विधा -कविता
शीर्षक-नाजुक हालात
यह रुद्र का त्रिनेत्र खुला या रक्त तांडव का
या कुरु पांडव समरांगन है कुरूक्षेत्र का
शवों से घिरी धरा पर धधकती है चिताएं
क्या आजअंतिम प्रहर है कलयुग शेष का ।।
बहती जाती है निरंतर वोबेदनाओ की गंगा
काली विकराल होकर नाचती हैं नाच नंगा
हृदय पत्थर सा हुआ आंसू आंखों से सूखे
शवों का अंबार श्मशान राख अवशेष का ।।
लुट गई चौराहे पर विश्वबन्धुत्व की कहानी
बंद दरवाजों के पीछे सिसकियां है जुबानी
आंखें ली फेर खुशियों ने आंगन गलियां राहे
महामारी दुःख तिमिर डेरा डाला विशेष का ।।
हरि सोए क्षीरसागर में ध्यानस्थ शिव समाधि
कौन सुनेगा विनती भव की आई विषम व्याधि
सूनी चौखट बुझे चुल्हे मरघट हर घट बना है
क्या करें असहाय निरुत्तर जीव बना क्लैश का ।।
कौन है जिम्मेदार नाजुक हालात किसको कहे
ईश्वर प्रकृति या मानव अहं मानवता पर चुप रहें
आज चौराहे के आगे कोई मंजिल न सूझती है
राजन अब चाहिए बंशीधुन या सूर्य परिवेश का ।।
राजन मिश्र
(स्वरचित)
अंकुर इंक्लेव
करावलनगर दिल्ली 94
7011614220