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‼ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼
🏹 *अर्जुन के तीर* 🏹
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*मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है यहाँ एक दूसरे का सहयोग लेकर ही जीवन यापन होता है ! कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो कि बहुत दूर के होते हुए भी अपवे सगे से भी अधिक प्रिय हो जाते हैं | मनुष्य एक दूसरे से अपनी बात साझा करके अपने हृदय का बोझ हल्का करता है | इतना प्रेम एवं इतनी समीपता होने के बाद भी आज के युग में किसी को उसकी गल्ती नहीं बताने वाला है | क्योंकि यह प्राय: देखा जा रहा है कि यदि किसी प्रिय को आप यह कह दें कि आप यह गलत कर रहे हो , समाज में इसके कारण आपकी छवि धूमिल होगी ! तो वह अपनी भूल सुधार न करके आपसे ही दूरी बनाने का प्रयास करने लगता है ! सारा प्रेम - स्नेह एवं समीपता काफूर की भाँति उड़ जाती है | इसीलिए आज के युग में चाटुकारों की चाँदी है तथी पग पग पर सचेत करते रहने वालों को दोषी मानकर उपेक्षित कर दिया जाता है | यह मनुष्य की मानसिकता का प्रभाव माना जाय या कि कलियुग का ? यह विचारणीय विषय है |*
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*शुभम् करोति कल्याणम्*
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