कुछ ईंट और पत्थर भी थे
कुछ खून पसीना भी था
सब उसको मिला जुला
हमने अपना घर बना लिया ।।
कुछ रिश्तों की सीमेंट लगी
कुछ दोस्ताना बने लोहा सरिया
कुछ इज्ज़त की रेत मिली
फिर यादों की छत सजा लिया ।।
सब मन के मजदूर मिले
संबंधों की दीवारें बनने लगी
कुछ यादों के झरोखों खुलें
प्रेम का दरवाजे लगा दिया ।।
भावनाओं से दरवाजे के रंग
दीवारों से सौहार्द्र के रंग बिखरे
संस्कृतिक कलाकृतियां बनी
घर को कैनवास में सजा दिया ।।
जब एक सुर में संगीत बजे
एक नूतन सम्मोहन सा लगा
एक अपना घर घर सा राजन
एक नया संसार बसा लिया।।
राजन मिश्र
अंकुर इंक्लेव
करावल नगर दिल्ली 94
9899598187