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पहली ड्यूटी

5 मई 2024

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*पहली ड्युटि*

हम सबको पता है कि भारत के बाकी सभी पर्वों की तरह चुनाव का पर्व भी अहम होता है। लोकतंत्र और चुनाव दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं। इसलिए एक लोकतांत्रिक देश में हर दूसरे-तीसरे साल इस पर्व से सामना होता ही है और इसमें शामिल भी होना पड़ता है। चुनावी लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण कड़ी होते हैं सरकारी कर्मचारी जिसे चुनावी परिचर्चा और बहसबाजी में कोई स्थान नहीं दिया जाता है। कभी-कभी चुनाव कराने में सरकारी कर्मियों को जमीन पर किस चुनौतियों से गुजरना पड़ सकता है, उसका एक अनुभव मेरे जेहन में अब भी चस्पां है।  

मुझे भागलपुर पोस्टिंग के दौरान पहली बार चुनाव ड्युटि मिली थी। मुझे  भागलपुर के पिरपैंती विधानसभा क्षेत्र में साहाबाद- सलेमपुर में चार बूथों के लिए मजिस्ट्रेट की ड्युटि दी गई थी। तीन चरणों के ट्रेनिंग के बाद जब पार्टी मिलान का दिन था तो जिलाधिकारी और पुलिस कप्तान दोनों ने चुनाव में प्रति नियुक्त सरकारी कर्मियों को संबोधित किया था। जरूरी दिशानिर्देश देने के बाद जो बात उन्होंने कहीं उसका लब्बोलुबाब यही था कि सारे नियम-कायदों और प्रशासन पर भरोसे से ज्यादा जो फिल्ड में काम आनी है वह है हमारा विवेक। उस घड़ी हमें लगा कि वरिष्ठ अधिकारियों ने जो अंत में कहा था वही उस महीने-डेढ़ महीने की प्रशिक्षण कही जाने वाली कवायद का निचोड़ था।  

चुनाव के दिन से ठीक पहले मैं बाकी कर्मियों की तरह ईवीएम वितरण केन्द्र पर पहुँचा जहाँ से मतदान अधिकारियों का दल, ईवीएम और जरूरी लाॅजिस्टिक वगैरह लेकर बूथ पर जाना था। विधानसभा का चुनाव था और बड़ा जमावड़ा था। मेरे जिम्मे चार बूथ थे। चारों बूथों का मतदान दल और पुलिस पार्टी को लेकर एक यूनिट बना दी गई थी। मैंने गेट पास और तेल का कूपन लिया और वाहन कोषांग के लिए निकल पड़ा। उस बार के लोकसभा चुनाव में पहली बार यह व्यवस्था की गई थी कि कोई भी यूनिट को ट्रैक्टर नहीं दिया जा रहा था, नहीं तो नब्बे के दशक तक टैक्ट्रर या ट्रक या खटारा बस जिसके किस्मत में जो रहता, मिलता था। लेकिन संयोग के हिसाब से हमारी किस्मत उस दिन उतनी अच्छी नहीं थी क्योंकि हमें जो जीप  मिली थी वह अत्यधिक पुरानी और जर्जर थी। लेकिन वहाँ यह सब बोलने-कहने का कोई मतलब नहीं बनता था। हमारी टीम ने अपने आपको उसी गाड़ी में सवार किया और गाड़ी दल-बल सहित चल पड़ी।  

