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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🐍🏹 *लक्ष्मण* 🏹🐍
🌹 *भाग - ३०* 🌹
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*➖➖➖ गतांक से आगे ➖➖➖*
*लक्ष्मण जी* जैसे ही सीता जी के पास से हटे अवसर देखकर रावण आया और सीता का हरण हो गया | सीता का हरण तभी हुआ जब सीता जी ने *लक्ष्मण जी* के द्वारा खींची गई *लक्ष्मण रेखा* का उल्लंघन किया | भगवत्प्रेमी सज्जनों ! वह रेखा थी नारी की मर्यादा की | प्रत्येक मनुष्य के जीवन में मर्यादा की एक *लक्ष्मण रेखा* होती है किसी को भी इन मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं करना चाहिए , क्योंकि जब भी कोई इन मर्यादाओं का उल्लंघन करता है तो उसके जीवन में संकट आता ही है | किसी भी मनुष्य को उन सीमाओं का उल्लंघन नहीं करना चाहिए जो नैतिकता , वैधानिकता या स्थापित परंपरा के आधार पर समाज में स्वीकारी गई हैं | जब भी कोई ऐसे प्रतिबंधों का उल्लंघन करता है तो उस पर *लक्ष्मण रेखा पार कर दी* का आरोप लगा दिया जाता है | किसी भी नारी की मर्यादा अपने घर के पुरुषों के साथ ही होती है | अकेली पर पुरुष से बात करने का कोई औचित्य नहीं है | विचार कीजिए की जब जगतजननी माता सीता जी मर्यादा का उल्लंघन करके स्वयं को नहीं बचा पाई तो साधारण स्त्री एवं मनुष्यों का क्या हाल होगा ? आज समाज में कौन कितनी मर्यादा का पालन कर रहा यह स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है , इसी के परिणाम स्वरूप आज चारों और पापाचार , व्यभिचार फल फूल रहा है | ऐसा नहीं है कि आज मर्यादा या मर्यादा का पालन करने वाले नहीं रह गए हैं परंतु यह भी सत्य है कि अधिकतर लोग मर्यादा की *लक्ष्मण रेखा* लांघते हुए दिख रहे हैं | जो गुण त्रेता में थे वही गुण आज भी हैं पर आज गुण ग्राहकों की कमी स्पष्ट दिखाई पड़ रही है | ऐसे में *"पदमाकर जी"* की लिखी हुई कुछ लाइनें बरबस ही याद हो जाती हैं कि आज कलयुग का प्रभाव क्या है :+----
*वेदन के पढ़ैया रोज नाहीं मिलै ,*
*झूठ के बोलैया को रुपैया खूब खाना है !*
*ब्याही बिन ब्याही के गले जेवरात नाहीं ,*
*बेश्यन के गले बीच हीरा लपटाना है !!*
*कहैं "पदमाकर" गुण पैसा के पसेरी भर ,*
*रुपैया के टुकड़ा भर माहुर बिकाना है !*
*हे रे देखो कोई गुण के न दोष दिहेव ,*
*गुण न हेरानो गुण ग्राहक हेराना है !!*
*गुण कौन पूछे कोउ अवगुण की बात करें ,*
*काह भयउ दयऊ कलिकाल यह खराना है !*
*वेद औ पुरान हंसी ठट्ठन नां डारि देत ,*
*चुंगुल चवांइन कर मान ठहराना है !!*
*कहैं "पदमाकर" कुछ कहने कि बात नहीं ,*
*जगत की रीति देख चुप मन माना है !*
*खोलि के देखो तो हियं भांतिन की भाति ,*
*गुण न हेरानो गुण ग्राहक हेराना है !!*
कहने का तात्पर्य यह है कि गुण एवं मर्यादा आज भी वही है परंतु गुण ग्राहक नहीं रह गये हैं | *लक्ष्मण रेखा* का उल्लंघन आज प्रतिक्षण हो रहा है | *लक्ष्मण जी* भगवान श्रीराम को खोजते हुए उनके पास पहुंच गए | श्री राम ने *लक्ष्मण* को देखकर किसी अनजान आशंका से चिंतित होकर कहने लगे | *हे लक्ष्मण* !:---
*जनक सुता परिहरेहूं अकेली !*
*आयहु तात वचन मम पेली !!*
*निश्चर निकर फिरहिं वन मांहीं !*
*मम मन सीता आश्रम नाहीं !!*
