*इस संसार में आदिकाल से लेकर आज तक अनेक भक्त हुए ! अनेकों भक्तों को तो भक्त शिरोमणि तक की उपाधि दे दी गई परंतु भगवान राम का प्रिय दास होने का सौभाग्य मात्र हनुमान जी को ही प्राप्त हुआ | हनुमान जी के अनेकों नाम इस संसार में विख्यात है परंतु सबसे लोकप्रिय हनुमान ही हुआ | हनुमान जी क्या है ? इसको बताते हुए तुलसीदास जी लिखते हैं :- "अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं , दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् ! सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं , रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि !!" अर्थात जिसके बल की कोई सीमा नहीं है , जो ज्ञानियों में सर्वश्रेष्ठ हैं , जिनके पास सभी गुण हैं , जो वानर सेना के अधिपति हैं वे रघुपति के प्रिय दास हनुमान जी हैं ऐसे पवन पुत्र को मैं प्रणाम करता हूं | विचार कीजिए जो अतुलित बल का धाम है उसने अपने मान का हनन कर दिया तब वह रघुपति के प्रिय भक्त हुए | जब तक मनुष्य अपने मान का हनन नहीं करता तब तक उसे कुछ भी नहीं प्राप्त हो सकता | हनुमान जी का जीवन दर्शन ऐसा है कि उन्होंने कभी भी अपने मान का ध्यान ही नहीं दिया | स्वर्ण के समान शरीर वाले हनुमान जी को ना तो कभी अपने बल का मान हुआ और ना ही स्वर्ण के सामान्य चमकती देह का | यदि वे चाहते तो रावण की पूरी सेना को अकेले समाप्त कर सकते थे परंतु अपने स्वामी का कार्य करने के लिए मेघनाथ के ब्रह्मपाश में बंध गए | ऐसे अनेकों उदाहरण हमें हनुमान जी के जीवन में देखने को मिलते हैं जहां उन्होंने अपने मान का कदापि ध्यान नहीं रखा | क्योंकि उनका मानना था कि दास एवं भक्त का स्वयं का कोई मान ही नहीं होता | ऐसा करके ही वह भगवान के प्रिय भक्त और प्रियदास बने और भगवान को भी अपना ऋणी बना लिया | अंततोगत्वा भगवान को कहना ही पड़ा | "सुनु सुत तोहिं उरिन मैं नाहीं" कहने का तात्पर्य है जो भी मनुष्य अपने बल के अभिमान , देहाभिमान , अपने ज्ञान का अभिमान रखकर भगवान का भक्त बनने का दिखावा करता है वह हनुमान जी को भी नहीं प्राप्त कर सकता तो भला भगवान श्री राम की भक्ति को कैसे प्राप्त कर पाएगा ? हनुमान का जीवन दर्शन हमें अपने मान को हनन करने का उपदेश देता है ! परंतु आज अनेकों हनुमान के भक्त अखाड़ों ने गदा लेकर स्वयं को सर्वश्रेष्ठ समझने लगते हैं यदि उनके द्वारा ऐसा किया जा रहा है तो यह समझ लो कि उन्होंने हनुमान जी को समझा ही नहीं | जिस दिन मनुष्य हनुमान जी के जीवन चरित्र को समझकर उनकी भक्ति करना प्रारंभ करता है उस दिन उसे अपने मान का किंचित भी ध्यान नहीं रह जाता और वही प्रभु की भक्ति प्राप्त कर सकता है |*
*आज चैत्र मास की कृष्ण पक्ष पूर्णिमा को देशभर में हनुमान जी की जयंती बड़े धूमधाम से मनाई जा रही है | हनुमान जी के मंदिर एवं घरों को सजा कर लोग हनुमान जी के प्रति अपनी श्रद्धा समर्पित कर रहे हैं परंतु वे हनुमान जी के चरित्र को आत्मसात करना ही नहीं चाहते | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" देख रहा हूं कि यदि लोगों को किंचित भी शारीरिक बल प्राप्त हो जाता है तो वह दूसरों को स्वयं के समक्ष तुच्छ समझने लगते हैं | शरीर की सुंदरता पाकर लोग अभिमान में फूले नहीं समाते हैं | यदि वेद पुराणों का तनिक भी ज्ञान हो गया तो वे कम पढ़े लिखे एवं अज्ञानी लोगों पर अपना वर्चस्व जमाने का पूरा प्रयास करते हैं | विचार कीजिए आज हम हनुमान जयंती का पर्व तो मना रहे परंतु क्या हनुमान जी के एक भी गुण को आत्मसात करने का प्रयास कभा किया ? यद्यपि यह सत्य है के प्रत्येक मनुष्य के अंदर अपना मान सम्मान होता है परंतु आज के युग में थोड़ा सा भी बल आ जाने पर मनुष्य का वह मान अभिमान में बदल जाता है ऐसे में हमें हनुमान जी के कृत्यों को आत्मसात करने का प्रयास करना चाहिए ! क्योंकि हनुमान जी का जीवन दर्शन हमें उत्तम शिक्षा प्रदान करता है | अपने स्वामी के कार्य के लिए बंधन में बंधना हो या वृद्ध जामवंत से शिक्षा लेनी है यह सब हमें हनुमान जी के जीवन चरित्र में देखने को मिलता है | परंतु हम आज अपने मान का हनन नहीं कर पा रहे हैं यही कारण है कि विद्वत समाज में या पहलवानों में अपना वर्चस्व बनाए रखने की होड़ सी लगी हुई है | अपने को हनुमान जी का परम भक्त कहने वाले लोग विचार करें कि अपने आराध्य अर्थात हनुमान जी का एक भी गुण उनके भीतर विद्यमान है या नहीं ? क्योंकि जब तक स्वामी के गुण को दास आत्मसात नहीं कर पाता तब तक ना तो वह अपने आराध्य का भक्त कहलाने के योग्य है और ना ही आराध्य देवता उसकी ओर देखते ही हैं | यदि हनुमान जी की भक्ति करनी है तो सर्वप्रथम अपने मान का हनन करके हनुमान जी की ही भांति बनने का प्रयास करना होगा अन्यथा हनुमान जी की भक्ति दिखावा करने के अतिरिक्त और कुछ नहीं कही जा सकती | आज हनुमान जयंती के दिन हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम सभी अपने निजी मान अभिमान के कारण किसी को भी कष्ट ना दें क्योंकि ऐसा करके ही हमें हनुमान जी एवं प्रभु श्री राम की भक्ति प्राप्त हो सकती हैं अन्यथा जीवन भर पूजा-पाठ , तपस्या आदि करने से कुछ भी नहीं प्राप्त हो सकता |*
*हनुमान जी का जीवन चरित्र अपने आप में अद्वितीय है इनके क्रियाकलापों एवं इनकी जीवन चर्या का पालन करके ही हम हनुमान जी के प्रिय भक्त बनने की श्रेणी में आ सकते हैं | हनुमान जी जैसा भक्त , दास , सखा ना तो हुआ है और ना ही होगा |*