हम लोग कोई सलेमपुर बूथ से कोई दस-बारह किलोमीटर दूर रहे होंगे। उस बियाबान जगह पर जो सड़क थी वह निर्माणाधीन थी। जगह-जगह पर उसमें केवल अर्थफीलिंग के लिए मिट्टी के टीलों को खड़ा करके छोड़ दिया गया था। कोई सत्रह अठारह साल पहले की बात रही होगी। उसमें गाड़ी बमुश्किल दो या तीन गीयर पर धुल का गुबार उड़ाते हुए चल रही थी। गाड़ी दो-तीन किलोमीटर चलने तक कई बार रुकी और चली। लेकिन आखिरी बार जो रुकी तो फिर टस-से-मस न हुई। और करेला चढ़ा नीम का मुहावरा हम लोगों के सामने चरितार्थ हो रहा था। मैं नया-नया था और इसलिए अपने बुकलेट का इस्तेमाल करने में देरी नहीं की। पहले जिला कंट्रोल रूम और उसके बाद कहलगांव बीडीओ को फोन किया। उन लोगों ने आश्वासन दिया कि तत्काल वैकल्पिक व्यवस्था भेजते हैं। जहाँ गाड़ी खराब हुई वह एकदम वीरान जगह था। दोनों तरफ जंगल-झाड़ियाँ। अगले दो-ढाई घंटे तक कोई गाड़ी क्या कोई एक आदमी भी उस रास्ते में नजर नहीं आया। हममें से ही कोई कह रहा था कि ये जगह नक्सल प्रभावित है और ज्यादा देर तक वहाँ रुकना सही नहीं है। पुलिस टीम सभी को उकसा रही थी कि देर तक अगर कुछ नहीं आया तो यहाँ क्या करेंगे, आगे की दूरी के लिए पैदल ही चले जाएंगे। पैदल जाने का नाम लेते ही मेरी नजर सबसे पहले उस जीप ड्राइवर पर पड़ी कि हम लोग तो चले जाएंगे लेकिन ये ड्राइवर इस बियाबान में अकेले क्या करेगा। हम लोगों ने पैदल जाने का विचार त्याग दिया। लेकिन सांझ ढलते जा रही थी।  

तत्काल के आश्वासन के तीन घंटे बाद नीले रंग की सोनालिका ट्रैक्टर हम लोगों के तरफ आते दिखी और मन में कौतूहल हुआ। वह ट्रैक्टर हमारे लिए ही था। जब हम लोग अपने क्लस्टर बूथ पर पहुँचे तब अंधेरा पूरी तरह घिर चुका था। बाकी के मतदान दल को भी उनके बूथ पर पहुँचा दिया गया।

क्लस्टर बूथ एक पुराने स्कूल भवन को बनाया गया था। उसकी छत की ढलाई कहीं-कहीं उखड़ी हुई थी। स्कूल से ही सटे एक आम का पेड़ भी था और एक चापा कल भी कैंपस में लगा हुआ था। गरमी के दिन थे पर शाम सुहानी हो चली थी। लेकिन अंदर में उमस था। रात में तय हुआ कि अंदर ही सोया जाये कारण की बाहर जीव-जंतु का भय हो सकता था। फर्श पर प्लाटिक और चादर बिछा हैंडबैग को तकिया बना सो गया। अभी दो घंटे ही बीते होंगे कि लगा शरीर पर कुछ लगातार चल रहा है, कुछ चुभन महसूस हो रही थी। मैं साथ टार्च लाया था जलाकर देखा तो पूरे कमरे में लाल चिंटीयां रेंगती हुई नजर आ रही थी। ये तो गरमी के दिन के आम के पेड़ वाली लाल चिंटीयां थी। समझ गया कि उसमें सोना मुश्किल है। कमरे में ही नीले पेंट में रंगी लकड़ी की एक कुरसी थी, उसपर बैठकर पैर फैला दिये और सुस्ताने को आँखें बंद कर लीं।  

तड़के चार बज रहे होंगे कि मेरा फोन बजने लगा। एक बूथ के प्रीजाइडिंग आफिसर का फोन था। उसकी आवाज में परेशानी झलक रही थी। मेरे कुछ बोलने से पहले वह कहने लगे कि वहाँ का ईवीएम काम नहीं कर रहा है। थोड़ी देर के लिए मैं स्तब्ध रहा कि अब ये क्या बला आ गई। लेकिन हाथ-पर-हाथ धरे रखने से क्या होने वाला था। मैंने फिर उपर फोन किया तो जवाब आई कि नजदीकी अनुमंडल में रिजर्व ईवीएम मिलेगा; त्वरित कार्रवाई हो। नजदीकी अनुमंडल मतलब पिछे कहलगाँव उसी कच्चे और ऊबड़ खाबड़ रास्ते से पंद्रह किलोमीटर आना और जाना, सवारी वही सोनालिका ट्रैक्टर। लेकिन उपाय क्या था चुनाव का मामला था। कूदते-फांदते जब हम वहाँ पहुँचे तो वहाँ घुप्प सन्नाटा पसरा था, एक परिंदा भी पर नहीं मार रहा था। मैं लगातार फोन करते रहा तब एक कर्मी अस्त-व्यस्त अवस्था में पहुँचा और खराब यूनिट को बदलकर दूसरा दिया।  

