डंक की चुभन
पानी की तासीर पाने के लिए, छत, घनौची, गली में रखे पानी से भरे ड्रम, गैलन, बोतल, मटका, बाल्टी, जग, ग्लास, कलशा, सुराही टब आदि।
मौसम की गर्म हवा, हरी कोपले वाली टहनियों से टकरा कर पत्तियों को झुलसा जाती। आम, जामुन की बौर की बहार, महुआ के फूल बिखरे हुए। खेत में खीरा, ककड़ी, तरबूज, खरबूजा की पत्ते बेल पानी से भींगी हुई। नमी वाली मिट्टी के पास हरे भरे खड़े फल से लदे शहतूत के पेड़,जिनमे काले, पीले, हरे, लाल गुलाबी खट्टे मीठे गछे फल टहनी से गिर कर पेड़ के नीचे मिट्टी की नमी में मक्खियों से घिरे पड़े।
दूर से उड़ान भरते हुए ततैया अपने पीले पंख को हिलाते हुए। पानी से भरे बर्तनों में अपने ढंक को पानी की बूंदों में चुभो कर उड़ान भरते हुए इधर से उधर भाग जाती। उसकी उड़ान और उसका भागना देख लोग डर जाते। उससे बचने और बचाने की कोशिश करते। यह उन्ही दिनों की बात है। विपिन अपनी ड्यूटी जाने से पहले स्नान ध्यान में मस्त थे। वह उड़ान वापस लिए उनके होठों में ठहरे पानी में अपने डंक को चुभों दिया। उसके हटते ही वह कॉप सा गए। वह अपने होठों को पानी से भिगोने लगे। पर जलन बढ़ती ही जा रही थी वह अपने बदन में लगे साबुन को साफ किया गमछे से पानी पोंछकर उसे लिपटते हुए अपनी पत्नी को आवाज दिया यह देखो पीली वाली मक्खी ने डंक चूभो दिया है। वह अपने हाथ में लगे गीले आटे को रगड़ते हुए आम का अचार लाकर उनके होठों में रगड़ दिया। उनका छोटा बेटा लोहे की चाकू को पत्थर में रगड़कर उनके होठों में सटाया तब जाकर उन्हें आराम मिला। जब उन्होंने अपने होठों को कमरे में लगे आईने में देखा तो अभी होठों पर बाल, बास के फांस की तरह डंक दिखा जिसको उन्होंने अपने नाखून की मद्दत से उसे बाहर खींचा तब जाकर आराम मिला इतनी देर में होठ लाल और फूल गया। उस दिन से सभी उनकी उड़ान से डरते सावधानी से रहते। बर्तनों के पास गिरे पानी को सुखा देते। बर्तनों को ढक कर रखते। उनके होठों में दो दिन दर्द बना रहा। वह जब भी नहाने जाते है। उन्हे वहां से भागने के बजाय उन्हें शांत बैठे रहने देते है।