मृगतृष्णा
आज आफिस के बाद क्या कर रहे हैं मिस्टर रविन्द्र.. क्या हमारे साथ लांग ड्राइव पर चलना पसंद करेंगे .. आकांक्षा अपने केबिन से बाहर निकलते हुए रविन्द्र से कहा।
नहीं मेडम आज कल प्रोजेक्ट का प्रजेंटेशन है उसकी सारी रिपोर्ट तैयार करनी है मुझे उसके लिए आफिस में शायद थोड़ी देर रूकना पड़ सकता है ..सारी आप जाएं मैं आपके साथ नहीं चल पाउंगा.. रविन्द्र ने बड़े मासूमियत से जवाब देते हुए कहा।
यह आप क्या बहाना बना रहे हैं रविन्द्र जी कल के प्रजेंटेशन का आप को सिर्फ पेपर वर्क करना है प्रजेंटेशन मुझे करना है और प्रोजेक्ट कैसे पास कराना है मुझे अच्छी तरह मालूम है आप उसकी चिंता मत करो ..बस तुम पांच मिनट में गाड़ी के पास आ जाओ . नहीं तो जानते हो तुम मुझे इंतज़ार करना बिल्कुल पसन्द नहीं है .. आकांक्षा ने कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए कहा।
लेकिन मेडम मेरी मजबूरी तो समझो आज मुझे घर भी समय से पहुंचना है .. रविन्द्र ने मजबूरी बताते हुए कहा।
पता है सुहानी का आज जन्मदिन है वह तुम्हारे इंतज़ार में बैठी होगी तो क्या हुआ हम उसे भी साथ ले लेंगे और वहीं किसी रेस्टोरेंट में केक काट कर पार्टी कर लेंगे.. आकांक्षा ने मुस्कुराते हुए कहा।
मेडम वो क्या सोचेगी और फिर उसे आज के दिन प्राइवेसी चाहिए और आप साथ रहेगी तो वह क्या सोचेगी आज नहीं कल या फिर किसी और दिन.. रविन्द्र ने टालते हुए कहा।
देखो रविन्द्र आज मेरा मन बस कुछ क्षण तुम्हारे साथ बिताने का मन कर रहा है लांग ड्राइव न सही तो हमारे साथ मेरे घर तक चलो सिर्फ एक डेढ़ घंटे साथ रहेंगे बस कुछ नहीं फिर तुम अपने घर चले जाना.. मुझे भी कुछ थोड़ा सुकून मिल जाएगा तन्हाई से ..अगर इंकार है तो फिर देख लो आखिर मैं तुम्हारी बास भी हूं तरक्की की चाभी मेरे पास है ...अब बहाना नहीं पार्किंग में जल्दी मिलो.. आकांक्षा ने कहा और वह पार्किंग की तरफ चल पड़ी।
आकांक्षा को जाते हुए देख उसके मन में बहुत ही दुविधा उठ खड़ी हुई परंतु उसने आकांक्षा के साथ उसके घर तक जाने का फैसला कर लिया था पता था कि अगर उसने आकांक्षा को नाराज किया तो वह ज्यादा दिन आफिस में नहीं टिक सकता था।
रविन्द्र को पता था कि सुहानी पहला और आखिरी उसका प्यार है वो उसके विना वो जीवित नहीं रह सकता है परन्तु आकांक्षा का उसकी तरफ़ बढ़ता झुकाव बहुत ही अजीब लग रहा था ।
रविन्द्र जानता था कि आकांक्षा को अपनी सीढ़ी बनाकर तरक्की जरुर हासिल की जा सकती है परन्तु वो उसे वो प्यार नहीं दे सकता था जिसकी उसे तलाश रही होगी।
आकांक्षा उसे सच्चा प्यार नहीं करती थी बस वह उसे अपने अकेलेपन के लिए उसे और उसकी भावनाओं से खेलना चाहती थी।
वह जानता था जहां एक ओर सुहानी प्रेम की असीम बहती हुई नदी थी वहीं आकांक्षा के लिए वह एक मृगतृष्णा..