माॅक पोल के बाद वोटिंग शुरू हुई और मैं एक जागरूक मजिस्ट्रेट की तरह हर दो-दो घंटे में सभी बुथ पर जाकर मतदान का जायजा लेता रहा और आँकड़े दर्ज करता रहा। लेकिन मेरे चार बूथ में से एक बूथ में कोई मतदान दर्ज नहीं हो रहा था। एकाध बार लगा कि सामान्य है या छोटा बूथ है, लोग-बाग बाद में आकर वोट करेंगे। लेकिन बात वह नहीं थी। बात दरअसल यह थी कि उस कस्बे के लोग मतदान का बहिष्कार कर रहे थे। कारण यह था कि उन लोगों की लगातार मांगों के बावजूद भी वहाँ के लिए सड़क नहीं दी जा रही थी। परिणाम यह था कि एक भी मतदाता बूथ के आस-पास फटक भी नहीं रहा था। मतदाता वोट का बहिष्कार करे तो मतदान दल कर ही क्या सकता है। सब हाथ-पर-हाथ धरे बैठे रहे। उस बूथ पर आने के दो रास्ते थे और दोनों रास्तों पर उस गाँव के ही युवकों की टोली डेरा जमाए हुए थी। यह टोली बूथ पर जाने वाले किसी वोटर को रोकने के लिए थी। दोपहर के बाद मैं जब उस बूथ पर पहुँचा तो भी युवकों की टोली वैसे ही गाँव के वोटरों का रास्ता रोकने के लिए डटी हुई थी। लेकिन यह टोली इस बार थोड़ी आराम के मूड में थी और उनमें आपस में हंसी-मजाक चल रहा था। तभी क्या देखता हूँ कि एक बूढ़ी महिला झटकते हुए बूथ की ओर चली आ रही है। चूंकि वोटरों का रास्ता रोकने वाले लड़कों की टोली आपस में तफरी करने में व्यस्त थी, तो  किसी ने उस महिला पर ध्यान नहीं दिया या फिर उसमें से किसी ने सोचा नहीं कि वह उसे पार कर बूथ की ओर चली जाएगी। वह महिला उस जबिरया चेक-नाका को आराम से पार कर गई और बूथ पर पहुँच गई। सुस्ताते हुए मतदान कर्मी थोड़ी देर को तो सोच में पड़ गए, फिर तुरंत हरकत में आए और बूथ पर एक मतदान रजिस्टर हो गया। यह उस बूथ पर पड़नेवाला एकमात्र मतदान ही रहा।   

इसके उलट एक दूसरा बूथ भी था और वहाँ लोगों की कतारें कम होने का नाम नहीं ले रही थी। इसमें बुरकानसी और कुरते-टोपी धारी वोटर बड़ी संख्या में थे। देश के अल्पसंख्यक समुदाय अपने मताधिकार का उपयोग करने के प्रति कितने जागरूक हैं; इस वोटिंग लाइन में मौजूद उनकी संख्या बता रही थी। देश के सभी मतदाताओं को लोकतंत्र के महा पर्व में शामिल होने के लिए यही जज्बा दिखाना चाहिए।  

इस बूथ पर सबसे देर तक मतदान चला और वोटिंग समाप्त होने पर इवीएम मशीन को ऑफ कर उसके बक्सों में सीलबंद कर दिया गया। मैं आप सबको बताता चलूं कि ईवीएम मशीन की सीलींग कई स्तर पर होती है और उसमें मतदान अधिकारियों सहित सभी निर्वाचन अभिकर्ताओं का हस्ताक्षर रहता है, जिसे मतगणना के समय दिखाकर खोला जाता है। मतदान के बाद इन मुर्दा और सील बंद मशीनों को किस प्रकार हैक किया जा सकता है, यह इसपर उंगली उठाने वालों को सोचना चाहिए। खासकर तब जब मतदान के बाद इन ईवीएम मशीनों को स्ट्रांग रूम में सभी अभ्यर्थियों के एजेंटों, सीसीटीवी कैमरों और पैरा मिलीट्री फोर्स की कड़ी निगरानी में रखा जाता है।  कोई किसी का समर्थन करे पर ईवीएम पर संशय करना देश के लाखों सरकारी, अर्ध-सरकारी कर्मियों की मेहनत और निष्ठा पर संशय करना भी है।  

