विषय- बालक/बच्चे
विधा-कविता
बच्चे की छोटी सी मुठ्ठी में
एक चौडे से आसमान का कोना
कभी खिलखिलाती हंसी
तो कभी सुबक सुबक कर रोना।।
कभी विक्रमादित्य सा न्याय
तो कभी गौतम बुद्ध जैसी सोच
निश्चिंत भरी सी जिंदगी
निश्च्छल प्रेम नहि कोई खोट
न कल की कोई चिंता
न आज का कोई होता रोना ।।
ए बचपन वाले बालक
मिट्टी को समझते है सोना
हुड़दंग मचाने वाले पल
कभी बंदूक व तीर धनुष का होना ।।
कुछ पाए तो खुश हो जाते
न पाते तो आंसू बह जाते
सूखी को मिलकर खा जाते
पूरी को छुपाकर भाग जाते
बच्चों की छोटी दुनिया में
राजन सच्चे सपनों का होना ।।
राजन मिश्र
अंकुर इंक्लेव
करावल नगर दिल्ली 94