शान्ता को आश्रम में आए एक मास से ऊपर हो गया, लेकिन पद्मसिंह ने अभी तक अपने घर में किसी से इसकी चर्चा नहीं की। कभी सोचते, भैया को पत्र लिखूं, कभी सोचते, चलकर उनसे कहूं, कभी विट्ठलदास को भेजने का विचार करते, लेकिन कुछ निश्चय न कर सकते थे।
इधर उनके मित्रगण वेश्याओं के प्रस्तावों को बोर्ड में पेश करने के लिए जल्दी मचा रहे थे। उन्हें उसकी सफलता की पूरी आशा की। मालूम नहीं, विलंब होने से फिर कोई बाधा उपस्थित हो जाए। पद्मसिंह उसे टालते आए थे। यहां तक कि मई का महीना आ गया। विट्ठलदास और रमेशदत्त ने ऐसा तंग किया कि उन्हें विवश होकर बोर्ड में नियमानुसार अपने प्रस्ताव की सूचना देनी पड़ी। दिन और समय निर्दिष्ट हो गया।
ज्यों-ज्यों दिन निकट आता था, पद्मसिंह का चित्त अशांत होता जाता था। उन्हें अनुभव होता था कि केवल इस प्रस्ताव के स्वीकृत हो जाने से ही उद्देश्य पूरा न होगा। इसे कार्यरूप में लाने के लिए शहर के सभी बड़े आदमियों की सहानुभूति और सहकारिता की आवश्यकता है, इसलिए वह हाजी हाशिम को किसी-न-किसी तरह अपने पक्ष में लाना चाहते थे। हाजी साहब का शहर में इतना दबाव था कि वेश्याएं भी उनके आदेश के विरुद्ध न जा सकती थीं। अंत में हाजी साहब भी पिघल गए। उन्हें पद्मसिंह की नेकनीयती पर विश्वास हो गया।
आज बोर्ड में यह प्रस्ताव पेश होगा। म्युनिसिपल बोर्ड के अहाते में बड़ी भीड़भाड़ है। वेश्याओं ने अपने दलबल सहित बोर्ड पर आक्रमण किया है। देखें, बोर्ड की क्या गति होती है।
बोर्ड की कार्यवाही आरंभ हो गई। सभी मेंबर उपस्थित हैं। डॉक्टर श्यामाचरण ने पहाड़ पर जाना मुल्तवी कर दिया है, मुंशी अबुलवफा को तो आज रात-भर नींद ही नहीं आई। वह कभी भीतर जाते हैं, कभी बाहर आते हैं। आज उनके परिश्रम और उत्साह की सीमा नहीं है।
पद्मसिंह ने अपना प्रस्ताव उपस्थित किया और तुले हुए शब्दों में उसकी पुष्टि की। यह तीन भागों में विभक्त थाः
१. वेश्याओं को शहर के मुख्य स्थान से हटाकर बस्ती से दूर रखा जाए,
२. उन्हें शहर के मुख्य सैर करने के स्थानों और पार्कों में आने का निषेध किया जाए,
३. वेश्याओं का नाच कराने के लिए एक भारी टैक्स लगाया जाए, और ऐसे जलसे किसी हालत में खुले स्थानों में न हों।
प्रोफेसर रमेशदत्त ने उसका समर्थन किया।
सैयद शफयतअली (पें. डिप्टी कले.) ने कहा– इस तजवीज से मुझे पूरा इत्तिफाक है, लेकिन बगैर मुनासिब तरमीम के मैं इसे तसलीम नहीं कर सकता। मेरी राय है कि रिज्योल्यूशन के पहले हिस्से में यह अल्फाज बढ़ा दिए जाएं– बइस्तसनाय उनके, जो नौ माह के अंदर या तो अपना निकाह कर लें या कोई हुनर सीख लें, जिससे वह जाएज तरीके से जिंदगी बसर कर सकें।