शाम होने को थी और अबतक मेरे सभी बूथों के मतदान अधिकारी और पुलिस बल ट्रैक्टर में सवार हुए। अभी हमलोग हमारे क्लस्टर बूथ से बाहर निकलते कि गेट पर लोकल थाना का पुलिस जीप आते दिखायी दिया। यह काफिला मिर्जा चौकी पुलिस स्टेशन का था और दारोगा ने मुझसे आकर रौबदार आवाज में कहा कि आपलोगों के लौटने का इंतजाम ट्रेन से किया गया है इसलिए आपलोग सीधा स्टेशन चले जाईए। मिर्जा चौकी स्टेशन मेरे क्लस्टर बूथ के लगभग पास ही था। मैंने आपत्ती की कि हमें रूट चार्ट छोड़ने का आदेश नहीं है। क्या वे इसके लिए मुझे लिखित आदेश दे सकते हैं। इसपर वह लगभग क्रोधित होते हुए कहा कि 'वह कोई लिखित आदेश नहीं देंगे और उसे जो कहना है कह दिया। बाकी मुझे जिधर से जाना है जाऊँ।' लेकिन  मैं भी थोड़ी   देर के लिए सोचने लगा कि नक्सल प्रभावित कच्चा रास्ता अंधेरे में जोखिम भरा हो सकता है और हो सकता है इसी वजह से रूट में तब्दीली की गई हो।  

दारोगा साहब ने जो बात कही मैंने वह सब सुना पर उसकी बात से में सकुचाया नहीं और सीधा बुकलेट पर दिये एसपी साहब के नंबर पर इस विषय पर फोन कर लिया। एसपी साहब गंगवार साहब थे और उन्होंने मुझसे दस मिनट तक बात की और मुझे संयत से तनाव के बाहर लाने का प्रयास किया। उन्होंने मुझे समझाते हुए कहा कि लोकल दारोगा साहब ने कहा है तो कुछ सोच कर ही कहा होगा। अतः उनके कहे पर चलने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए। उसके बाद हमलोग सभी अगली ट्रेन के लिये मिर्जा चौकी स्टेशन पहुँच गये। वहाँ पहुंचकर स्टेशन मास्टर से पता किया तो उन्होंने बताया कि भागलपुर जाने के लिए अगली ट्रेन तीन घंटे बाद है और जो ट्रेन गुजरेगी उसका वहाँ स्टोपेज नहीं है। लेकिन यह भी बताया कि हो सकता हो जिलाधिकारी के अनुरोध पर ट्रेन का स्पेशल स्टोपेज दिया जाये और गाड़ी आने तक हमें उनके केबीन में ही बैठने की इजाजत दे दी। हमलोगों ने अगले तीन घंटे उनके कैबिन में ही गुजारे। और पुरे तीन घंटे के बाद फरक्का एक्सप्रेस डीएम साहब के अनुरोध पर मिर्जा चौकी स्टेशन पर बिना स्टोपेज के रुकवा दी गई। पूरी ट्रेन में खचाखच भीड़ थी और उसमें बहुत पुलिस बल के लोग भी थे जो मतदान ड्युटि खत्म कर लौट रहे थे और अब बेफिक्र लग रहे थे। हमलोगों ने डेढ़ घंटे तक खड़े-खड़े यात्रा की और जब भागलपुर स्टेशन पहुँचे तो रेल इनक्वाॅयरी के माइक से यह एनाउंस कराया जा रहा था कि शहाबाद-सलेमपुर के मतदान दल के लिए एक नंबर प्लेटफार्म के बाहर स्ट्रांग रूम तक ले जाने के लिये बस खड़ी है। हमलोग ट्रेन से आने वाली एकमात्र टीम थे और सबसे अंत में ही सही बक्सा जमा कर मतदान प्रक्रिया सकुशल पूरा करने का संतोष सबके चेहरे पर झलक रहा था।

