विषय-नैना देख रहे रास्ता
विधा-कविता
हे प्रिय क्या तुम भूल चुके हो मुझको
क्या अपना प्रेम पंथ था इतना सस्ता
कुसमय सा यौवन बीता आया बुढ़ापा
अब तक ए दोनो नैना देख रहे हैं रास्ता ।।
बस कल कहकर छोड़ गये थे तुम ऐसे
बन जाते लक्ष्मण ने उर्मिला छोडा जैसे
वह तपस्वनी सह गई चौदह वर्षों तक
उन्हें राम लक्ष्मण के आने का आस था ।।
तुम मोहन मै न बन सकी उर्मिला जैसी
तुम कुब्जा संग प्रीति रचाए मैं राधा वैसी
इन नैनो की गुस्ताखी तुम उनमें थे समाए
तुम कब आओगे ए है उस प्रेम का वास्ता ।।
क्या उन सपनों की कभी ए जीत न होगी
तुम बिन जीवन में कोई भी संगीत न होगी
राजन अब कब तक हम देखेंगे वो गलियां
जिसके बिना यह जीवन का है सूना रास्ता ।।
राजन मिश्र
अंकुर इंक्लेव
करावल नगर दिल्ली 94
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