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‼ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼
🏹 *अर्जुन के तीर* 🏹
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*मानव जीवन में सबसे महत्वपूर्ण है मनुष्य की वाणी एवं व्यवहार | प्राय: मनुष्य अपने शत्रु एवं मित्रों की गिनती किया करता है | शत्रु एवं मित्र का निर्धारण या प्राकट़्य मनुष्य के व्यवहार से ही होता है | अपने व्यवहार से ही मनुष्य को शत्रु एवं मित्र प्राप्त होते रहते हैं | आज लोग अपनी वाणी को संयमित नहीं रख पा रहे हैं जिससे कि आपस में वैमनस्यता एवं मनमुटाव अधिक बढ़ रहा है | इसी वैमनस्यता की खांईं जब चौड़ी हो जाती है तो वह शत्रुता में परिवर्तित हो जाती है | मनुष्य को अपने व्यवहार एवं वाणी का आंकलन करते रहना चाहिए |*
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*शुभम् करोति कल्याणम्*
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