विसर्जन
सर्वे मंगल मांगलेषु शिवे सर्वाथसाधिके
शरण्ये त्रियवंके गौरी नारायणी नमोस्तुते..
हंसयुक्तेविमानस्ते ब्रह्माणि रूपधारणि कौशंभाक्षरिके देवि नारायणी नमोस्तुते..
आयेतु वर्धा देवि ब्रह्माच्छरवादिनी ग्रहणस्य इहआसनेतु पूंजा स्वीकारस्ये तु माम्..
किसी भी आगंतुक का आगमन हमारे लिए एक सौहार्द्र स्नेह का सूचक होता है हम उससे बहुत कुछ आकांक्षाओं की पूर्ति की कामना रखते हैं उसके बदले उसके स्वागत के लिए पलक पांवड़े बिछाए उसकी प्रतीक्षा भी करते हैं ।
आगमन पर स्वागत और विदाई पर विछोह या हृदय में एक ममता और दुलार सानिध्य का छोड़ जाना और उसके वियोग में विहवल होना और फिर विछुड़ कर अलग होना यह हर जीव का प्राकृतिक स्वरूप है ।
नौरात्रि के महापर्व के प्रारंभ में मां आदिशक्ति अपने पति का गृह कैलाश पर्वत को छोड़ धरती पर अपने भक्तों के बशीभूत हो उनके आवाहन पर उनकेे घर में नौ रूपों नव दिन हर एक शक्ति रूप मे पधारती है और उनको आशीर्वाद देकर उनका कल्याण व मनोकामना सिद्धि करती है ।
भक्ति जन भी प्रथम दिवस में उनका आह्वान कर उनकी पूंजा पाठ अर्चना भजन कीर्तन श्रृद्धा भाव से उनका सत्कार मंत्रोच्चार अर्ध्य धूप दीप नैवेद्य फल फूल यथोचित स्थान पर स्थापित अखंड ज्योति जलाकर जौ बोकर कलश स्थापित करता है ।
प्रथम दिवस शैलपुत्री च द्वितीय ब्रह्मचारिणी तृतीय चंद्रघंटा च कुष्मांडा चतुर्थी पंचमी स्कंदमाता षष्ठी कात्यायनी सप्तमी कालिरात्रि अष्टमी महागौरी नवम् सिद्ध दाती के रूप में महाशक्ति की पूजा अर्चना करके उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं कि मां कल्याणी उनका कल्याण करें ।
सर्वे भवन्तु सुखिना सर्वे संतु निरामया सर्वे भद्राणि पश्यन्ती मां कश्चिद् दुःख भागवेत्..
यादेवि सर्व भूतेशु लक्ष्मी रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः..
और नौ दिन के विधवत पूंजा अर्चना के कन्याओं को भोजन करवाकर फिर मां के बिसर्जन की विधवत प्रक्रिया शुरू करते हैं उनकी विदाई वैसे ही की जाती है जैसे बेटी माता पिता के घर से अपने ससुराल को जाती है ।
आह्वानम् न जानासि न जानामि विसर्जनम् ..
मां के श्रृंगार और स्थापित कलश जौ को एक टोकरी में रखकर मां का विसर्जन किसी बहती नदी में कर के उनसे अपने जीवन में मंगल कल्याण की कामना करते हुए विसर्जन करते हैं।
राजन मिश्र
अंकुर इंक्लेव
करावल नगर दिल्ली 94
9899598187