*मानव जीवन में सुख एवं दुख आते रहते हैं इससे न तो कोई बचा है ना ही कोई बच पाएगा | सुख में अति प्रसन्न होकर मनुष्य दुख पड़ने पर व्याकुल हो जाता है | दुख के समय को जीवन का सबसे कुसमय माना जाता है | कभी-कभी मनुष्य दुख में इतना किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है कि उसे यह नहीं समझ में आता तो क्या करना चाहिए क्या नहीं ? सारे मार्ग बंद दिखाई पड़ते हैं , ऐसे समय में मनुष्य को सहारा देने वाला कोई नहीं मिलता तब उस दुख में मनुष्य का धैर्य ही उसका साथ देता है | बाबा जी ने मानस में लिखा है :- "धीरज धरहुं कुसमय बिचारी" अर्थात मनुष्य का सच्चा साथी दुख है और दुख का समय ऐसा होता है कि इस समय में मनुष्य का धैर्य ही उसका साथ दे सकता है | दुख पड़ने पर जिसने अपने धैर्य को बनाए रखा वही दुख के समय को व्यतीत कर के सुख प्राप्त कर पाता है | दुख के समय में जिसने अपने धैर्य को खो दिया उसका जीवन अंधकारमय भी हो सकता है | इसलिए संकट के समय अपने धैर्य को नहीं खोना चाहिए यही संकट के समय का सच्चा साथी होता है | दुख मनुष्य को संकट से जूझने का साहस प्रदान करता है | धैर्य धारण करते हुए जिसने भी संकट एवं दुख के समय को सकारात्मकता के साथ बिता लिया अंततोगत्वा वही सुख का उपभोग करता है |*
*आज के युग में अनेकों संसाधन उपलब्ध होने के बाद भी कोई भी सुखी नहीं दिखाई पड़ता | यह भी सत्य है कि आज मनुष्य में धैर्य बहुत कम दिखाई पड़ रहा है | प्राय: समाचार पत्रों में आत्महत्या करने की घटनाएं पढ़ने को मिला करती हैं | यह घटनाएं यह सिद्ध करती हैं कि आज मनुष्य ने अपने धैर्य को खो दिया है | थोड़ा सा भी संकट आने पर मनुष्य को ऐसा लगने लगता है अब उसके चारों ओर अंधकार छा गया है और कोई मार्ग नहीं बचा है , जब यह विचार जब मन में उठने लगते हैं तो मनुष्य आत्महत्या जैसा जघन्य कृत्य कर बैठता है , जबकि मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहूंगा कि इस संसार का सबसे बड़ा पाप आत्महत्या है | दुख आया है तो सुख भी आएगा जिस प्रकार अमावस की काली रात्रि आ जाने पर मनुष्य प्रातः सूर्योदय की प्रतीक्षा करते हुए अपनी रात्रि व्यतीत कर देता है उसी प्रकार घोर संकट को काली रात्रि समझ कर धैर्य के साथ सुख रुपी सूर्योदय की प्रतीक्षा प्रत्येक मनुष्य को करनी चाहिए और इसके लिए धैर्य का होना बहुत आवश्यक है | विचार कीजिए कि जब रात्रि में कोई दुर्घटना घट जाती है या कोई मृतक हो जाता है तो मनुष्य धैर्य के साथ प्रातः काल होने की प्रतीक्षा किया करता है और प्रातः काल होने पर भी उस मृतक का अंतिम संस्कार हो पाता है ! ठीक उसी प्रकार किसी भी प्रकार का दुख पड़ने पर मनुष्य को धैर्य का त्याग नहीं करना चाहिए क्योंकि जिसने धैर्य खो दिया समझ लो उसका जीवन समाप्त हो गया | दुख में सच्चा साथी मनुष्य का धैर्य ही होता है इसलिए सदैव अपने धैर्य को बनाए रखना चाहिए |*
*दुख में मनुष्य घबराने लगता है जबकि दुख एवं सुख मनुष्य के मन की अनुभूति होती है इस अनुभूति में धैर्य मनाने बनाए रखना परम आवश्यक है |*