कुंवर अनिरुद्धसिंह बोले– मुझे इस तरमीम से पूरी सहानुभूति है। हमें वेश्याओं को पतित समझने का कोई अधिकार नहीं है, यह हमारी परम धृष्टता है। हम रात-दिन जो रिश्वतें लेते हैं, सूद खाते हैं, दीनों का रक्त चूसते हैं, असहायों का गला काटते हैं, कदापि इस योग्य नहीं हैं कि समाज के किसी अंग को नीच या तुच्छ समझें। सबसे नीच हम हैं, सबसे पापी, दुराचारी, अन्यायी हम हैं, जो अपने को शिक्षित, सभ्य, उदार, सच्चा समझते हैं! हमारे शिक्षित भाइयों ही की बदौलत दालमंडी आबाद है, चौक में चहल-पहल है, चकलों में रौनक है। यह मीना बाजार हम लोगों ही ने सजाया है, ये चिड़ियां हम लोगों ने ही फांसी है, ये कठपुतलियां हमने बनाई हैं। जिस समाज में अत्याचारी जमींदार, रिश्वती राज्य-कर्मचारी, अन्यायी महाजन, स्वार्थी बंधु आदर और सम्मान के पात्र हों, वहां दालमंडी क्यों न आबाद हो। हराम का धन हरामकारी और कहां जा सकता है? जिस दिन नजराना, रिश्वत और सूद-दर-सूद का अंत होगा, उसी दिन दालमंडी उजड़ जाएगी, वे चिड़ियां उड़ जाएंगी– पहले नहीं। मुख्य प्रस्ताव इस तरमीम के बिना नश्तर का वह घाव है, जिस पर मरहम नहीं। मैं उसे स्वीकार नहीं कर सकता।
प्रभाकर राव ने कहा– मेरी समझ में नहीं आता कि इस तरमीम का रिज्योल्यूशन से क्या संबंध हैं? इसको आप अलग दूसरे प्रस्ताव के रूप में पेश कर सकते हैं। सुधार के लिए आप जो कुछ कर सकें, वह सर्वथा प्रशंसनीय है, लेकिन यह काम बस्ती से हटाकर भी उतना ही आसान है, जितना शहर के भीतर, बल्कि वहां सुविधा अधिक हो जाएगी।
अबुलवफा ने कहा– मुझे इस तरमीम से पूरा इत्तफाक है।
अब्दुललतीफ बोले– बिना तरमीम के मैं रिज्योल्यूशन को कभी कबूल नहीं कर सकता।
दीनानाथ तिवारी ने भी तरमीम पर जोर दिया है।
पद्मसिंह बोले– इस प्रस्ताव से हमारा उद्देश्य वेश्याओं को कष्ट देना नहीं, वरन उन्हें सुमार्ग पर लाना है, इसलिए मुझे इस तरमीम के स्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं हैं।
सैयद तेगअली ने फर्माया-तरमीम से असल तजवीज की मंशा फीत हो जाने का खौफ है। आप गोया एक मकान का सदर दरवाजा बंद करके पीछे की तरफ दूसरा दरवाजा बना रहे हैं। यह गैरमुमकिन है कि वे औरतें, जो अब तक ऐश और बेतकल्लुफी की जिंदगी बसर करती थीं, मेहनत और मजदूरी की जिंदगी बसर करने पर राजी हो जाएं। वह इस तरमीम से नाजायज फायदा उठाएंगी, कोई अपने बालाखाने पर सिंगार की एक मशीन रखकर अपना बचाव कर लेंगी, कोई मोजे की मशीन रख लेंगी, कोई पान की दूकान खोल लेंगी, कोई अपने बालाखाने पर सेब और अनार के खोमचे सजा देंगी। नकली निकाह और फरजी शादियों का बाजार गर्म हो जाएगा और इस परदे की आड़ में पहले से भी ज्यादा हरामकारी होने लगेगी। इस तरमीम को मंजूर करना इंसानी खसलत से बेइल्मी का इजहार करना है।
हकीम शोहरत खां ने कहा– मुझे सैयद तेगअली के खयालात बेजा मालूम होते हैं। पहले इन खबीस हस्तियों को शहरबदर कर देना चाहिए। इसके बाद अगर वह जाएज तरीके पर जिंदगी बसर करना चाहें, तो काफी इत्मीनान के बाद उन्हें इंतहान शहर में आकर आबाद होने की इजाजत देनी चाहिए। शहर का दरवाजा बंद नहीं है जो चाहे यहां आबाद हो सकता है। मुझे काबिले यकीन है कि तरमीम से इस तजवीज का मकसद गायब हो जाएगा।