--पुरुषोत्तम 
(यह मेरी स्वरचित और मौलिक रचना है।)
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रचनाएँ
यथार्थ की कहानियाँ
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मैं एक सरकारी अधिकारी हूँ। साहित्य मेरी पसंदीदा विधा है और फुरसत के क्षणों में लिखना-पढ़ना मुझे भाता है। कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, फनिश्वर नाथ रेणु, हरिशंकर परसाई की लेखनी का मैं मुरीद हूँ। मैं मुंशी प्रेमचंद की तरह लिखना चाहता हूँ। मैं इस उच्चतम मंच पर अपनी कहानी संग्रह के माध्यम से अपनी लेखनी को आपके बीच रखता हूँ। कहानियों के साथ-साथ मैंने कुछ कविताएं भी पिरोई है। मैं वास्विक और जिवंत कहानियाँ व कविताएं लिखना चाहता हूँ जो हमारे और आपके जीवन को प्रतिबिम्बित करें। इसमें कपोल कल्पनाओं और फंतासी की नाममात्र भी झलक नहीं हो। लोग किरदारों के साथ खुद को जिए और महसूस करे। और यह मानवीय जीवन में मूल्यों की बढ़ोतरी करे। मेरे समझ से बाजारवादिता संकिर्णता है और साहित्य को इससे दूरी बनाकर रखनी ही चाहिए। धन्यवाद।
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प्रेम

15 सितम्बर 2023
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प्रेम.ईबराह यही नाम था उसका। कराची के रईस परिवार से ताल्लुक रखती थी। आधुनिक विचारों वाली जहीन कमसिन थी। डॉक्टर बनना हो यह शायद ही ख्वाहिश हो पर इस वक्त वह कीव के नेशनल यूनिवर्सिटी में फ्रेशर थी। लंबा

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विजय

15 सितम्बर 2023
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"विजय".   मनिहारपुर कस्बा एक फैला हुआ पहाड़ी कस्बा था। ऊपर के कस्बे में पानी की किल्लत रहती तो निचले इलाके में बरसात में दिक्कत होती। आमतौर पर लोग ऊपर कस्बे को आन टोला और नीचे कस्बे को पान टोला

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समय के टुकड़े

15 सितम्बर 2023
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समय के टुकड़े.   यार कहाँ रहते हो, आते हो और समय नहीं देते हो  भूल गये हो हमें या खुद में सिमट गए हो...    सब्जीवाले से मोल-तौल करता मैं  हाथ में झोली और कुछ रुपये जेब में   

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अरवी के पत्ते

15 सितम्बर 2023
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अरवी के पत्ते.    ट्रेन से उतरकर मैं सीधा स्टेशन के आगे के बाजार में चला गया। घर में सब्जियां थी नहीं और सुबह ही श्रीमती जी ने ताकीद कर दी थी कि लौटते सब्जियां लेता आऊँ नहीं तो कल टिफिन में आल

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तरंग.    मस्तिष्क में उठती अनगिनत तरंगें  अपरिमित ऊर्जा से भरी हुई  कई बार मुश्किल होता है  इन तरंगों को संभालना  मस्तिष्क की कमजोर तंतुएं  बिखरती है इस ऊर्जा के आगे  और मुश्

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15 सितम्बर 2023
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एसएससी.    यह सच्ची कहानी है। 2003 का साल था और एक लंबे समय के बाद कर्मचारी चयन आयोग की स्नातक स्तरीय की वेकेंसी आई थी। और मेरा स्नातक होने के बाद स्नातक स्तरीय यह पहली वेकेंसी थी। कहना न होगा

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हम कब जागेंगे

15 सितम्बर 2023
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हम कब जागेंगे.   हम न उस काल में हो सके  न वो इस काल को जी सके  हम तुम हैं अभी साथ में  यही तो सच है।  तुम फिर भी रूठो पर मान जाओ  यह शीतयुद्ध किसे याद रहेगा  या फिर हम कब जा

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भिखारी

15 सितम्बर 2023
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भिखारी.     ऐसा नहीं था कि उसे भिखारियों से हमदर्दी नहीं रहती थी पर अपनी लाचारी को भीख मांगने के लिए इस्तेमाल करते देखकर उसे कोफ्त होता था। अकसर राह चलते या मंदिर के बाहर अपंगों को देखता तो उन