जो नाभि में कस्तूरी होते हुए वो उसकी महक को बन बन तलाशने की कोशिश में हमेशा लगा रहता है मगर वो महक खुद में महसूस नहीं करता।
आज उसने तय कर लिया था कि वह आकांक्षा को वासनाओं की मृगतृष्णा से बाहर निकालने की पूरी कोशिश करेगा और नमन के बारे में अच्छी तरह जानने की कोशिश करेगा और उसका अलगाव कैसे हुआ उसे वह समझने और समझाने की पूरी कोशिश करेगा।
किसी का सच्चा प्यार वासना की मृगतृष्णा में नहीं भटकता बल्कि वो अपने प्रेमी को किसी तरह बाध्य नहीं करता उसके लिए अपनी चाहत को कुर्बान कर देता है।
क्या बाहर खड़े रहकर सोचते रहेंगे या फिर गाड़ी के अंदर बैठ कर घर चलेंगे रविन्द्र.. आकांक्षा ने कार का दरवाजा खोलते हुए कहा।
रविन्द्र गाड़ी के अंदर बैठ गया और आकांक्षा ने गाड़ी स्टार्ट कर अपने घर की तरफ़ रवाना हो गई वह अच्छी तरह समझ रही थी कि रविन्द्र आज तन से तो हमारे साथ है परन्तु उसका मन उसके साथ नहीं है ।
उसने रास्ते में कोई बात नहीं छेड़ा बस एक दो बार रविन्द्र के गालों को प्यार से सहलाया और एफ एम रेडियो पर गाने सुनने लगीं थीं उसे इस बात की खुशी थी कि रविन्द्र आज उसके साथ तो है चाहे कुछ समय के लिए ही।
रविन्द्र भी आकांक्षा की भावनाओं को अच्छी तरह समझता था आकांक्षा ने कभी कभी नशे व यौवन की उन्माद में अंधा हो बहक कर उसे अपनी वासना की हवस शिकार बनाया हो बस उसे आलिंगन कर आंखें मूंद नमन को पुकारती थी ।
परन्तु जब उसका अहसास होता तो वह जैसे उदास होकर वह मृगतृष्णा की तलाश में रविंद्र के आलिंगन में नमन को खोजती और उसमें कस्तूरी की महक को ढूंढती।
रविन्द्र आज मैं तुम्हारे लिए पैग नहीं बनाउंगी क्योंकि तुम्हारे लिए सुहानी आज तुम्हारे
लिए घर पर बेसब्री से इंतजार कर रही होगी.. और अब तुम जाओ मैं चुपचाप कुछ खाकर सो जाऊंगी . आकांक्षा ने रविन्द्र को गले लगाते हुए कहा।
नहीं मैडम.. मैंने सुहानी को फोन कर दिया कि मैं आकांक्षा मैडम के साथ हूं थोड़ा कुछ समय लगेगा.. परंतु मै आपसे नमन के बारे में कुछ जानना चाहता हूं.. रविन्द्र ने आकांक्षा से पूछा।
आप जाओ रविन्द्र इस बारे में हम फिर कभी बात करेंगे तुम आज हमारे लिए इतना समय निकाला यही बहुत है..बस मुझे थोड़ी अकेले में रहने दो .. आकांक्षा ने बड़बड़ाते हुए कहा।
मुझे अभी घर नहीं जाना है पहले आप नमन के बारे में मुझे बताओ कौन हैं कहां है और इस हालात का जिम्मेदार कैसे हैं वो..अगर आपने मुझे थोड़ा सा अपना दोस्त माना है तो उसकी कसम .. रविन्द्र ने हठ करते हुए कहा।
आकांक्षा पर नशा धीरे धीरे हाबी होने लगा था पर वह पूरे होशोहवास में था उसने अपने एल्बम फोल्डर में कुछ फोटो उसके मोबाइल पर शेयर कर दिया ।
रविन्द्र फोटो देखकर एकदम भौंचक्का सा रह गया कोई नहीं कह सकता था कि यह रविन्द्र नहीं है बिल्कुल हू बहू शक्ल सूरत वैसे ही स्टाइल जैसे वो अपने आइने के सामने खड़ा हो ..
अब उसे समझ आया कि आकांक्षा का उसकी तरफ़ आकर्षण किस लिए था रविन्द्र का स्वरूप आकांक्षा के लिए उसकी मृगतृष्णा बन चुकी थी
वह क्या कहता फिर भी उसने दबी जुबान से पूछ लिया।
आखिर कब नमन कहां और किस दुनिया में है और आप से दूर क्यूं.. रविन्द्र ने दबी जुबान से पूछा।
अब वो मुझसे बहुत दूर जा चुके हैं शायद वो जहां से लौटकर न आएं.मगर मैं तुममें नमन को महसूस करती हूं यह मेरी मृगतृष्णा है .. कुछ भी हो जाए मगर तुम मुझे मुझसे यह अहसास कभी मत छीनना कि मेरा नमन इस दुनिया में नहीं है प्यार बनकर नहीं एक दोस्त बनकर .. आकांक्षा ने कहा और उसके आंखों से दोनों कोरो से आंसुओं की धारा बह निकली..
रविन्द्र कुछ न कह सका चुपचाप चल पड़ा क्योंकि घर सुहानी उसका इंतजार कर रही थी वह अब यह सोच रहा था कि आकांक्षा का उसके लिए प्यार नहीं नमन की मृगतृष्णा है ..
समाप्त...
राजन मिश्र
अंकुर इंक्लेव
करावलनगर दिल्ली 94