विषय- धूप
विधा-कविता
बंद कर लो एक मुठ्ठी धूप फिर
गरीब को सर्दियों में अनोखी भेंट दो
काम आएगी बहुत शिशिर ऋतु में
खुली दरबाजे खिड़कियां समेट लो ।।
ठंड की ठिठुरन सताएगी जब यूं
चार दिन बाद जब आगुंतक होगे सूर्य
याद आयेगी बहुत गर्म शाल रजाईयां
तब तलक गर्मी से यूं ही भेट लो ।।
सड़क किनारे औंधे अकडे पड़े
फटी चादरो में सिकुड़ते बदन
वक्त मिले तो बंद मुट्ठी खोल देना
उन्हें सस्नेह से धूप से लपेट लो ।।
क्या पता किस वक्त बदले मौसम
फिर न आए काम समेटी धूप
ग्रीष्मकालीन में झुलसाती है ऐसे
बेरूखी बेजुबान धूप को उचेट लो ।।
बहुत सुहानी लगती सर्दी की धूप
पसीने से नहलाती है ग्रीष्म की धूप
हर वक्त जीवन में समानता न रखती
राजन वक्त मिलें तो इसे चपेट लो ।।
राजन मिश्र
अंकुर इंक्लेव
करावल नगर दिल्ली 94