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गंगा घाट की यात्रा (पवित्र यात्रा संस्मरण)

15 सितम्बर 2023
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गंगा घाट की यात्रा (पवित्र यात्रा संस्मरण).    ‘सुनते हैं बाबा नहीं रहे। अभी मम्मी का फोन आया था।‘    पिछले कुछ दिनों से बाबा (मेरी पत्नी के दादा) ने खाना पीना छोड़ रखा था, वह जीवन के आ

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रिक्तताएं

15 सितम्बर 2023
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रिक्तताएँ.    तुमसे कई मुलाकातें अकसर की राह चलते की  टुकड़ों में ही सही बातें रोज की थी अपनी तुम्हारी  तुम्हारे लिए बेहद सामान्य रहा होगा ये सब  मेरे लिए भी इसके कोई खास मायने नहीं रख

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इनिंग्स.    इवनिंग हाउस काॅलेज की वूमेन्स टीम इंटर काॅलेज वूमेन्स क्रिकेट चैम्पियशिप में सेमी फाइनल में हार कर बाहर हो गई थी। इवनिंग हाउस की टीम ने जबरदस्त संघर्ष दिखाया था और मैच हारकर भी पीस

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"अभिमान". घड़ी भर पहले जूझते बच्चे खेल में वापस मगन थे  स्नेह बंधन में बंध चुके थे अभी-अभी जो गुत्थम गुत्था थे  खिलौने जिनसे विवाद था, हाशिये पर हो चले थे  द्वेष मुक्त बच्चे अपनी घरौंदों

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मर्माहत

16 सितम्बर 2023
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मर्माहत.   सुबह होने में अभी समय था साढ़े तीन चार बजे होंगे सूची का फोन घनघना उठा. पूरा परिवार गहरी नींद में था। सूची जो नींद से जल्दी उठती नहीं थी उस समय अलसायी सी उठी और बिना देखे फोन को कानो

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16 सितम्बर 2023
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मैंने देखा है.   अकसर युद्धों को बिना लड़े खत्म होते हुए  ठाने हुए रार को स्मृतियों से विस्मृत होते हुए  कुटिलताओं को मन की समाधि लेते हुए  दुर्भावनाओं को अन्तःकरण में विलीन होते हुए 

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16 सितम्बर 2023
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अव्यक्त.  मैं प्रायः सवेरे जग जाता हूँ या डीएसओ साहब की रींग तड़के मेरे फोन पर गूंज उठती है। मेरे देवघर शिफ्ट करने के बाद एक अच्छी बात यह रही है कि मुझे डीएसओ साहब जो अभी हाल में ही रिटायर हुए हैं

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कूड़ा भोज

27 सितम्बर 2023
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कूड़ा भोज.     भारत की आजादी की पहली सालगिरह थी। लोगों में इस बात को लेकर हर्ष था और हो भी क्यों न अपने आजाद मुल्क में सांस लेना गर्व का विषय था। लोग इस गौरवशाली क्षण और बहुमूल्य आजादी को संजोक

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अहम

27 सितम्बर 2023
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अहम.  कोटा शहर के प्रतिष्ठित इंस्टिट्यूट अंशल क्लासेस का कम्पाउंड, छात्र-छात्राओं की गहमागहमी से बेजार था। जेईई एडवांस्ड का परिणाम आया था। ढाई लाख अभ्यर्थियों में करीब चालीस हजार के हाथ सफलता लगी

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वामिस

7 अक्टूबर 2023
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वामिस. बात 2016 अंतिम की है। कार्य प्रमण्डलों के लेखा पदाधिकारियों को लेखा प्रक्रिया के डिजिटलीकरण के प्रशिक्षण के लिए चिट्ठियां आनी शुरू हो गई थी। पुराने पैटर्न पर जो लेखा पद्धति थी उसमें भर-भरकर विस

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इंडियन या वेस्टर्न

15 अक्टूबर 2023
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इंडियन या वेस्टर्न.    नहीं, नहीं बिलकुल भी नहीं चौंकिए यहाँ दो देशों, दो संस्कृतियों या दो जीवन-शैली की बात नहीं हो रही है। पाठकों को नाहक एक गैर जरूरी विवाद में घसीटने का मेरा कोई इरादा नहीं

