*इस सृष्टि में परमात्मा की अनुपम कृति मनुष्य कहीं गयी है | इससे सुंदर शायद कोई रचना परमात्मा ने नहीं किया | सभी प्राणियों में मनुष्य सर्वश्रेष्ठ इसलिए है क्योंकि ईश्वर ने उसको सोचने समझने की शक्ति दी है , और हमारे महापुरुषों ने स्थान - स्थान पर मनुष्य को सचेत करते हुए पहले मनन करने फिर क्रियान्वयन करने का निर्देश दिया है | मनुष्य के लिए कुछ भी असंभव नहीं आवश्यकता है कर्म करने की , क्योंकि यहां बिना कर्म के कुछ भी प्राप्त नहीं होता है | सब कुछ इस संसार में उपस्थित होने के बाद भी बिना कर्म के मनुष्य को प्राप्त नहीं हो सकता है | यदि मनुष्य विद्वान बनना चाहता है तो उसे विद्याध्ययन करना पड़ेगा | घर पर अनेक ग्रंथ होने के बाद भी जब तक मनुष्य उसका अध्ययन नहीं करेगा तब तक उस ग्रंथ विषयक
ज्ञान उसको नहीं प्राप्त हो पाएगा | विद्वान बनने के लिए उन्हें ग्रंथों को पढ़ना पड़ेगा | हमारे महापुरुषों ने अध्ययन , मनन , चिंतन करते हुए समाज को नयी दिशा दी है | जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता अर्जित करने के लिए उस विषय विशेष का ज्ञान होना परम आवश्यक है | यदि मनुष्य ऐसा नहीं करता है तो उसका जीवन पशु की तरह खाने और सोने में ही व्यतीत हो जाता है , और वह अपने जीवन में कुछ भी नहीं कर पाता है | सनातन
धर्म में जीवन की सभी गहराइयों को नापने के लिए अनेकों ग्रंथ उपलब्ध है , परंतु उनका ज्ञान प्राप्त करने के लिए हमें उनका अध्ययन करना होगा अन्यथा कुछ भी नहीं प्राप्त हो सकता है |* *आज मनुष्य की प्रवृत्ति इस प्रकार बन गयी है कि वह आलस्य एवं प्रमाद में पड़़करके बिना कुछ कर्म किये ही सब कुछ प्राप्त कर लेना चाहता है | पड़ोसी के ऊंचे भवन को देख कर के वह भी अपना भवन उतना ही ऊंचा बनाना चाहता है , परंतु पड़ोसी ने अपने भवन को ऊंचा बनाने के लिए क्या कर्म किया है यह नहीं देखना चाहता | किसी विद्वान की विद्वता को देख कर के लोग स्वयं विद्वान तो बनना चाहते हैं , लेकिन घर की अलमारी में रखी हुयी पुस्तकों का अध्ययन नहीं करना चाहते , क्योंकि उन्हें यह व्यर्थ का कार्य लगता है | बिना अध्ययन किए ही वे विद्वान बन जाना चाहते हैं | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज के समाज को देख रहा हूं कि लोग घर में रखे हुये धर्मग्रंथों का अध्ययन न करके गूगल पर उपलब्ध सामग्रियों को ही पढ़ कर के विद्वान बनना चाहते हैं | जिस प्रकार मानव जीवन में सब कुछ अच्छा नहीं होता है ठीक उसी प्रकार गूगल पर भी सारी जानकारियां उचित एवं सत्य नहीं मानी जा सकती हैं | सनातन के अनेक ऐसे विषय हैं जिन पर यदि शोध किया जाए तो सनातन के धर्म ग्रंथों एवं गूगल में विशाल विरोधाभास देखा जा सकता है , परंतु आज के विद्वान स्वयं तो भ्रमित हो ही रहे हैं और अपने साथ समाज को भी भ्रमित करने का कार्य कर रहे हैं | प्रत्येक मनुष्य को अपने धर्म के विषय में यदि ज्ञान प्राप्त करना है तो नियम पूर्वक अपने धर्म ग्रंथों का अध्ययन करना चाहिए , क्योंकि जो भी मनुष्य अध्ययन करके विद्वान बनता है वह विनयशील होता है ! इसके विपरीत इधर - उधर से अधूरा ज्ञान प्राप्त करने वाला विद्वान तो बन सकता है परंतु उसमें अहंकार की मात्रा प्रबल दिखाई पड़ती है | अत: अध्ययन शील बने रहें |* *यह संसार कर्मक्षेत्र है यहां बिना कर्म के कुछ भी नहीं प्राप्त हो सकता है | अत: क्षेत्रविशेष में कुछ विशेष प्राप्त करने के लिए कर्मविशेष करना ही पड़ेगा |*