जिंदगी का फलसफा
नहीं ठहरती किसी एक मुकाम पर
एक मुक्कमल जहां के लिए
इंसान भटकता रहता है यूं सुबह शाम..
ख्वाहिशों की चाहत पर
ऊंची से ऊंची मंजिलों की तलाश में
नहीं मिल पाते सुकून के पल
सपनों की शीश महल गिरता है धड़ाम..
कुछ सपने अधूरे गीत बेतुके
आपाधापी रिश्तों की साथ मारा मारी के
कुचलते मसलते आगे आगे बढ़ते
नहीं हल होती अनसुलझी कोशिशें तमाम..
महलों की मजबूरियों में जकड़ी
एक कच्चे धागे में बंधी खुशहाल जिंदगी
पता नहीं कौन सी करवट पर
मुस्कुराहटें बिखेर दें छुपा कर आंसु नाकाम..
हर पहलू देखने के बावजूद
कैसे हैं ए जिंदगी को हम समझ नहीं पाए
कहीं रूलाती है पल में कहीं हंसाती है
राजन ए जिंदगी जादूगरनी है बेलगाम..
राजन मिश्र
अंकुर इंक्लेव
करावल नगर दिल्ली 94