पंडित पद्मसिंह के चार-पांच मास के सदुद्योग का यह फल हुआ कि बीस-पच्चीस वेश्याओं ने अपनी लड़कियों को अनाथालय में भेजना स्वीकार कर लिया। तीन वेश्याओं ने अपनी सारी संपत्ति अनाथालय के निमित्त अर्पण कर दी, पांच वेश्याएं निकाह करने पर राजी हो गईं। सच्ची हिताकांक्षा कभी निष्फल नहीं होती। अगर समाज में विश्वास हो जाए कि आप उसके सच्चे सेवक हैं, आप उसका उद्धार करना चाहते हैं, आप निःस्वार्थ हैं, तो वह आपके पीछे चलने को तैयार हो जाता है। लेकिन यह विश्वास सच्चे सेवाभाव के बिना कभी प्राप्त नहीं होता। जब तक अंतःकरण दिव्य और उज्ज्वल न हो, वह प्रकाश का प्रतिबिंब दूसरों पर नहीं डाल सकता। पद्मसिंह में सेवाभाव का उदय हो गया था। हममें कितने ही ऐसे सज्जन हैं, जिनके मस्तिष्क में राष्ट्र की कोई सेवा करने का विचार उत्पन्न होता है, लेकिन बहुधा वह विचार ख्याति-लाभ की आकांक्षा से प्रेरित होता है, हम वह काम करना चाहते हैं, जिसमें हमारा नाम प्राणि-मात्र की जिह्वा पर हो, कोई ऐसा लेख अथवा ग्रंथ लिखना चाहते हैं, जिसकी लोग मुक्त कंठ से प्रशंसा करें, और प्रायः हमारे इस स्वार्थ का कुछ-न-कुछ बदला भी हमको मिल जाता है, लेकिन जनता के हृदय में हम-घर नहीं कर सकते। कोई मनुष्य, चाहे वह कितने ही दुख में हो, उस व्यक्ति के सामने अपना शोक प्रकट नहीं करना चाहता, जिसे वह अपना सच्चा मित्र समझता हो। पद्मसिंह को अब दालमंडी में जाने का बहुत अवसर मिलता था और वह वेश्याओं के जीवन का जितना भी अनुभव करते थे, उतना ही उन्हें दुख होता था। ऐसी-ऐसी सुकोमल रमणियों को भोग-विलास के लिए अपना सर्वस्व गंवाते देखकर उनका हृदय करुणा से विह्वल हो जाता था, उनकी आंखों से आंसू निकल पड़ते थे। उन्हें अब ज्ञात हो रहा था कि ये स्त्रियां विचारशून्य नहीं, भावशून्य नहीं, बुद्धिहीन नहीं, लेकिन माया के हाथों में पड़कर उनकी सारी सद्वृत्तियां उल्टे मार्ग पर जा रही हैं, तृष्णा ने उनकी आत्माओं को निर्बल, निश्चेष्ट बना दिया है। पद्मसिंह इस मायाजाल को तोड़ना चाहते थे, वह उन भूली हुई आत्माओं को सचेत किया चाहते थे, वह उनको इस अज्ञानावस्था से मुक्त किया चाहते थे, पर मायाजाल इतना दृढ़ था और अज्ञान-बंधन इतना पुष्ट और निद्रा इतनी गहरी थी कि पहले छह महीनों में उससे अधिक सफलता न हो सकी, जिसका ऊपर वर्णन किया जा चुका है। शराब के नशे में मनुष्य की जो दशा हो जाती वही दशा इन वेश्याओं की हो गई थी।
उधर प्रभाकर राव और उनके मित्रों ने उस प्रस्ताव के शेष भागों को फिर बोर्ड में उपस्थित किया। उन्होंने केवल पद्मसिंह से द्वेष हो जाने के कारण उन मंतव्यों का विरोध किया था, पर अब पद्मसिंह का वेश्यानुराग देखकर वह उन्हीं के बनाए हुए हथियारों से उन पर आघात कर बैठे। पद्मसिंह उस दिन बोर्ड नहीं गए, डॉक्टर श्यामाचरण नैनीताल गए हुए थे। अतएव वे दोनों मंतव्य निर्विघ्न पास हो गए।
