निगाहें दूर तक जाती है तो यूं जाने दीजै
कम-से-कम एक नजर भर के देखने दीजै
बड़ी मुश्किल से वक्त मिला है ठहर जाऊं
जो नज़ारे को हम तरसे यूं निहारने दीजै ।।
खोए हुए स्वप्नें सोए अरमानों की कसम
ढलते हुए चांद सूरज सितारों की कसम
बाग की कलियों उनके खूशबू की कसम
आज जो कुछ होना है सो हो जाने दीजै ।।
कोई साथी हम-दम कोई अपना न मिला
फासले बढ़ते रहे यूं नजदीकियां न गिला
हर कोई चार कदम संग चल बदलते रहे
आप यूं ऐसे नहीं गैरों को संग चलने दीजै ।।
चांद को रोते सितारों को जमीं पे टूटते देखा
आज ढलते सूरज को सागर में डूबते देखा
मेरी किस्मत का नज़ारा कुछ ऐसा ही रहा
उस नज़ारे की तरह मेरे नज़ारे मिलने दीजै ।।
बेवजह कुछ भी कहीं भी चला जाता हूं मै
किसी के आंसु को देखते सहम जाता हूं मै
रोते राते हंसने की आदत न जाने कब होगी
उसीअंदाज में राजन को अब यूं रहने दीजै ।।
राजन मिश्र
अंकुर इंक्लेव
करावल नगर दिल्ली 94
9899598187