*आदिकाल से समस्त विश्व में हमारी पहचान हमारी सभ्यता और संस्कृति के माध्यम से होती रही है | समस्त विश्व नें हमारी पहचान का लोहा भी माना है | विदेशों में हमें "भरतवंशी" कहा जाता है | हमारे पूर्वजों ने अपनी पहचान की कीर्ति पताका समस्त विश्व में फहराई है | मनुष्य की पहचान उसके देश समाज एवं परिवार से होती है पहचान को उच्च स्तरीय बनाने के लिए हमारे ऋषियों ने गोत्र की व्यवस्था की थी | जो जिस गोत्र में जन्म लेता था उसकी पहचान वही गोत्र बन जाता था और वह उसी गोत्र के नाम से जाना जाता था | मनुष्य को अपनी पहचान कभी छुपानी नहीं चाहिए | मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम चौदह वर्षों के वनवास के अंतर्गत ब्राह्मणवेश रखकर के आए हुए हनुमान जी से यदि चाहते तो अपना परिचय साधु - सन्यासी या बनवासी के रूप में दे सकते थे परंतु उन्होंने अपनी पहचान नहीं छुपाई और स्पष्ट बता दिया कि :- "कौशलेश दशरथ के जाये !"हम पितु वचन मानि वन आये !! कहने कातात्पर्य है कि उन्होंने अपनी पहचान नहीं छुपाई | श्याम सुंदर कन्हैया जीवन भर राज्य भोगने के बाद भी स्वयं को ग्वाला ही कहलाना पसंद करते थे | इतिहास साक्षी है कि जिसने भी अपनी पहचान छुपाने का प्रयास किया है उसका पतन हो गया है रावण एवं कालनेमि इसका ज्वलंत उदाहरण है | प्राचीन भारत में लोग बड़े गर्व से अपनी पहचान समाज एवं राष्ट्र के समक्ष रखते थे | पहचान इसलिए नहीं छुपाना चाहिए क्योंकि यदि कोई नकली वेश धारण करता है तो उसकी मानसिकता भी उसी प्रकार बनती चली जाती है , इसीलिए हमारे देश में हमारे पूर्वजों ने अपने नाम के आगे अपनी पहचान भी लिखना प्रारंभ किया था | यद्यपि पहले जाति व्यवस्था नहीं थी परंतु तब भी मनुष्य की पहचान उसके गोत्र से होती थी और मनुष्य अपने गोत्र के अनुसार सारे क्रियाकलाप संपादित करता था | परंतु धीरे-धीरे समय परिवर्तित हुआ और आज हमारी पहचान हम स्वयं मिटाने पर लगे हुए हैं | आज हमें दूसरों के साथ अपना नाम जोड़ने में बड़ा आनंद मिलता है परंतु ऐसा करने वालों को यही भी विचार करना चाहिए कि इससे उनकी स्वयं की पहचान विलुप्त होती जा रही है |*
*आज आधुनिक युग में प्रायः देखा जा रहा है कि लोग अपनी पहचान छुपाने में सतत प्रयासरत है | आज इंटरनेट का युग है अनेक लोग सोशल मीडिया के अनेक माध्यमों पर अपनी पहचान छुपाकर क्रियाकलाप कर रहे हैं | विचार कीजिए कि आज के मनुष्य को क्या हो गया है ? प्राय: सुनने को मिलता है कि फेसबुक एवं व्हाट्सएप पर पुरुष लोग महिला बन करके प्रस्तुतीकरण दे रहे हैं | इसके अतिरिक्त मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज समाज में देख रहा हूं कि जाति व्यवस्था अपने चरम पर है | जाति व्यवस्था के इस युग में लोग अपनी जाति से अलग हटकर के अपनी पहचान बनाने में लगे हैं | वर्ण व्यवस्था एवं जाति व्यवस्था से परे हटकर लोग प्रसिद्धि पाना चाह रहे हैं | आज यह देखा जा रहा है कि कोई यादव है तो क्षत्रिय लिख रहा है , कोई लोधी है तो राजपूत लिख रहा है | कोई भरद्वाज होकर चतुर्वेदी लिख रहा है तो उपाध्याय स्वयं को तिवारी लिख रहे हैं | कहने का तात्पर्य यह है कि हम अपनी पहचान छुपाकर क्या सिद्ध करना चाहते हैं ? ऐसे क्रियाकलाप करने वालों को ध्यान देना चाहिए कि मनुष्य की पहचान उसके कर्मों से होती है | हीरा यदि कीचड़ / मिट्टी में भी पड़ा होता है तो चमकता रहता है | यदि अपने अंदर गुण हैं तो पहचान छुपाने या बदलने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए , परंतु मनुष्य की अतिमहत्वाकांक्षा एवं झूठी प्रसिद्धि की तीव्र अभिलाषा उनसे उनकी वास्तविक पहचान छीन रही है | विचार करना चाहिए कि ईश्वर ने हमें जिस कुल गोत्र जन्म दिया है उसी कुल गोत्र में रहते हुए ऐसा कार्य किया जाए कि हमारा एवं हमारे पूर्वजों का नाम विश्व मंच पर एक नई पहचान के साथ जान आ जाये |*
*सिंह की खाल ओढ़कर की गीदड़ कभी सिंह नहीं हो सकता परंतु आज अनेको गीदड़ सिंह बनने के लिए लालायित हो करके अपनी पहचान स्वयं मिटा रहे हैं | उनके इन कृत्यों से उनकी आने वाली पीढ़ियाँ अपनी वास्तविक पहचान से वंचित रह जायेंगीं |*