बोर्ड की ओर से अलईपुर के निकट वेश्याओं के लिए मकान बनाए जा रहे थे। लाला भगतराम दत्तचित्त होकर काम कर रहे थे। कुछ कच्चे घर थे, कुछ पक्के, कुछ दुमंजिले, एक छोटा-सा औषधालय और एक पाठशाला भी बनाई जा रही थी। हाजी हाशिम ने एक मस्जिद बनवानी आरंभ की थी और सेठ चिम्मनलाल की ओर एक मंदिर बन रहा था। दीनानाथ तिवारी ने एक बाग की नींव डाल दी थी। आशा तो थी कि नियत समय के अंदर भगतराम काम समाप्त कर देंगे, मिस्टर दत्त और पंडित प्रभाकर राव तथा मिस्टर शाकिरबेग उन्हें चैन न लेने देते थे। लेकिन काम बहुत था, और बहुत जल्दी करने पर भी एक साल लग गया। बस इसी की देर थी। दूसरे दिन वेश्याओं को दालमंडी छोड़कर इस नए मकानों में आबाद होने का नोटिस दे दिया गया।
लोगों को शंका थी कि वेश्याओं की ओर से इसका विरोध होगा, पर उन्हें यह देखकर आमोदपूर्ण आश्चर्य हुआ कि वेश्याओं ने प्रसन्नतापूर्वक इस आज्ञा का पालन किया। सारी दालमंडी एक दिन में खाली हो गई। जहां निशि-वासर एक श्री-सी बरसती थी, वहां संध्या होते-होते सन्नाटा छा गया।
महबूबजान एक धन-संपन्न वेश्या थी। उसने अपना सर्वस्व अनाथालय के लिए दान कर दिया था। संध्या समय सब वेश्याएं उनके मकान में एकत्रित हुईं, वहां एक महती सभा हुई। शाहजादी ने कहा– बहनो, आज हमारी जिंदगी का एक नया दौर शुरू होता है। खुदाताला हमारे इरादे में बरकत दे और हमें नेक रास्ते पर ले जाए। हमने बहुत दिन बेशर्मी और जिल्लत की जिंदगी बसर की, बहुत दिन शैतान की कैद में रहीं। बहुत दिनों तक अपनी रूह (आत्मा) और ईमान का खून किया और बहुत दिनों तक मस्ती और ऐशपरस्ती में भूली रहीं। इस दालमंडी की जमीन हमारे गुनाहों से सियाह हो रही है। आज, खुदाबंद करीम ने हमारी हालत पर रहम करके कैदेगुनाह से निजात (मुक्ति) दी है, इसके लिए हमें उसका शुक्र करना चाहिए। इसमें शक नहीं कि हमारी कुछ बहनों को यहां से जलावतन होने का कलंक होता होगा, और इसमें भी शक नहीं है कि उन्हें आने वाले दिन तारीक नजर आते होंगे। उन बहनों से मेरा यही इल्तमास है कि खुदा ने रिज्क (जीविका) का दरवाजा किसी पर बंद नहीं किया है। आपके पास वह हुनर है कि उसके कदरदां हमेशा रहेंगे। लेकिन अगर हमको आइंदा तकलीफें भी हों तो हमको साबिर व शाकिर (शांत) रहना चाहिए। हमें आइंदा जितनी भी तकलीफें होंगी, उतना ही हमारे गुनाहों का बोझ हल्का होगा। मैं फिर से खुदा से दुआ करती हूं कि वह हमारे दिलों को अपनी रोशनी से रौशन करे और हमें राहे नेक पर लाने की तौफीक (सामर्थ्य) दे दे।
रामभोलीबाई बोली– हमें पद्मसिंह शर्मा को हृदय से धन्यवाद देना चाहिए, जिन्होंने हमको धर्म-मार्ग दिखाया है। उन्हें परमात्मा सदा सुखी रखे।
