कुछ भी कहो
कुछ न छुपा कर कहो
हमेशा मुस्करा कर कहो
न इतरा कर कहो
न घबरा कर कहो
अकेले नहीं भीड़ को जोड़
नफरत छोड़ जो भी मिले
प्यार से प्यार बांटते चलो..
ए दुनिया है गज़ब की जालिम
ख्वाहिशें कमी नहीं है
जहां ख्वाहिशें जीने की तमन्ना वहीं है
पर ख्वाहिशों का बोझ
हम ढोते रहते हैं रोज रोज
उन ख्वाहिशों का जिक्र
कभी उन अधूरे ख्वाबों से कहो..
सब ख्वाब पूरे हो जरूरी तो नहीं
जो पूरे न हो वो ख्वाब तो नहीं
कुछ नींद कुछ सुकून चाहिए
ख्वाबों को पूरा करने के लिए
एक अदद नींद तो जरूरी है
नींद आए चैंन के कुछ पल मिलें
इन सब बातों को बंद लिफाफे में रखो..
खुद से पूछना चाहे
खुद से खुद में ढूंढना चाहे
कुछ मिले न मिले संतुष्टि ही सही
ग़म न मिले तो खुशी ही सही
रिश्तों की डोर को मजबूत कर
मंजिलों पर चढ़ता जा राजन
वसुधैव कुटुंबकम् कहते ही चलों..
राजन मिश्र
अंकुर इंक्लेव
करावल नगर दिल्ली 94