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‼ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼
🏹 *अर्जुन के तीर* 🏹
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*मानव जीवन कर्माधीन है ! जिसका जैसा कर्म होता है उसको वैसा ही फल प्राप्त है | जिस प्रकार खेत में बीज डालने पर कोई तो शीघ्र जम जाता है परंतु कोई बीज ऐसा भी होता है जिसको जमने में समय लगता है उसी प्रकार कर्म का फल भी होता कुछ तो तुरंत फल प्रदान करते हैं कुछ के फल कुछ दिन बाद मिलता है | मनुष्य अपने कर्मों को न देखकर इच्छित फल न मिलने पर ईश्वर को दोष देता है ! जबकि ईश्वर ने तो सबको बराबर की शक्ति दे रखी है | ईश्वर द्वारा प्रदत्त कर्मरूपी अस्त्र से कोई इस संसार को जीत लेता है और कोई उसी अस्त्र से आत्महत्या भी कर लेता है | तो इसमें ईश्वर को दोषी कैसे माना जा सकता है ?*
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*शुभम् करोति कल्याणम्*
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