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*‼️ भगवत्कृपा हि केवलम् ‼️*
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*श्रीरामचंरितमानस में तुलसीदास जी महाराज ने उत्तरकांड के लेखन में अंतर्मन के विकारों का बहुत विस्तृत वर्णन किया है |उसके अनुसार अंतर्मन के विकार निम्नवत् है :---*
*काम , क्रोध , लोभ , ममता , ईर्ष्या , द्वेष , मत्सर , मन की कुटिलता , अहंकार , दम्भ (अभिमान) , तृष्णा , अविवेक ,आदि का मुख्य रूप से वर्णन है |*
*अब इनसे बचने का उपाय भी मानस में बाबा जी ने बता दिया है !*
👉 *काम के बिना सृष्टि का संचालन नहीं हो सकता परंतु अमर्यादित रूप से कामोंपभोग करने से मनुष्य दुखी होता है | काम का एक अर्थ कामना भी है इससे बचने का एकमात्र उपाय है :- "संतोष"*
*👉 क्रोध :- मनुष्य के ओज को नष्ट कर देता है , बुद्धि बल क्षीण कर देता है इसे बाबा जी ने पित्तरोग कहा है और इससे बचने का उपाय शांति है !*
*👉 लोभ :- को श्वेत कुष्ठ रोग कहते हुए बाबाजी बताते हैं :- जिस प्रकार श्वेत कुष्ठ हो जाने पर शरीर की शोभा समाप्त हो जाती है उसी प्रकार लोभी मनुष्य भी शोभाहीन हो जाता है | इससे बचने का एकमात्र उपाय है अति संचय से विकार |*
*👉 ममता :- किसी दाद की भाँति मनुष्य को परेशान करती रहती है इससे बचने का उपाय है निष्काम भावना !*
*👉 ईर्ष्या से मनुष्य का तेज एवं विवेक नष्ट हो जाता है इससे बचने का एकमात्र उपाय है दूसरों के सुख में भी सुख का अनुभव करना !*
*👉 द्वेष मनुष्य के भीतर हीन भावना तथा असंतोष पैदा करता है जिससे परनिंदा और परनिंदा से घृणा का जन्म होता है | इससे तभी बचा जा सकता है जब मनुष्य सारे संसार को ईश्वर का अंश मानने लगे !*
*👉 मत्सर का अर्थ होता है जलन ! जो दूसरों की संपत्ति को देखकर उससे अपना आंकलन करके हीन भावना से ग्रस्त हो जाते हैं वे मत्सर से पीड़ित हो जाते हैं इससे भी बचने का उपाय संतोष ही है !*
*👉 मन की कुटिलता मनुष्य को चालबाज एवं छल कपटी बनाती है इससे बचने के लिए मनुष्य को मन का निग्रह करना चाहिए !*
*👉 अहंकार को बाबा जी ने घेंघा रोग कहा है अहंकार से बचने के लिए मनुष्य को आत्मावलोकन करते रहना चाहिए !*
*👉दम्भ (अभिमान) मनुष्य के शरीर में होने वाले कफ एवं वायुपित्त के समान है इससे बचने के लिए मनुष्य को प्रतिपल यह विचार करना चाहिए कि यह संसार नाशवान है !*
*👉 तृष्णा अर्थात भोगों को निरंतर प्राप्त करते रहने की कामना ! इससे बचना है तो मनुष्य को निष्काम बनना पड़ेगा !*
*👉अविवेक को बाबा जी ने मानस में ज्वर कहा है इससे बचने का एकमात्र उपाय है सत्संग !*
*और इन सभी लोगों से एक साथ बचने की इच्छा है तो उसका एकमात्र उपाय है भगवान्नामस्मरण , क्योंकि बाबा जी मानस में स्पष्ट लिख देते हैं :--*
*राम कृपा नासहिं सब रोगा !*
*जौ एहि भाँति बनइ संजोगा !!*
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