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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🟣 *श्री हनुमान चालीसा* 🟣
*!! तात्त्विक अनुशीलन !!*
🩸 *भाग - तृतीय* 🩸
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*गतांक से आगे :--*
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*द्वितीय भाग में आपने पढ़ा :--*
*श्री एवं गुरु* की व्याख्या ! अब प्रस्तुत है :---
*चरण*
*"चरण"* अर्थात पद ! पूज्यनीयों के चरणों की ही पूजा होती है | अत: पूज्य भाव से स्मर्ण में गोस्वामी जी ने *"श्री गुरु चरण"* ही लिखा | सभाओं में विराजमान पूज्य व्यक्तियों को वक्ता लोग सम्मान से पूज्य भाव बनाने के लिए पद (उपाधि) नाम के साथ चरण शब्द से युक्त ही सम्बोधन करते हैं | यथा :- "पूज्य आचार्य चरण" या श्री गुरु चरण आदि | चरण क्या है ?
*"चरति अनेन् इति चरण:"*
अर्थात :- जिससे चला जाता है वह है *चरण* ! गमनागमन की क्रिया जिस अंग से होती है उसे *चरण* कहा जाता है | *"चर"* व्यवहार के अर्थ में भी प्रयोग किया जाता है | किसी भी आकाश , अवकाश या परिस्थितियों में जब कोई व्यवहार सहज ही होता है तो उस व्यवहार करने वाले व्यक्ति को उसका गुणवाचक नाम उसी आधार पर दिया जाता है | यथा :-- आकाश में चलने फिरने या व्यवहार करने वाले को *"खेचर"* , रात्रि में विचरण करने वाले को *"निशाचर"* , दिन में चलने फिरने व व्यवहार करने वाले को *"दिनचर"* , जिससे कोई व्यवहार न हो वह *"अचर"* और जो चल फर कर व्यवहार कर सके उसे *"सचर"* कहा जाता है | इस प्रकार व्यवहार करने की क्रिया को चरन् *(चरण)* कहा जाता है ! जैसे :- *विचरण* |
यहाँ तुलसीदास जी ने *"श्री गुरु चरण"* से गुरु के स्वरूप का वर्णन भी किया है जो कि निरन्तर आध्यात्म या परमात्म में ही लीन रहते हैं | यथा :- *श्री* (लक्ष्मी) *गुरु* (लक्ष्मी जी के गुरु /पति) अर्थात श्री विष्णु जी जो कि परमात्म तत्त्व हैं उसी में निरन्तर विचरण करते हैं | अथवा वह मार्ग या सिद्धान्त जिसमें *श्री गुरु* चलते हैं अर्थात सनातन धर्म श्रुति सिद्धान्त आदि | इस मार्ग (सिद्धान्त) पर चलकर ही जीव का कल्याण हो सकता है अत: यही मार्ग - चरण (चलने योग्य पथ) है | यथा :- *"महाजनो येन गत: सपन्था:"* यत: जो भगवान विष्णु शिवादि का धर्म है वह *"श्री गुरु चरण"* से (श्रुति सिद्धान्त पर चलने से) ही प्राप्त हो सकता है | यथा :--
*एहि कर फल पुनि विषय विरागा !*
*तब मम धर्म उपज अनुरागा !!*
रघुनाथ जी का यश कहना है *वरणौं रघुवर विमल यश* अत: वह *श्री गुरु चरण* ही तो है फिर उसका ध्यान - स्मरण तो करना ही होगा | किसी भी पदार्थ का वर्णन करते समय उसका ध्यान - स्मरण तो होता ही है | भगवान श्री राम के चरित कथा जब भगवान शंकर माता पार्वती से कहने लगे तो पहले चरित्रों का स्मरण किया ! तभी वे कथा सुना पाये | यथा :-
*सुमिरत राम चरित हिय आये !*
अतएव यहाँ भी तुलसी बाबा की *"वरणौं रघुवर विमल यश"* की प्रतिज्ञा है जिनका ध्यान करना परम आवश्यक है | कहने का भाव यह है कि *"श्री गुरु चरण"* स्मरण से ही भगवान की लीलायें जानी जा सकती हैं क्योंकि दोनों एक ही हैं | जैसे :-
*सोइ जानइ जेहि देहुँ जनाई !*
*जानत तुम्हहिं तुमहिं होइ जाई !!*
*"श्री गुरु"* का भाव यदि भगवान विष्णु (श्री लक्ष्मी जी के गुरु) से लिया जाय तो भी किसी भी पावन कर्त्तव्य के पूर्व मन को शुद्ध करने के लिए *" अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थांगतोपि वा ! य: स्मरेत् पुण्डरीकांक्ष स: वाह्याभ्यान्तर: शुचि: !!* कहकर भगवान विष्णु का ही स्मरण किया जाता है | गुरु को भगवान विष्णु के सदृश मानकर यहाँ *श्री गुरु चरण* की प्रार्थना की गयी है |
*शेष अगले भाग में :-----*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
पुराण प्रवक्ता/यज्ञकर्म विशेषज्ञ
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्या जी
9935328830
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