चाहे दिया जले या फिर जिया जले
वैसे तडपन दोनों में बराबर होती है
एक दीया तो जल के उजाला देना है
दिल की जलन आंसु से भीगोती है ।।
दिए को चौराहे पर रख कर के देखो
जलते हर राही को उजियारा देती है
दिल को चौराहे पर न यूं छेड़ते कभी
दिल से यूं दिलवालों को पिरोती है ।।
यूं खुद जो रोशनी के लिए तरसते है
वो दुनिया में उजियारा करते रहते है
जब खुद दिए तले अधियारा होता है
ऐसा ही यह दुनिया कड़ी संजोती है ।।
जुगनू की रोशनी तिमिर मिटाती है
पर दिया आखिर रैना भर जलता है
जब तक तेल बाती उसमें जीवित है
राजन वह तिल तिल जलती रोती है।।
राजन मिश्र
अंकुर इंक्लेव
करावल नगर दिल्ली 94
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