खाली दिमाग शैतान का घर होता है और आज कल सवर्ण जाति का बच्चा पढ़-लिखकर या तो पुलिस या फ़ौज नौकरी पा जाता है या फिर छुटभैय्ए नेता हो बहुत जल्द अमीर बनने के स्वप्न देखता रहता है।
मगर यह एक कटु सत्य है कि जीवन में किसी भी लक्ष्य को कम समय और अधिक धन प्राप्त करना अपराध की ओर अग्रसर करता है।
विवेक और शिव दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे मगर उनके जीवन की विभीषिका यही थी कि वह उच्च कुल और साधारण परिवार से संबंध रखते थे सरकारी नौकरी उनके भाग्य में नहीं थी।
घर वालों के तानों व अच्छे नंबरों वाली डिग्री के साथ धक्के खाकर खुद भी परेशान हो चुके थे आखिरकार शिव के माता-पिता ने कुछ पूंजी देकर पास के कस्बे में एक पर्चून की दुकान खुलवा दी नमक मिर्च आटा तौलते तौलते उसकी जिंदगी के सपने मिट्टी में मिल चुके थे.।
और विवेक ने अपनी जीवनशैली विल्कुल बदल
लिया था उसने ठेकेदार के यहां नौकरी करते करते खुद ठेकेदार बन गया और फिर धीरे धीरे छुटभैय्ए नेताओं के साथ उठने बैठने के किसी वह बहुत बड़ा नेता बनने का स्वप्न देखने लगा ।
यार विवेक तू तो बहुत बड़ा ठेकेदार बन गया कभी हमारी दुकान की तरफ आ जाया कर .. शिव ने मार्केट में घूमते हुए मिलने पर कहा।
यार देख तू ठहरा एक बनिया किस्म का आदमी और मैं एक नामी गिरामी नेता भू माफिया .. बहुत बड़ लोगों से रोज मिलना जुलना होता रहता है .. इतनी फुर्सत कहां है मेरे पास ..विवेक
ने अपनी बुलेट मोटरसाइकिल खडी करते हुए कहा।
पर मैं एक बनिया ही सही पर कभी तो हम एक दूसरे के अच्छे दोस्त तो थे ..और मैं भी कभी किसी दिन एक बड़ा पूंजीपति साहूकार बन जाऊंगा गाड़ी बंगला कार नौकर चाकरों की भीड़ और शहर में मेरी गिनती अमीर व्यक्तियों में होगी .. तो तू भी याद करेगा मुझे .. शिव ने मुस्कुराते हुए कहा।
दिवा स्वप्न हमने बचपन से बहुत देखे हैं पर अब उसे साकार करने का समय आ गया कि तू साथ दे तो .. विवेक ने शिव के दुकान में पड़े सोफे पसरते हुए कहा ।
देख भाई हमने बड़ मुश्किल से अपनी दुकान दारी जमाई है उससे जो पूंजी और इज्जत कमाई है उसे किसी बेवकूफी की वज़ह से खोना नहीं चाहता ..शिव ने झुलझुलाते हुए कहा ।
पहले बात तो सुन ..फिर बिलबिला पहले कान पास ला एक नया जोर दार प्लान है फिर रातो रात अमीर बन जाएंगे ..विवेक ने उसके कान में पूरा प्लान समझाते हुए कहा ।
शिव ने उस प्लान पर काम करने के लिए मना कर दिया परन्तु यह भरोसा दिलाया कि वैसे हमारी कोई जरूरत हो तो वह उसकी सहायता जरूर करेगा ।
तू सिर्फ इतना कर दे मुझे कुछ मेंबर दिला सकता है तो दिला दे जो अच्छा पैसा इन्वेस्ट कर सके बाकी सब कुछ मै संभाल लूंगा .. शिव से कहा ।
देग भाई में उनका नाम बता दूंगा पर मैं किसी की गारंटी न लूंगा न दूंगा क्योंकि यह एक फ्राड काम करने को सोच रहा है जिसके मैं खिलाफ हूं .., शिव ने विवेक को समझाते हुए कहा ।
विवेक ने एक चिटफंड कंपनी क्रियट कर उस पर काम करना शुरू कर दिया उसका मुनाफा दो साल में ही उसके दिवा स्वप्न को पूरा करने के लिए काफी था..
परन्तु विवेक इतने में शांति होने वाला नहीं था और उसने एक दिन वही किया जिसकी शिव को उम्मीद थी वह एक दिन लोगों का पैसा लेकर दूसरे शहर में फरार हो गया..
आज दस साल के करीब हो गये उस दिवा स्वपन चिटफंड के आफिस में ताला लगे हुए लोग इस बात को नहीं भूले कि उसी के कस्बे का एक विश्वसनीय घराने का संस्कारी लड़का कैसे लोगों को दिवास्वप्न दिखा कर नौ दो ग्यारह हो गया।
और शिव अपनी छोटी सी दुकान को एक बहुत बड़ी फर्म के रूप में स्थापित कर अपने पिता का नाम रोशन कर रहा था शहर में एक बहुत बड़ा बंगला दो चार नौकर मोटर गाड़ियों की कतार ..
शायद उसका दिवास्वप्न यही था जो पूरा हो चुका था..
और विवेक हर दो तीन साल बाद एक दूसरे शहर में वही बिजनेस ..चोर खानाबदोशों की तरह शायद उसका वही था दिवास्वप्न..
राजन मिश्र
अंकुर इंक्लेव
करावल नगर दिल्ली 94
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