लघुकथा
बूढ़ी आंखें
चिडियों की चिंता अपने बच्चों की तबतक रहती है जब तक उनके पंख मजबूत नहीं होते तब तक उनको दाना चुगाती है उनका देखभाल करती है और फिर उनके हिस्से का आसमान देकर उनको स्वच्छंदता से उड़ने देती है
न उनसे उसके बदले कोई उम्मीद व आशाओं का पुल बांधती है न उनके मार्ग में ममता का आंचल डालती है ..
यह सब सिर्फ पंछियों में ही होता है और उसकी विपरीत परिस्थितियां मानव की होती है वह उससे वहीं आशाएं लगा कर रखती जिसकी कभी कभी न पूरी होने की उम्मीद होती है और जब ऐसा होता है तो फिर आशा और निराशा के बीच सून्य में देखती है बूढ़ी आंखें ..
अम्मा अबकी बार छुट्टी में जरूर आकर आपके पास कुछ दिन जरूर गुजारूगा यह आपसे बादा करता हूं .. सुन्दर ने फ़ोन पर कहा ।
बेटा तुम यह बात एक साल से कह रहे हो .. परंतु वह दिन कभी नहीं आता हर महीने तुम्हारे पास यही बहाना बना देते हो .. बापू की तबियत भी ठीक नहीं है तुम्हारे .. सुन्दर ने मां दूसरी तरफ से ज़बाब दिया ।
अच्छा ठीक है मां .. अभी तू फोन रख मैं शाम को फिर बात करता हूं .. सुन्दर ने कहा ।
कहीं जा रहा है क्या ...देख जमाना बहुत ख़राब है कहीं ज्यादा यार दोस्ती ठीक नहीं होती कहीं घूमने मत जाना .. अम्मा ने समझाते हुए कहा।
तू बेकार परेशान होती है मां .. कंपनी के और लोग भी हैं साथ में उनके साथ स्टेडियम में मैच देखने जा रहा हूं तू चिंता मत कर ..शाम को बात करूंगा .. सुन्दर ने कहा ।
देख जा तो रहा है पर पास मत बैठकर देखना कहीं सिर में गेंद न लग जाए .. अम्मा ने कहा परन्तु उधर से फोन डिस्कनेक्ट हो गया था ।
सुन्दर एक अच्छी कंपनी में अच्छे पोस्ट पर कार्यरत था और होनहार समझदार जिम्मेदार भी और सबका चहेता भी..
कविता और किसन की जिंदगी की कहानी कुछ ऐसे तरह गुजर रहीं थीं
दो बच्चों का बहुत सुखी संपन्न संसार था और सुबह शाम इस बात का वो ईश्वर का हमेशा शुक्र गुजार रहते थे..
दोनों बच्चों की परवरिश मे कोई कमी नहीं कर रखा था अच्छी शिक्षा और अच्छे संस्कार सारी सुख-सुविधाएं भी समय-समय पर देते जाओ रहे थे ..
फिर एक शाम कंपनी से सूचना मिली कि सुंदर की स्टेडियम में क्रिकेट देखते समय सिर पर गेंद लगने से उसकी मौत हो गई ..
यह हादसा असहनीय था पूरा परिवार इस अविश्वसनीय घटना से आहत हो गया था परन्तु आज भी सुन्दर का इंतजार कर रही है वो बूढी आंखें ..
राजन मिश्र
अंकुर इंक्लेव
करावलनगर दिल्ली 94
7011614220