ॐ ब्रह्माण्ड व उसमें तुम ही तुम
सृष्टि सृजन प्रलय व समाप्त हो
हरि तुम आदि अनंत अदृश्य हो
परंतु तुम सबके ह्रदय में व्याप्त हो।।
तुम सचराचर के स्वामी हो
परंतु भक्तों के दीनबंधु दीनानाथ हो
तुम अगम अगोचर निराकार हो
परन्तु सूर के कान्हा व तुलसी के राम हो ।।
तुम दुष्टों दलन कलि मल दहन हो
परन्तु सबरी के रघुनंदन कुब्जा के श्याम हो
हरि तुम योगी मर्यादा पुरुषोत्तम हो
गोपी संग रास अहिल्या पावन धाम हो।।
धरा पर जन्म फिर भी अजन्मा हो
स्वयं रूप निर्गुण भक्ति पथ साकार हो
मानव देह ले लीला मानवीय चरित्र हो
मोह ग्रसित भवसिंधु के तुम तारणहार हो।।
शिव हरि ब्रह्म शिवा शक्ति लक्ष्मी हो
जो भी हो तुम इस जगत पालन हार हो
दसरथ कोशल्या नंद यशोदा की गोद
हे प्रभु राजन का अभिनंदन स्वीकार हो।।
राजन मिश्र
अंकुर इंक्लेव
करावलनगर दिल्ली 94