विधा-कविता
विषय- तुम देना साथ सदा।
ए प्रीति की रीत चले अनरीति न हो सर्वदा
सुख-दुख जीवन में हो तुम देना साथ सदा।।
इन आंसुओं का बंधन जो नयनों से होता है
खुशियां हो या फिर ग़म दोनों में ही रोता है
दिल धड़कनों का संबंध जीवन के साथ रहे
फिर हंस के जीना होता कैसे जीने का मजा।।
जब जीवन तन्हा था सबकुछ था यूं छुई-मुई
तुम साथ चलते रहते मंजिल सब आसान हुई
अब वही विश्वास लेकर चौराहे पर खड़ा हुआ
थक कर ना गिर जाऊं थामो अब ए हाथ मेरा।।
जीवन की आपाधापी में ही सुकून चला जाता
रिश्तों की भीड़ में यूं खुद ही तन्हा खड़ा पाता
जब से तुम साथ मिले यूं रिश्तों की पहचान हुई
तुम तुम हो न हम हम है हम तुम नहीं है जुदा।।
तुम संग तो फिर हम सब सुख दुःख सह लेंगे
हम अपनी हर पीड़ा को एक दुसरे से कह देंगे
हर मंजिल हासिल होगी यूं प्यारी मुस्कान मिले
राजन खुद से ज्यादा मुझे तुम पर है नाज़ सदा ।
राजन मिश्र
अंकुर इंक्लेव
करावल नगर दिल्ली 94