बड़े खुशनसीब होता सबका मन
बचपन न जाए ए मन की कहानी
हम बच्चे रहें ख़ुश भरा रहे जीवन
बचपन न बीत जाए न छुए जवानी ।।
वज़ह बेवजह रूठना और मनाना
कभी धींगामुश्ती वो रोना रूलाना
कभी बापू की डांट मां की बलाएं
कहां वैसा बचपन कहां वो कहानी।।
कहीं गिल्ली डंडा कहीं दो पचपन
उछलते कूदते दौड़ते जाता बचपन
बालू के घरौंदे गुड्डे-गुड़ियों के खेला
कागज की कश्ती बारिश का पानी ।।
न खाने की चिंता न पाने की इच्छा
न भेदभाव ऊंच नीच गैर की भिक्षा
खुला आसमान व धरा नापते रहना
ए बचपन था यारो न कुढती जवानी ।।
न द्वेषपूर्ण जीवन न ईष्र्या किसी से
पल में रूठना और मिलना हंसी से
नहीं दुनियादारी की पाठशाला जाएं
राजन बीता कब बचपन आई जवानी ।।
राजन मिश्र
अंकुर इंक्लेव
करावल नगर दिल्ली 94