लघुकथा -यमराज है हम
दरवाजे पर कौन है..जरा रामदुलारी देखकर दरवाजा खोल देना- सहसा दरवाजे पर आहट सुनकर चोखेलाल ने अपनी पत्नी को आवाज लगाते हुए कहा ।
तुम क्या अलादीन का चिराग घिस रहे हो या फिर तुम्हारे हांथ पांव मे मेहंदी रची हुई हो जो उठकर दरवाजा नहीं खोल सकते .. रामदुलारी ने रसोई से दहाड़ते हुए बोली।
कुछ नहीं भाग्यविधाता ..बस अभी अभी कुछ लिखने का नया आइडिए पर लिखने का विचार आया था वह भी इस खट-खट ने सत्यानाश कर
दिया..अगर तुम्ही दरवाजा खोल देती तो क्या होता- चोखे लाल ने बड़बड़ाते हुए कहा ।
अगर तुम्हारी मां या भाई बहन आई होती तो उठकर तुरंत दरवाजा खोल देते मगर कोई अजनबी दरवाजे पर इतनी देर से दरवाजे पर खड़ा है और तुम टस से मस नहीं हो रहे हो ..अगर मन नहीं कर रहा हो तो कोई नौकर रख लो इस काम के लिए .. रामदुलारी ने गुस्से में बड़बड़ाते हुए बोली परंतु दरवाजा खोलने के लिए रसोई से नहीं निकली ।
तुम क्या समझो एक लेखक की संवेदना या वेदना.. बड़ी मुश्किल से मन बनाया था कुछ लिखने को लिए वह भी तुम नहीं चाहती कि लिख सकूं .. चोखेलाल ने कहा ।
हां राष्ट्रपति से बहुत से पुरस्कार मिल सके हैं तुम्हारे इस लेखन कार्य के लिए ..अरे बच्चे भी नहीं समझ पाते कि आप क्या लिखते हैं या क्या लिखना चाहते हैं..जाओ चुपचाप दरवाजा खोल दो नहीं तो अतिथि बिना तुम्हारे दर्शन के वापस चला जाएगा .. रामदुलारी ने जोर से चिल्लाते हुए कहा।
तुम लोग आपस में लड़ते झगड़ते रहोगे या इस दरवाजे को खोलोगे...या फिर मैं ऐसे ही अंदर आ जाऊं .. दरवाजे के बाहर से आवाज़ आई।
कौन हो तुम भाई ..और जब आप की आवाज यहां तक आ गई है तो अगर बिना हमारे दरवाजा खोले आप अंदर आ सकते आपका स्वागत है..
चोखेलाल ने जोर से कहा ।
किसी को अंदर घुसा लो बिना जान पहचान के .. तुम कभी नहीं सुधर सकते पहले अंदर सोफे पर बिठाकर स्वागत सत्कार में चाय पानी फिर नाश्ता और दोपहर का भोजन और रात ठहर गया तो रात्रि का भोजन सोने का प्रबंध नौकरानी समझ रखा मुझे..यह सब कौन तुम्हारी मां या बहन आकर करेगी .. रामदुलारी रसोईघर से चीखते हुए चोखेलाल तक आ पहुंची ।
तब तक दरवाजे पर खड़ा मेहमान बैठक में खुली खिड़की के रास्ते से अंदर आ चुका था उसकी नव आगंतुक की अजीब सी भेष-भूषा देखकर दोनों चौक से रह गये।
कौन हो तुम और अंदर कैसे आ गये थोड़ी देर रूककर इंतजार नहीं कर सकते और कौन सी नाटक कंपनी में काम करते हो जो सीधे स्टेज़ से यहां पर भाग आए.. रामदुलारी ने हैरानी भरें स्वर में कहा।
यमराज है हम ..हम कितनी देर दरवाजे पर तुम लोगों की किचकिच सुन रहा हूं दरवाजा नहीं खोल सकते तो लगाया किस लिए है.. यमराज ने गुस्से में आंखें लाल करते हुए कहा।
देखिए यमराज जी हमें घर और बाहर का बहुत सारा काम करना पड़ता है ए हमारे पतिदेव है इन्हें कोई काम तो है नहीं किस्से कहानियां लिखने के और आलसी इतने की बहस करवा लो पर काम नहीं ..आप जो कुछ कहना है जल्दी कहिए मुझे अभी स्कूल जाना है बच्चों और इनका खाना बनाने के बाद .. रामदुलारी ने कमर में धोती खोसते हुए लड़ने के अंदाज में कहा।
मुझे चोखेलाल को अपने साथ ले जाना था इसका समय पूरा हो चुका है .. परंतु मै सोचता हूं कि इससे ज्यादा नरकीय कष्ट का विधान मेरे यहां नहीं है ... इसलिए मैं इसे यहीं छोड़कर जा रहा हूं.. यमराज ने कहा।
बहुत अच्छा हुआ इस निकम्मे पति से छुटकारा मिल जाएगा .. इसके मरने के बाद पड़ोसी शर्मा जी से शादी कर लूंगी जिनके पास भौतिक सुख-सुविधाओं की कोई कमी नहीं है..आप जल्दी से इन्हें ले जाइए.. रामदुलारी ने विना चोखेलाल की तरफ देखे रसोई में चली गई।
यमराज जी ..आप मुझे इस तरह छोड़कर नहीं जा सकते यह तो ईश्वर के विधान के विपरीत है
आप मुझे अपने पाश में बांध कर अवश्य लें चले कम से कम मै वहां तो चैन से कुछ न कुछ लिख सकता हूं.. चोखेलाल ने यमराज के पांव पकड़ गिड़गिड़ाते हुए कहा ।
यमराज है हम ..हम भी मजबूर हैं अभी तुम्हारे दिन धरती पर बहुत ही शेष है कुछ सालों बाद दुबारा मुलाकात होगी .. इतना कहकर यमराज खिड़की के रास्ते गायब हो गए..
मेरे पैर पकड़ कर क्यूं गिड़गिड़ा रहे हो कोई बुरा सपना देख रहे थे क्या ..उठो शर्मा जी दरवाजे पर खड़े कब से आवाज़ लगा रहे हैं .. रामदुलारी ने चोखेलाल को झकझोर कर जगाते हुए कहा ।
चोखेलाल सोच रहे थे क्या बताऊं यमराज से मुलाकात हुई या फिर शर्मा जी से ..
राजन मिश्र
अंकुर इंक्लेव
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