कोरे कागज सी जिंदगी को रहने दो
जाने दो इसको कोई और बात कहने दो
हमें तो अंधेरे में रहने की आदत पड़ गई यारों
यह दीया किसी और रोशनी के लिए जलने दो
बड़ी मुश्किल से मिलते हैं याऱ को वक्त
आज अपना नहीं किसी और का गम सुनने दो
अपनी शिकवा गिला के लिए तो वक्त काफी है
आज उनकी उस मुस्कानों का जश्न मनने दो
बहुत कुछ कह दिया और कुछ न हो बाकी
भीड़ अच्छी न सही बस अब अकेले चलने दो
दो आंसुओं की कीमत एक मुस्कान से ज्यादा हो
इस दुनिया को उसी के हिसाब से चलने दो
बहुत से गमों के बहुत से बहाने निकलते हैं
एक बहाना किसी मजलूमियत पर निकलने दो
चलते चलते की अंधेरा न हो जाए राजन
दिन से ही एक ऐसे दीपक को तो जलने दो..
राजन मिश्र
अंकुर इंक्लेव
करावल नगर दिल्ली 94
9899598187