ठोकरें खाते रहने दो
मंजिलें मिले न मिले
मुश्किलें मिलती रहती है ।।
आखिर परवान चढ़ने दो
चाहते मिले न मिले
जिल्लते मिलती रहती है ।।
बेचैनी फलने फूलने दो
सूकून मिले न मिले
आफतें मिलती रहती है ।।
मुलाकात होने रहने दो
दिल मिलें न मिले
धड़कने चलती रहती है ।।
ऊंचाई पर चढ़ते रहने दो
कोशिशें मिलें न मिले
नफरतें मिलती रहती है ।।
बेशर्मी को दूर करने दो
दरख्वास्त मिले न मिले
ख्वाहिशें मिलती रहती है ।।
स्वप्नों को जिंदा रखने दो
जिंदगी मिले न मिले
उम्मीदें मिलती रहती है ।।
कोई और हो तो सहने दो
ए दुनिया है यार राजन
आंखें बंद जुबां चलती रहती है ।।
राजन मिश्र
अंकुर इंक्लेव
करावल नगर दिल्ली 94
9899598187