29 मई 2021
ये लफ़्ज़ आईने हैं मन की किताब पढ़,
तज़ुर्बा है कई साल का पढ़ कर जरा चल।
हर्फ़ उकेर चार तूं गुमान मत कर,
शौहरत समेटा बहुत, कुछ नेकी तो कर।
बुरे दिन मान ले गुज़र जाएंगे पर,
सुबहा सुहानी आएगी-यक़ीन आज तूं कर।
बदी की डगर बहुत बुरी है मगर,
अब नेकी की राह पर चल निकल।
ख़ंजर भोंक कलेजा छलनी किया,
इत्तेकाम की हल्की बात अब न कर।
देखता है परवर दिगार बात हर,
खाक में मिला दिया कर उधर नज़र।
तालीम ले मज़हबी मदरसों में,
इंसान को शरहदों में नहीं कैद कर।
सबका मालिक वही एक है,
सरजमीं पे विहिश्त रहा है उतर।
पैगंबर नहीं अब फिर से आएगा,
अब अपना फैसला खुद बंदे तूं कर।
खुदाई कर बना पाक राह खुद की,
अमन चैन की अबतो कर गुज़र सफर।
डॉ. कवि कुमार निर्मल
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