्स हैं जिन्होंने अखिलेश की माँ की मृत्यु के बाद साधना देवी मुलायम सिंह के लिव इन रिश्ते को विवाह में बदलवाया और जिससे पुत्र को पिता का नाम मिला | अखिलेश को सबसे बड़ी शिकायत थी टाईम्स आफ इंडिया में एक लेख छपा जिसमें उन्हें ओरंगजेब के समान बताया, दिल्ली के तख्त पर बैठा ऐसा बादशाह था जिसने अपने बादशाह पिता को गद्दी से हटा कर उस पर कब्जा किया था लेख उनके अनुसार अमर सिंह ने छपवाया था बाहरवालों की वजह से फसाद बढ़ें हैं, अनेक गिले थे ,कहा पिता ने जो कहा उन्होंने सब माना| चाचा और भतीजे के बीच माईक के लिए छीना झपटी हुई शिवपाल के पास भी तुरुप का इक्का था कहा अखिलेश अलग पार्टी बनाना चाहते हैं अपनी बात का विश्वास दिलाने के लिए एकलौते पुत्र की कसम खायी |शिवपाल चाहते थे नेता जी सत्ता अपने हाथ में लें लेकिन मुलायम सिंह ने विवेक से काम लिया अखिलेश मुख्यमंत्री हैं लेकिन पार्टी की अध्यक्षता शिवपाल के हाथ में रहने दी अमर सिंह को हटाने से मना कर दिया उनका तर्क था उनके उन पर कई अहसान हैं |सुलह की कोशिशे बेकार हो गयीं अब चाचा भतीजा नई कूटनीतिक चालें चल रहे हैं | चाचा ने चुनाव देवबंद से चुनाव अभियान शुरू कर दिया अखिलेश 3 नवम्बर सपा के स्थापना दिवस पर सबके साथ मिल कर शुरू करेंगे |दिवाली के बाद ही कोई फैसला सामने आयेगा लेकिन एक बात साफ़ है परिवार और दिल भी बट गये हैं अब कार्यकर्ता क्या करें ?