*सनातन धर्म एवं उसकी मान्यताएं इतनी दिव्य रही हैं कि वर्ष का प्रत्येक दिन , महीना एवं वर्षारंभ सब कुछ प्रकृति के अनुसार मनाए जाने की परंपरा सनातन धर्म में देखी जा सकती है | जब प्रकृति अपना श्रृंगार कर रही होती है तब सनातन धर्म का नव वर्ष मनाया जाता है | बारह महीनों में चैत्र माह को मधुमास कहा गया है | प्रकृति में चारों ओर फैली हरियाली , खुशहाली एवं पतझड़ के बाद जब वृक्षों पर नई कोपलें फूटती हैं तब प्रकृति अपना श्रृंगार करती है और ऐसे ही अवसर पर एक नई ऊर्जा , नया उत्साह मानव मात्र में संचारित होता है | इसी शुभ अवसर पर प्रकृति में नवीनता देखी जाती है और तब नव वर्ष मनाया जाता है , परंतु सनातन धर्म पर समय-समय पर प्रहार होते आए हैं इसी क्रम में जब अंग्रेजों ने हमारे देश भारत को दासता की जंजीरों में जकड़ा तब उन्होंने सनातन धर्म के नववर्ष को हटाकर जनवरी महीने में अपने अनुसार नव वर्ष मनाने की परंपरा रखी | जब संपूर्ण प्रकृति ठंडी की भीषण मार से ठिठुर रही होती है तब आंग्ल नववर्ष अर्थात १ जनवरी को नया वर्ष मनाया जाता है और प्रत्येक मनुष्य बहुत ही हर्षोल्लास के साथ इस नववर्ष को मनाता हुआ देखा जा रहा है | विचार कीजिए जब हम आग के सहारे बैठकर ठंड से ठिठुर रहे हैं ऐसे में नव वर्ष का उल्लास कैसे मनाया जा सकता है ? हम अपना कार्य तो नए वर्ष के नाम से प्रारंभ कर देते हैं परंतु शायद वह उल्लास देखने को नहीं मिलता है जो उल्लास चैत्र माह में स्वयं मनुष्य के अंदर स्फुरित होता है | इसीलिए सनातन धर्म को दिव्य कहा गया है क्योंकि इसकी प्रत्येक मान्यताएं प्रकृति से जुड़ी हुई होती है |*
*आज संपूर्ण विश्व में अर्ध रात्रि से ही नव वर्ष का पर्व बहुत ही धूमधाम से मनाया जा रहा है परंतु मनुष्य को विचार करना चाहिए कि नया क्या हुआ ? ना प्रकृत में नवीनता है ना मनुष्य के मुखमंडल पर नई ऊर्जा है ऐसे में हम भला नव वर्ष का उत्साह कैसे मना सकते हैं ? कुछ लोग हमें रूढ़िवादी कह सकते हैं परंतु मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" ऐसे सभी लोगों को मात्र इतना ही बताना चाहूंगा कि उन्हें इतिहास के पन्नों में झांक कर देखना चाहिए | जहां यह स्पष्ट देखने को मिल जाता है कि यह अंग्रेजों का नव वर्ष भी कभी अप्रैल माह से ही प्रारंभ होता था जिसका उदाहरण आज भी हमें बैंक एवं समस्त कार्यालयों में देखने को मिलता है जिनका वित्तीय वर्ष आज भी अप्रैल माह से ही प्रारंभ होता है | मैं आधुनिकता का विरोधी कदापि नहीं हूं परंतु आधुनिकता के साथ-साथ अपनी सनातन संस्कृति को भी मानने का पक्षधर हूं | संसार के साथ प्रत्येक मनुष्य को कदम से कदम मिलाकर चलना चाहिए परंतु हम क्या है ? हमारी मान्यताएं क्या थी ? इसे भी कदापि नहीं भूलना चाहिए क्योंकि जो अपने संस्कृति एवं संस्कार को भूलकर आगे बढ़ता है एक दिन पतित अवश्य हो जाता है | आज नव वर्ष खूब धूमधाम से मनाएं परंतु यह याद रखें कि सनातन का नववर्ष चैत्र माह के शुक्ल पक्ष से प्रारंभ होता है | जब खेतों में हरियाली होती है , वृक्षों में नए पल्लव आते हैं एवं प्रकृत अपना सिंगार कर रही होती है तब मानव मात्र में नई ऊर्जा का संचार होता है | परंतु आज हम एक दूसरे की देखी देखा आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे हैं जिससे कहीं ना कहीं हमारी मान्यताओं का ह्रास हो रहा है इसलिए आवश्यक है कि हम अपनी मान्यताओं को संजोए रखें |*
*आज हम अपना कैलेंडर अवश्य बदल सकते हैं परंतु नव वर्ष तो चैत्र माह में ही मनाया जाएगा , जब सभी राजकीय कार्यालयों में वित्तीय वर्ष परिवर्तित होगा तब हमारा भी नव वर्ष मनाया जाएगा |*