श्रीराम ने कहा कि हे *लक्ष्मण* ! तुम यहां ?? मेरी आज्ञा का पालन करने की अपेक्षा तुम सीता को अकेला छोड़कर यहां चले आए ? क्या तुम्हें याद नहीं रह गया था कि मैंने तुम्हें आदेश दिया था कि किसी भी दशा में सीता को अकेली ना छोड़ना ? *लक्ष्मण* मेरे मन में आशंका हो रही है जनक नंदिनी अब आश्रम में नहीं है | भगवत्प्रेमी सज्जनों ! विचार कीजिए कि उस समय *लक्ष्मण* की क्या दशा हो रही होगी ! वे अपने भैया को कैसे बतायें कि उन्होंने किन परिस्थितियों में आश्रम का त्याग किया | सेवक कभी अपने स्वामी की बुराई ना तो कर सकता है और ना ही सुन सकता है *लक्ष्मण जी* तो सीता जी को अपनी माता मानते थे तो पुत्र अपनी मां का के दोष कैसे उजागर कर सकता है | *लक्ष्मण जी* कैसे श्री राम को बताएं कि माता जी ने क्या-क्या लांछन लगाया है | उन्होंने उस विषय को ही समाप्त कर दिया अर्थात भगवान से कुछ नहीं कहा *लक्ष्मण जी* की आंखों में आंसू भर गए और वे श्रीराम के पैर पकड़कर कहते हैं :---
*गहि पद कमल अनुज कर जोरी !*
*कहेउ नाथ कछु मोहि न खोरी !!*
सारे विषय को समाप्त करते हुए *लक्ष्मण जी* हाथ जोड़कर कहते हैं :- भैया ! जो भी हुआ उसमें मेरा कोई भी दोष नहीं है | श्री राम ने *लक्ष्मण* को उठाया और कहा कि हे भैया ! हमें अब आश्रम पहुंचना चाहिए | दोनों भाई जब आश्रम में पहुंचे तो वहां सीता जी नहीं थी सीता को ना पाकर श्री राम दुखी हो गये | *हाय सीता !* कर विलाप करते हुए श्री राम जी को *लक्ष्मण* समझाते हुए कहते हैं कि भैया हमें रुदन करने की अपेक्षा माता जी की खोज करनी चाहिए | *लक्ष्मण जी* के समझाने पर श्री राम जी सीता जी को खोजते हुए आगे बढ़े | वे वन के पशु पक्षियों , वृक्षों , भंवरों आदि से सीता का पता पूछ रहे |
*हे वन के खग कुछ तो कहो ,*
*तुमने कहूं सीता जात निहारी !*
*हिरनों के झुंड बताओ हमें ,*
*मृगनैनी हमारी किधर को सिधारी !!*
*वृक्षों तुम ही संकेत करो ,*
*खोजहुँ कहँ जाइ विदेहकुमारी !*
*"अर्जुन" आज बने विरही ,*
*नरलीला करत अवधेश बिहारी !!*
इस प्रकार प्रभु श्रीराम अनुज *लक्ष्मण* के साथ सीता का पता सब से पूछते हुए जब आगे बढ़े तो मार्ग में उन्हें घायल जटायु मिला | जटायु की घायल अवस्था देखकर बड़े प्रेम से भगवान श्री राम जटायु को अपनी गोद में लेकर उसके मस्तक पर हाथ फेरा और भगवान रुदन करने लगे | *सज्जनों !* यह भगवान की भक्तवत्सलता ही है कि जो श्री राम :---
*न रोए वन गमन में श्री पिता की वेदनाओं पर ,*
*उठाकर गीध को निज गोद में आंसू बहाते हैं !*
*न जाने कौन से गुण पर दयानिधि रीझ जाते हैं !!*
जटायू ने कहा हे राम ! मेरा यह हाल रावण ने किया है और वही सीता को भी ले गया है | मैंने उसे रोकने का प्रयास किया परंतु सफल नहीं हो पाया | इस प्रकार बताकर जटायु ने शरीर छोड़ दिया | श्री राम ने जटायु की अंतिम क्रिया तो संपन्न ही की साथ में वह गति भी प्रदान की जो वर्षों तक तपस्या करके भी योगीजन नहीं पाते हैं | इस प्रकार श्री राम *लक्ष्मण* को साथ में लेकर सीता की खोज करते हुए वन पथ पर आगे बढ़े |
*शेष अगले भाग में :----*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
प्रवक्ता
श्रीमद्भागवत/श्रीरामकथा
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्याजी
(उत्तर-प्रदेश)
9935328830
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