*परमपिता परमात्मा ने सुंदर सृष्टि की रचना करके मनुष्य को धरती पर भेजा , सुंदर शरीर के साथ सुंदर एवं तर्कशील बुद्धि प्रदान कर दी परंतु मनुष्य इस संसार में आकर के तरह-तरह के आडंबर (छद्मवेष) करता है | अपने वास्तविक स्वरूप का त्याग करके आडंबर बनाकर समाज के साथ छल करता है | वह शायद नहीं जानता कि आडंबर करके क्षण भर के लिए किसी का प्रतिबिंब तो बना जा सकता है परंतु किसी का वास्तविक तेज नहीं लिया जा सकता | जिस प्रकार शेर की खाल ओढ़ने वाला व्यक्ति वास्तव में शेर नहीं होता वह शेर होने का दिखावा तो कर सकता है लेकिन अंदर से भयभीत होता है कि कहीं वास्तव में उसके सामने असली शेर ना आ जाय , आडंबर करने वालों की भी यही स्थिति होती है | इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति के भीतर कुछ न कुछ विशेष प्रतिभा छिपी हुई होती है परंतु उसकी वह प्रतिभा प्रस्फुटित नहीं हो पाती क्योंकि उसने अपने ऊपर आडंबरों के इतने आवरण डाल रखे हैं कि उसकी वास्तविक प्रतिभा का इस संसार में कभी अनावरण ही नहीं पाता | मनुष्य का वास्तविक उद्देश्य होता है ईश्वर की प्राप्ति करना परंतु मनुष्य इन्हीं आडंबरों के चक्कर में पड़कर अपने लक्ष्य से भटक जाता है | जीवन की सच्चाई से मुंह मोड़ के लोग कभी शांति की प्राप्ति नहीं कर पाते त्रिकालदर्शी रावण ने आडंबर से तपसी का वेश बनाकर सीता जी के साथ छल किया परंतु ऐसा करते समय वह रावण जिससे देवता भी भयभीत रहते थे वह भी अपने मन में भयभीत ही था | गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं "सो दसकंठ स्वान कि नाईं ! इत उत चितइ चला भड़िहाई !! कहने का तात्पर्य है कि आडंबर एवं छल से बनाया हुआ स्वरूप मनुष्य को भयभीत तो करता ही है साथ ही उसके जीवन को नकारात्मक भी कर देता है क्योंकि वह अपने वास्तविक स्वरूप को संसार से तो छुपाता ही है साथ ही वह स्वयं भी अपने वास्तविक स्वरूप को भूलने लगता है | इसलिए मनुष्य को आडंबर से बचते हुए अपने वास्तविक स्वरूप का प्रदर्शन ही करना चाहिए |*
*आज संसार में आडंबर का बोलबाला है | प्रत्येक धर्म में अपने वास्तविक स्वरूप को छुपाकर आडंबर वेषधारी अनेकों लोग घूम रहे हैं | यह कलयुग का प्रभाव है | अनेक लोग अनेक प्रकार के आडंबर बनाकर संसार को ठगने का कार्य कर रहे ऐसे सभी लोगों से मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहूंगा कि उन को मानस का अध्ययन करने की आवश्यकता है जहां पर गोस्वामी तुलसीदास जी ने स्पष्ट लिख दिया है :- लखि कुवेष जग वंचक जेऊ ! तेज प्रताप पूजअति तेऊ !! उघरहिं अंत ना होइ निवाहू ! कालनेमि जिमि रावन राहू !!" अर्थात जो आडंबर वेषधारी ठग हैं उन्हें भी अच्छा साधु का वेश बनाए हुए देखकर लोग उनके तेज के प्रताप का पूजन तो करने लगते हैं परंतु एक दिन ऐसा भी आता है कि जब उनके आडंबर का भेद खुल ही जाता है और इस तरह अंत तक उनका कपट नहीं निभाता जैसे कालनेमि , रावण और राहु का हाल हुआ | कहने का तात्पर्य है कि मनुष्य को आडंबर का सहारा ना लेकर अपनी वास्तविक प्रतिभा को तेजस्वी बनाने का प्रयास करते रहना चाहिए | एक दिन ऐसा जरूर आएगा जबकि वास्तविक प्रतिभा ही मनुष्य को समाज में स्थापित कर देगी उसे किसी भी प्रकार का आडंबर करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी | अपनी वास्तविकता को छिपाकर आवरण ओढ़कर या आडंबर करके जो कार्य किया जाता है वह तत्काल तो लाभदायक हो सकता है परंतु उसका परिणाम अंततोगत्वा दुखद ही होता है | इसलिए व्यक्ति को अपनी सच्चाई नहीं छुपानी चाहिए , आडंबर युक्त जीवन का चयन नहीं करना चाहिए बल्कि सच्चाई के साथ जीवन जीना चाहिए | आडंबर से स्वयं को बचाते हुए सच्चाई के साथ जीने वाला मनुष्य आत्म बल प्राप्त करता है जिसके माध्यम से वह अध्यात्म की ओर बढ़ सकता है और आध्यात्मिक जीवन में प्रवेश पा सकता है अन्यथा आडंबर करने से कुछ भी नहीं प्राप्त होता और जो अपनी पूंजी होती है (वास्तविक प्रतिभा की) वह भी नष्ट हो जाती है |*
*किसी भी प्रकार का आडंबर बहुत दिन तक नहीं चल सकता इसलिए इससे बचने का प्रयास प्रत्येक मनुष्य को करना चाहिए |*