दिनांक.03/11/21
विषय- रूपचौदस
विधा-आलेख
दिपावली पर्व नहीं एक महोत्सव है जो एक दिवसीय न होकर पंच दिवसीय महोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
प्रथम दिवस धनतेरस यानी धन्वंतरि प्रकटोत्सव के रूप में जिनसे जीवन में सुख समृद्धि स्वास्थ्य की उन्नति की कामना करते हैं ।
दूसरे दिवस रूपचौदस या नरक चतुर्दशी के रूप में दीए जलाकर दीपोत्सव करने काली रात में प्रकाश मय करते हैं ।
तृतीय दिवस महालक्ष्मी और श्री गणेश का पूजन और फिर महालक्ष्मी के आगमन में दीपोत्सव करते हैं ।
चौथे दिवस विश्व के प्रथम अभियंता और लोकपाल भगवान विश्वकर्मा की पूंजा अर्चना कर जीवन में कल्याण की कामना करते हैं ।
और पांचवें दिन यम द्वितीया या भैय्या दूज के रूप में मनाते हैं ।
द्वापर युग में नरकासुर नामक असुर ने सोलह लाख कन्याओं को अपने बंदीगृह में बंदी बनाकर रखा हुआ था भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का बधकर उन्हें बंधन मुक्त कर अपनी पटरानी बना कर सम्मानित किया उसी की खुशियों में सोलह लाख कन्याओं में दीपोत्सव कर हर्षोल्लास को प्रकट किया उसी दिन से इस को नरकाचतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है ।
राजन मिश्र
अंकुर इंक्लेव
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