दिनांक- 04/11/21
विषय- दीपावली महोत्सव
विधा -कविता
जगमगाते दिए जल रहें हैं पंक्ति में
निशा में चंद्रोत्सव हो रहा है
तारो से टिमटिमाता यह तारामंडल
धरा उसकी आज समता कर रहा है।।
अनगिनत दीपों की मल्लिकाएं
महालक्ष्मी के आने की प्रतीक्षा कर रहीं हैं
शायद आज राम अनुज संग लौटे अयोध्या
ऐसा ही हर्षोल्लास मन को हो रहा है ।।
इन माटी के दियों का भाग्य आकर्षक बना
एक बाती घी से इस तिमिर उद्धारक बना
एक दिया उसके लिए आज है ऐसे जलाना
जो सजग प्रहरी देश की सेवा का हो रहा है ।।
निस्वार्थ तन कुछ दिए उनके लिए जलाएं
निश्च्छल मन कुछ दिए उनके लिए जलाएं
जो भूले पथ से लौट कर वापस आ जाएं
हर चौराहे पर दिया ऐसा ही जल रहा है ।।
मन के गहरे तिमिर को करें प्रकाशित
आत्मनिर्भर बनें यूं न किसी पर हो आश्रित
एक दिए से मिटाए कलुषित संस्कारों को
राजन ऐसे दीपोत्सव करने को हो रहा है।।
राजन मिश्र
अंकुर इंक्लेव
करावल नगर दिल्ली 94