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‼ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼
🏹 *अर्जुन के तीर* 🏹
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*समाज में एक सूक्ति प्रसिद्ध है "विनाशकाले विपरीत बुद्धि:" यह अकाट्य तथा सार्वभौमिक सत्य है | मनुष्य जिसका सहारा लेकर किसी प्रतिष्ठित स्थान पर स्थापित हो जाता जब उसी की निन्दा करने लगे तो यह समझ जाना चाहिए कि अब उसका पतन प्रारम्भ हो गया है | ऐसे लोग समाज के एक वर्ग का विरोध भी सहन करते हुए स्वयं को प्रतिष्ठित करते रहते हैं परंतु सत्य यह है कि उनका वह सम्मान कदापि नहीं रह जाता | मनुष्य के पतन का अर्थ नहीं हुआ कि उसकी मृत्यु ही हो जाय | वास्तविक पतन तो वही है कि किसी सम्मानित व्यक्ति को लोग अपनी नजरों से गिरा दें | जिसका सामाजिक पतन हो जाता है वह जिन्दा रहते हुए भी मृतप्राय ही रहता है |*
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*शुभम् करोति कल्याणम्*
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