शरीफहसन वकील बोले– इसमें कोई शक नहीं कि पंडित पद्मसिंह एक बहुत ही नेक और रहमी बुजुर्ग हैं, लेकिन इस तरमीम को कबूल करके उन्होंने असल मकसद पर निगाह रखने के बजाए हरदिल अजीज बनने की कोशिश की है। इससे तो यही बेहतर था कि यह तजवीज पेश ही न की जाती। सैयद शराफतअली साहब ने अगर ज्यादा गौर से काम लिया होता, तो वह कभी यह तरमीम पेश न करते।
शाकिरबेग ने कहा– कंप्रोमाइज मुलकी मुआमिलात में चाहे कितना ही काबिल-तारीफ हो, लेकिन इखलाकी मामलात में वह सरासर काबिले-एतराज है। इससे इखलाकी बुराइयों पर सिर्फ परदा पड़ जाता है।
सभापति सेठ बलभद्रदास ने रिज्योल्यूशन के पहले भाग पर राय ली। नौ सम्मतियां अनुकूल थीं, आठ प्रतिकूल। प्रस्ताव स्वीकृत हो गया।
फिर तरमीम पर राय ली गई, आठ आदमी उसके अनुकूल थे, आठ प्रतिकूल, तरमीम भी पास हो गई। सभापति ने उसके अनुकूल राय दी। डॉक्टर श्यामाचरण ने किसी तरफ राय नहीं दी।
प्रोफेसर रमेशदत्त और रुस्तम भाई और प्रभाकर राव ने तरमीम के स्वीकृत हो जाने में अपनी हार समझी और पद्मसिंह की ओर इस भाव से देखा, मानों उन्होंने विश्वासघात किया है। कुंवर साहब के विषय में उन्होंने स्थिर किया कि बातूनी, शक्की और सिद्धांतहीन मनुष्य है।
अबुलवफा और उसके मित्रगण ऐसे प्रसन्न थे, मानों उन्हीं की जीत हुई। उनका यों पुलकित होना प्रभाकर राव और उसके मित्रों के हृदय में कांटे की तरह गड़ता था।
प्रस्ताव के दूसरे भाग पर सम्मति ली गई। प्रभाकर राव और उसके मित्रों ने इस बार उसका विरोध किया। वह पद्मसिंह को विश्वासघात का दंड देना चाहते थे। यह प्रस्ताव अस्वीकृत हो गया। अबुलवफा और उनके मित्र बगलें बजाने लगे।
अब प्रस्ताव के तीसरे भाग की बारी आई। कुंवर अनिरुद्धसिंह ने उसका समर्थन किया। हकीम शोहरतखां, सैयद शफकतअली, शरीफ हसन और शाकिरबेग ने भी उसका अनुमोदन किया। लेकिन प्रभाकर राव और उनके मित्रों ने उसका भी विरोध किया। तरमीम के पास हो जाने के बाद उन्हें इस संबंध में अन्य सभी उद्योग निष्फल मालूम होते थे। वह उन लोगों में थे, जो या तो सब लेंगे या कुछ न लेंगे। प्रस्ताव अस्वीकृत हो गया।
कुछ रात गए सभा समाप्त हुई। जिन्हें हार की शंका थी, वह हंसते हुए निकले, जिन्हें जीत का निश्चय था, उनके चेहरों पर उदासी छाई हुई थी।
चलते समय कुंवर साहब ने मिस्टर रुस्तम भाई से कहा– यह आप लोगों ने क्या कर दिया?
रुस्तम भाई ने व्यंग्य भाव से उत्तर दिया– जो आपने किया, वही हमने किया। आपने घड़े में छेद कर दिया, हमने उसे पलट दिया। परिणाम दोनों का एक ही है।
सब लोग चले गए। अंधेरा हो गया। चौकीदार और माली भी फाटक बंद करके चल दिए, लेकिन पद्मसिंह वहीं घास पर निरुत्साह और चिंता की मूर्ति बने हुए बैठे थे।