यह जो आसमान मेरे हिस्से का है मुझे दे दो
तुम्हारे ख्वाब तुम्हारी कोशिशें तुम्हारे ही लिए
मेरे हिस्से का दर्द जख्मी टीस सब मुझे दे दो
उसकी ऊंचाई छूने का इरादा तुम मुझसे ले लो।।
खामखां मैं परेशान रहूं कुछ किसी से न बोलूं
तुम उड़ चलो मस्त गगन में मै क्यूं न जुबा खोलूं
अपनी परछाई से दूर रखने का जूनून रखते हो
मेरे हिस्से का ख्वाब ख्याल ख्वाहिशें मुझे दे दो।।
तुम जो तुम हो वो हम नहीं कभी भी बन सकते
हमारी चाहत को तुम और रुसवा कर नहीं सकते
हमको मंजूर नहीं हमको आधा अधूरा प्यार मिले
तुम चाहो फिर मेरे हिस्से का नसीब मुझसे ले लो।
तुम कहो तो हम महफ़िल से उठकर चलें जाएंगे
फिर नहीं तुम्हारी गलियों में लौटकर हम आएंगे
पर मेरा हक मेरे हिस्से का प्यार और ले मंजूर नहीं
राजन मेरा वक्त मुकद्दर न मेरा इंतजार मुझे दे दो।।
हमने कभी सोचा न था कि एक दिन ऐसा आएगा
तुम्हारी बेवफाई का सेहरा मेरे सर पे बांधा जाएगा
मेरी न कोई ख्वाहिश न इल्तज़ा मेरी पूंछी जाएगी
बची खुची हुई उम्र का आज आज किस्सा ले लो।।
राजन मिश्र
अंकुर इंक्लेव करावलनगर दिल्ली