जोहरा जान बोली– मैं अपनी बहनों से यही कहना चाहती हूं कि वह आइंदा से हलाल-हराम का खयाल रखें। गाना-बजाना हमारे लिए हलाल है। इसी हुनर में कमाल हासिल करो। बदकार रईसों के शुहबत (कामातुरता) का खिलौना बनना छोड़ना चाहिए। बहुत दिनों तक गुनाह की गुलामी की। अब हमें अपने को आजाद करना चाहिए। हमको खुदा ने क्या इसलिए पैदा किया है कि अपना हुस्न, अपनी जवानी, अपनी रूह, अपना ईमान, अपनी गैरत, अपनी हया, हरामकार शुहबत-परस्त आदमियों की नजर करें? जब कोई मनचला नौजवान रईस हमारे ऊपर दीवाना होता जाता है, तो हमको कितनी खुशी होती है। हमारी नायिका फूली नहीं समाती। सफरदाई बगलें बजाने लगते हैं और हमें तो ऐसा मालूम होता है, गोया सोने की चिड़िया फंस गई, लेकिन बहनो, यह हमारी हिमाकत है। हमने उसे अपने दाम में नहीं फंसाया, बल्कि उसके दाम में खुद फंस गईं। उसने सोने और चांदी से हमको खरीद लिया। हम अपनी अस्मत (पवित्रता) जैसी बेबहा (अमूल्य) जिन्स खो बैठीं। आइंदा से हमारा वह वतीरा (ढंग) होना चाहिए कि अगर अपने में से किसी को बुराई करते देखें, तो उसी उक्त बिरादरी से खारिज कर दें।
सुन्दरबाई ने कहा– जोहरा बहन ने बहुत अच्छी तजबीज की है। मैं भी यही चाहती हूं। अगर हमारे यहां किसी की आमदरफ्त होने लगे, तो पहले यह देखना चाहिए कि वह कैसा आदमी है। अगर उसे हमसे मुहब्बत हो और अपना दिल भी उस पर आ जाए तो शादी करनी चाहिए। लेकिन अगर वह शादी न करके महज शुहबतपरस्ती के इरादे से आता हो, तो उसे फौरन दुत्कार देना चाहिए। हमें अपनी इज्जत कौड़ियों पर न बेचनी चाहिए।
रामप्यारी ने कहा– स्वामी गजानन्द ने हमें एक किताब दी है, जिसमें लिखा है कि सुंदरता हमारे पूर्व जन्म के कुछ अच्छे कर्मों का फल है, लेकिन हम अपने पूर्व जन्म की कमाई भी इस जन्म में नष्ट कर देती हैं। जो बहने जोहरा की बात को पसंद करती हों, वे हाथ उठा दें।
इस पर बीस-पच्चीस वेश्याओं ने हाथ उठाए।
रामप्यारी ने फिर कहा– जो इसें पसंद न करती हों, वह भी हाथ उठा दें। इस पर एक भी हाथ न उठा।
रामप्यारी– कोई हाथ न उठा। इसका यह आशय है कि हमने जोहरा की बात मान ली। आज का दिन मुबारक है।
वृद्धा महबूब जान बोली– मुझे कहते हुए यही डर लगता है कि तुम लोग कहोगी, सत्तर चूहे खाकर बिल्ली चली हज को, पर आज के सातवें दिन मैं सचमुच हज करने चली जाऊंगी। मेरी जिंदगी तो जैसे कटी वैसे कटी, पर इस वक्त तुम्हारी यह नीयत देखकर मुझे कितनी खुशी हो रही है, वह मैं जाहिर नहीं कर सकती। खुदा-ए-पाक तुम्हारे इरादों को पूरा करे।
कुछ वेश्याएं आपस मे कानाफूसी कर रही थीं। उनके चेहरों से मालूम होता था कि ये बातें उन्हें पसंद नहीं आती, लेकिन उन्हें कुछ बोलने का साहस न होता था छोटे विचार पवित्र भावों से सामने दब जाते हैं।
इसके बाद यह सभा समाप्त हुई और वेश्याओं ने पैदल अलईपुर की ओर प्रस्थान किया, जैसे यात्री किसी धाम का दर्शन करने जाते हैं।
दालमंडी में अंधेरा छाया हुआ था। न तबलों की थाप थी, न सारंगियों की अलाप, न मधुर स्वरों का गाना, न रसिकजनों का आना-जाना। अनाज कट जाने पर खेत की जो दशा हो जाती है, वही दालमंडी की हो रही थी।