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भूत

17 अक्टूबर 2023
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भूत.   हाल के दिनों में जितने प्राणी धरती से विलुप्त हुए हैं उसमें से अकसर इस प्रजाति की चर्चा नहीं होती है, वह है भूत। पहले क्या दिन हुआ करते थे, गांव या छोटे कस्बों के बाहर जो पुराना पेड़ रहत

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मेला

3 नवम्बर 2023
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मेला.    इस बार का दुर्गापूजा खास होनेवाला था। मित्र मंडली के प्रायः लोग जुड़ रहे थे। यह माता रानी की असीम कृपा ही कही जा सकती थी कि उनके उत्सव पर देश के अलग-अलग कोने में रह रहे मित्र वर्षों बा

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अमीना

8 नवम्बर 2023
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अमीना. लखनऊ, नवाबों का शहर। बिहार के वारसलीगंज का एक परिवार अपनी आजीविका के लिए यहाँ बस गया था। अनवर कपड़े के दुकान में काम करता और हमीदा दो कमरों वाले मकान की आगे वाली हिस्से में फूलों की दुकान चलाती

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बड़का-छोटका (आँचलिक कथा)

18 नवम्बर 2023
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बड़का-छोटका. बात उन दिनों की है जब मोबाइल ने भाईचारे को निगला नहीं था। लोग एक-दूसरे के बगैर चल नहीं पाते थे। रंज भी आपस के लोगों से, तो मनोरंजन का साधन भी वही। समाज का ताना-बाना एक-दूसरे को जोड़कर गहरा

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ट्रीट का बदला

2 दिसम्बर 2023
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ट्रीट का बदला. कहानी गाँव के दो हम कदम दोस्तों की विक्रम और गुड्डू। दोनों एक-दूसरे के बगैर रह नहीं पाते थे लेकिन धुर विरोधी के रूप में। दोनों साथ में जीते, खेलते-कूदते लेकिन विरोध में रहते जैसे कि आप

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भोला

17 दिसम्बर 2023
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भोला.जैसा नाम वैसा चरित्र, भोला सच में बहुत भोला था। खाते-पीते घर का भोला की शादी बंगाल में कर दी गई थी। लड़की भी गऊ थी इसलिए कहते हैं कि जोड़ियाँ ईश्वर बनाता है। शादी के बाद पत्नी को लेकर भोला जब ससुरा

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सन एक लाख दो हजार चौबीस(गल्प कथा)

21 दिसम्बर 2023
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सन एक लाख दो हजार चौबीस.  सन एक लाख दो हजार चौबीस, यानी अब से ठीक एक लाख साल बाद का समय। दुनिया बहुत बदल चुकी है। नहीं सिर्फ बदल ही नहीं चुकी है बहुत आगे जा चुकी है। सभी ग्रहों पर मानव बस्तियाँ ब

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जन्मों का संबंध

14 जनवरी 2024
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जन्मो का संबंध.    सुरभि घर की दुलारी थी और हो भी क्यों न चार भाई-बहनों में सबसे छोटी जो थी। सभी उसपर लट्टू रहते थे। सारिका सबसे बड़ी, अभी हाल में उसकी शादी हुई थी। शादी के बाद जब से मायके आई थ

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बिरादरी का आदमी

31 जनवरी 2024
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बिरादरी का आदमी. चंद्रचुड़ कल ही कालू साव के यहाँ निमंत्रण खाकर लौटा था और चौक पर आठ-दस जनों के सामने भोज की किरकिरी कर रहा था। गाँव में चुगली ज्यादा होने का भी कारण है कि गाँव में चुगली का पूरा-क

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ईश्वर और अध्यात्म

31 जनवरी 2024
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ईश्वर.  मैं शुरू से ही ईश्वर को लेकर थोड़ा हटकर सोचता था। और मेरी छवि लगभग ऐसी थी कि मैं हार्डकोर ईश्वर समर्थक कभी नहीं माना गया। जैसे कि ईश्वर का भौतिक अस्तित्व मुझे कभी समझ में नहीं आया। मैं आज

