*परमात्मा की बनाई हुई यह महान सृष्टि इतनी रहस्यात्मक किससे जानने और समझने मनुष्य का पूरा जीवन व्यतीत हो जाता है , परंतु वह सृष्टि के समस्त रहस्य को जान नहीं पाता है | ठीक उसी प्रकार इस धरा धाम पर मनुष्य का जीवन भी रहस्यों से भरा हुआ है | मानव के रहस्य को आज तक मानव भी नहीं समझ पाया है | इन रहस्यों को समझाने का कार्य हमारे सनातन
धर्म ने किया | जहां हमारे वेद सृष्टि के रहस्य को समझाने का प्रयास करते हैं वही हमारे अन्य धर्मग्रंथ मानव जीवन के रहस्यों को सुलझाने में सहायक सिद्ध हुये हैं | हमारे ऋषियों द्वारा अनेक ग्रंथ ऐसे लिखे गए जिसमें मनुष्य को जीवन के रहस्यों को समझाते हुए जीवन जीने की कला सिखाई गई है | सनातन
धर्म तो इतना व्यापक है कि जहां संसार में मनुष्य की मृत्यु के बाद सब कुछ खत्म मान लिया जाता है वहीं सनातन धर्म मनुष्य की मृत्यु के बाद व्यतीत होने वाले रहस्यों को भी समझाया गया है | हमारे धर्म में मनुष्य जीवन के बाद जीव की क्या स्थिति होती है यदि यह समझना हो तो मनुष्य को गरुण पुराण का पाठ कर लेना चाहिए | इसके अतिरिक्त यदि आध्यात्मिक
ज्ञान चाहिए तो मनुष्य को भगवान श्याम सुंदर कन्हैया के मुखारविंद से उद्धृत हुई श्रीमद्भगवतगीता का पाठ कर लेना चाहिए | कहने का तात्पर्य यह है कि सनातन धर्म ने जीवन के रहस्यों के साथ ही मृत्यु के बाद जीव के रहस्यों का भी प्रतिपादन किया है |* *आज दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि हम अपने धर्म ग्रंथों का अध्ययन करके अन्य ग्रंथों की ओर देख रहे हैं , जहां हमको कुछ तो प्राप्त हो सकता है परंतु सब कुछ कदापि नहीं | हमारे धर्म ग्रंथों पर आज विदेशों में अनुसंधान चल रहा है नए-नए ज्ञान विदेशी वैज्ञानिक एवं चिंतक प्राप्त कर रहे हैं परंतु जहां से इन धर्म ग्रंथों का प्रचलन बढ़ा है , जहां से इनकी उत्पत्ति हुई है वह
देश भारत आज इन धर्म ग्रंथों से विमुख सा होता दिखाई पड़ रहा है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" यह कह सकता हूं कि आज "गीताजयंती" तो संपूर्ण भारत में धूमधाम से मनाई जा रही है परंतु गीता क्या है ?? यह अधिकांश लोग शायद ना जानते होंगे ! क्योंकि उन्होंने कभी जानने का प्रयास ही नहीं किया | आज के ही दिन कुरुक्षेत्र के महा समर में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने मोहान्ध परमवीर अर्जुन को दिव्य गीता का ज्ञान दिया था | ऐसा ज्ञान जो कि मानव को मानव बनाने में अद्भुत कहा जा सकता है | आज हम गीता के ज्ञान का उपदेश तो करते हैं परंतु उसे अपने जीवन में उतारने का प्रयास करते हुए नहीं दिख रहे हैं | आज अन्य देश की सरकारें अपने विद्यालयों में गीता का पाठ अनिवार्य कर रही हैं लेकिन हमारे देश भारत में गीता विद्यालयों में पढ़ाई जाने पर सांप्रदायिकता का रंग दे दिया जाता है | यह हमारे संपूर्ण देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा | गीता का एक-एक शब्द भगवान श्री कृष्ण का वचन है इसे जीवन में उतारने पर यह जीवन के साथ - साथ जीवन के बाद भी अर्थात मृत्यु के बाद भी जीव को सुखद फल देने वाला है |* *पाश्चात्य संस्कृति की चकाचौंध में जिस प्रकार हम अपने धर्म ग्रंथों एवं अपनी मान्यताओं से विमुख हो रहे हैं यह भविष्य के लिए सुखद नहीं कहा जा सकता | आईये अपनी संस्कृति की ओर लौट चलें |*