*यह मानव जीवन बहुत ही दुष्ष्कर है , इस मानव जीवन में मनुष्य अपने कर्मों के अनुसार कठिन से कठिन लक्ष्य प्राप्त कर लेता है क्योंकि यह संसार कर्म प्रधान है यहां कर्म योगी के लिए कुछ भी कठिन नहीं है | मनुष्य अपने जीवन में यद्यपि कठिन से कठिन लक्ष्य प्राप्त कर लेता है , जो चाहता है वह बन भी जाता है परंतु वह सरल नहीं बन पाता , क्योंकि इस संसार में जितना हारना सरल है , पाना एवं खोना भी सरल है , जीना एवं मरना भी सरल है परंतु सरल बनना बहुत कठिन है | मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम ने शबरी माता से नवधा भक्ति का वर्णन किया है और सबसे अंत में अर्थात नवीं भक्ति सरलता को बताया है | सत्संग करते हुए आठ प्रकार की भक्ति जब मनुष्य कर लेता है तब उसे नवीं भक्ति अर्थात सरलता प्राप्त होती है | सरलता का अर्थ क्या है इसका भाव देते हुए भगवान कहते हैं "नवम सरल सब सन छलहीना" अर्थात सरल वही है जिसके हृदय में छल कपट नहीं है | जब तक मनुष्य छल कपट का त्याग करके स्वच्छ एवं निर्मल नहीं होता तब तक उसे भगवान की प्राप्ति नहीं हो सकती क्योंकि भगवान ने स्वयं कहा है :- "निर्मल मन जन सो मोहि पावा ! मोहि कपट छल छिद्र न भावा !!" मनुष्य अपने जीवनकाल में सब कुछ तो बन जाता है लेकिन वह सरल नहीं बन पाता है | यही कारण है कि अनेकों साधन करने के बाद भी उसे भगवत प्राप्ति नहीं हो पाती और जब मनुष्य अनेकों साधन करने के बाद भी भगवत प्राप्ति नहीं कर पाता तो वह सारा दोष दूसरों पर लगाने का प्रयास करता है ! जबकि सत्य है कि उसे स्वयं का अवलोकन करना चाहिए कि क्या हमने भगवान के द्वारा बताई गई नव प्रकार की भक्ति में भक्ति का सार अर्थात सरलता का प्राकट्य स्वयं में कर पाया है या नहीं ? क्योंकि जब तक मनुष्य सरल नहीं बनेगा तब तक उसका हृदय निर्मल नहीं होगा और जब तक हृदय निर्मल नहीं होगा तब तक उसे न तो समाज में सम्मान मिल सकता है और ना ही भगवत प्राप्ति हो सकती है |*
*आज के आधुनिक युग में कुछ भी कठिन नहीं दिखाई पड़ता है जिसने जो लक्ष्य निर्धारित कर लिया वह उसे प्राप्त करने के लिए अनेकों प्रकार के संसाधनों का उपयोग करके उस लक्ष्य को प्राप्त कर ले रहा है | परंतु मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" यह कह सकता हूँ कि आज के युग में मनुष्य एक अच्छा विचारक बन सकता है , एक अच्छा व्यवसायी बन सकता है , उपदेशक एवं कथावाचक भी लोग बन जाते हैं , नेता - राजनेता , मंत्री - विधायक बनकर लोग समाज में स्थापित हो जाते हैं , मनुष्य कई प्रकार के पदक जीत रहा है , एक अच्छा इंजीनियर एवं चिकित्सक भी बन जा रहा है परंतु वह सरल नहीं बन पा रहा है | सरलता क्या है ? यह हमको एक बच्चे में देखने को मिल सकती है | जिस प्रकार एक बालक संसार की विषय वासनाओं से , भोग कामनाओं से अनभिज्ञ होकर कृत्य करता है उसी प्रकार मनुष्य को सरल बनना पड़ेगा ! क्योंकि सरल बिना बने ईश्वर प्राप्ति नहीं हो सकती | यह अकाट्य सत्य है कि यदि मनुष्य सरल होता है तो उसे प्राप्त हुए उपदेश शीघ्र फल प्रदान करते हैं | आज के युग में अनेक लोग स्वयं को सरल कहते हैं परंतु सरलता प्राप्त करना इतना आसान नहीं है , क्योंकि अनेक तपस्या , साधना करने के बाद ही मनुष्य को सरलता प्राप्त होती है और वह उदार बन पाता है | अनेकों लोग साधना के नाम पर अपने परिवार समाज का त्याग कर देते हैं और सत्संग को माध्यम बनाकर अपने लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते हैं परंतु वे अपने समाज एवं परिवार के प्रति सरल नहीं बन पाते | ऐसे लोग यह भूल जाते हैं कि बिना सरल बने कोई भी लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सकता | यदि सरल बनना इतना सरल होता तो भगवान सरलता को नवीं भक्ति ना बता कर के प्रथम भक्ति बताते , परंतु सरलता रूपी भक्ति को सबसे अंत में बताकर भगवान ने यह संकेत किया है जब तक मनुष्य आठ प्रकार की भक्ति अपने हृदय में धारण नहीं कर लेगा तब तक उसमें सरलता नहीं आ सकती | और यह सत्य है कि आज प्रथम भक्ति (सत्संग) को भी लोग हृदय में नहीं उतार पा रहे हैं तो विचार कीजिए जब प्रथम भक्ति हृदय में स्थान नहीं पा रही है तो नवीं भक्ति का प्राकट्य ह्रदय में कैसे हो सकता है | यदि सरल बनना है तो फिर हृदय को निष्कपट करते हुए अपने मन को निर्मल करना ही होगा अन्यथा दिखावा करने से कुछ भी नहीं प्राप्त होने वाला है |*
*यह जीवन बहुत ही सरल है परंतु यदि मनुष्य इस जीवन के रहस्य को समझ जाए तभी यह सरल हो सकता है जीवन को सरल करने के लिए सर्वप्रथम स्वयं को सरल बनाना पड़ेगा |*