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शक की सुई

8 फरवरी 2024
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शक की सूई. राजा मोहन और निकेश अच्छे मित्र थे। दोनों ने साइंस कॉलेज में साथ-साथ पढ़ाई की और दोनों की सरकारी नौकरी भी पटना में ही लग गई। दोनों की शादी हुई, बाल-बच्चे हुए और दोनों की निभती भी गई। दोन

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प्रसाद(लघुकथा)

21 फरवरी 2024
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प्रसाद (लघुकथा).   यूट्यूब पर अमोघ लीला प्रभु के वीडियोज देखकर मेरी अध्यात्म और इस्कॉन के प्रति आस्था बढ़ी और मेरे जीवन में स्थिरता आई और गुणात्मक सुधार हुआ। और नियमित तो नहीं पर विशेष अवसरों प

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प्रायश्चित

26 फरवरी 2024
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प्रायश्चित. ब्रजमोहन देव के पक्ष में जमीन की डिग्री नहीं हुई थी। जिस जमीन पर उसने दावा किया था वह प्रधानी जोत थी। जमीन पर उसका दावा खारिज हो गया था। लेकिन विशारदपुर थाने का बड़ा बाबू सकते में था।

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19 मार्च 2024
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मोटर.    उपेन्द्र के लिए खाली समय था और वह टीवी पर ‘मैंने गाँधी को नहीं मारा’ फिल्म देख रहा था। डिमेंशिया से जुझते वृद्ध पिता और अपना सब कुछ दाँव पर लगाकर भी उसे उस स्थिति से बाहर निकालने को ज

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राग ठेकेदारी

16 अप्रैल 2024
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श्री लाल शुक्ल की 'राग दरबारी' से प्रेरित यह रचना-"राग ठेकेदारी"चंपापुर डिस्ट्रिक्ट बोर्ड से जल-मीनार का टेंडर निकला हुआ था और इसको लेकर ठेकेदारों में सरगर्मी बढ़ गई थी। चंपापुर में एक खास बात थी कि डि

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प्रेमालाप

21 अप्रैल 2024
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प्रेमालाप.“क्या हमारा ब्याह न हो पायेगा आरू?” अरिंदम की बाँहों में सिमटी सुनयना ने आह भरते हुए कहा।“नहीं।”“क्यों आरू।”“क्योंकि तुम बड़े घर की हो और मैं छोटे घर का।”“लेकिन मुझे तुमसे दूर रहना होगा, यह स

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पहली ड्यूटी

5 मई 2024
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*पहली ड्युटि*हम सबको पता है कि भारत के बाकी सभी पर्वों की तरह चुनाव का पर्व भी अहम होता है। लोकतंत्र और चुनाव दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं। इसलिए एक लोकतांत्रिक देश में हर दूसरे-तीसरे साल इस पर्व से स

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"नेहा"

26 मई 2024
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”नेहा“ अनुमंडल से कोई बारह किलोमीटर दूर, संथाल की पठार का एक गाँव कमलपुर। गाँव नहीं देहात, भोले-भाले, खेती-किसानी करने वाले लोग। अनपढ़ों की पिछड़ी बस्ती। बस्ती पिछड़ी भली लेकिन सपने आसमान में उड़ने क

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गंगा

26 जुलाई 2024
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गंगा साहेबगंज की गंगा की धार के किनारे बसे दो गरीब परिवार में जैसे भी हो आपस में बनती थी। तट से लगे बस्ती की समाप्ति के बाद बाढ़ का पानी रोकने के लिए तट बंध बना था जिससे आगे नदी की ढलान शुरू होती

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पेड़

18 अगस्त 2024
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पेड़ भीलवाड़े के अचकन सेठ ने अपनी आरे मील के लिए शहर में जाने जाते थे। वह अपने इलाके में हजारों हरे-भरे पेड़ों को मील के लिए कटवा चुका था और उसके तने को साइज करवा कर दरवाजों और फर्नीचर की जरूरत को ब

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एक सेर धान

1 सितम्बर 2024
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एक सेर धान अगहन के दिन थे, नंदलाल साव के खेतों में जड़हन धान की कटाई चल रही थी। फसल अच्छी झर रही थी। नंदलाल की घरवाली और बच्चे बहुत खुश थे। खुशी बढ़ जाने का कारण और भी था। महुआ के पेड़ के नीचे का, उ

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