*हमारा देश भारत आदिकाल से दिव्य ऋषि - मुनियों का देश रहा है | ऋषि - मुनियों ने सदैव मानव मात्र के कल्याण के लिए ही समस्त ज्ञान प्रसारित किया है | हमारे ग्रन्थों में स्थान - स्थान पर मनुष्यों के लिए दिशा - निर्देश प्राप्त होते हैं | इस संसार का आदिग्रन्थ स्वयंभू वेदों को माना जाता है | हमारे चारों वेद (ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद एवं अथर्ववेद) मनुष्य को जीवन जीने की कला तो सिखाते ही हैं साथ ही हमारे उपवेद (धनुर्वेद , आयुर्वेद आदि ) मानव को शरीर की समाज की रक्षा तथा उसके स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने का उपाय बताते हैं | आयुर्वेद प्राकृतिक औषधियों पर आधारित चिकित्सा शैली है | कोई ऐसा रोग नहीं है जिसकी चिकित्सा यहाँ न प्राप्त होती हो | हमारी प्राकृतिक सम्पदाओं में अनेक औषधियाँ भरी पड़ी हैं | जिनका प्रयोग हमारे पूर्वज गम्भीर से गम्भीर बीमारियों में करते आये हैं और उनका आश्चर्यजनक परिणाम भी देखने को मिलता था | हमारे देश में युद्ध होते रहे हैं तब एलोपैथी का विकास नहीं हुआ था तब हमारे राजवैद्य इन्ही दिव्य औषधियों से घायलों की चिकित्सा करते थे और औषधियों की इतनी दिव्यता होती थी कि घायल दूसरे दिन पुन: स्वस्थ होकर युद्ध करने के लिए तैयार हो जाया करते थे | मनुष्य के जीवन में प्राण फूंकने वाली यह औषधियाँ सबको तो नहीं पता होती थीं परंतु कुछ औषधियाँ हमारे आसपास ही रहती हैं | तुलसी , नीम , गिलोय , पीपल , बरगद आदि तथा कुछ औषधियाँ हम नित्य घरों में प्रयोग करते हैं जैसे :- लौंग , जीरा , अजवायन , हल्दी आदि देखने में तो सिर्फ मसाला लगते हैं परंतु इनके दिव्य गुण भी थे | मनुष्य ने अपने विकास क्रम में जब एलोपैथ का आविष्कार किया तो ये औषधियाँ मनुष्यों के मस्तिष्क से लुप्त होती गयीं और मनुष्य आधुनिक चिकित्सा पद्धति (एलोपैथ) का गुलाम होता गया | एलोपैथ का आविष्कार करके मनुष्य स्वयं को धनवंतरि से भी श्रेष्ठ समझने लगा | मनुष्य आज अपने धर्मग्रन्थों एवं उनमें वर्णित जीवन रक्षक प्रणालियों की ओर देखना ही नहीं चाहता है परंतु समय का चक्र अपनी गति से घूमता है | आज हम जिस महामारी से संघर्ष कर रहे हैं वहाँ मनुष्य का आविष्कार अर्थात एलोपैथ स्वयं में किंकर्तव्यविमूढ़ सा हो गया है | कोरोना नामक संक्रमण ने एलोपैथ को परास्त कर दिया है आज मनुष्य पुन: आयुर्वेद की ओर लौटने को विवश दिख रहा है |*
*आज जिस संक्रमणीय रोग (कोरोना) से सारा विश्व जूझ रहा है और दिन - प्रतिदिन जीवन समाप्त होते जा रहे हैं ऐसे में स्वयं को असहाय पा रहा मनुष्य कुछ भी कर पाने में अक्षम है | अपने प्रियजनों के शव पर विलाप करने के अतिरिक्त आज हम कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं | आज यदि हमारी यह स्थिति हुई है तो उसका एक ही कारण है कि हमने आहार - विहार , आचार - विचार का त्याग कर दिया है जिसके परिणामस्वरूप हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता मृतप्राय हो गयी है | आज इस प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए भारत सरकार का आयुष मंत्रालय भी आयुर्वेद का सहारा लेने पर विवश है | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि आज मनुष्य का आहार ऐसा हो गया है कि वह स्वयं नहीं जान पाता कि वह क्या खा रहा है | ऐसे में हमें अपने साथ प्रियजनों का जीवन सुरक्षित रखने के लिए आयुर्वेद एवं घरेलू उपायों को अपनाना ही चाहिए क्योंकि जब आधुनिक चिकिसा पद्धति असहाय हो गयी है तो प्राचीन चिकित्सा पद्धति को अपनाना ही चाहिए | आज अपने शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने की आवश्यकता है और उसके लिए अनेक उपाय हमें आयुर्वेद में देखने को मिलते हैं | आज आवश्यक है कि हम पुन: अपने पूर्वजों की चिकित्सा पद्धति की ओर वापस चलें जहाँ बताया गया है कि संक्रमण से बचने के लिए मुनक्का, काली मिर्च, सौंठ, अदरक, तुलसी, दालचीनी, बड़ी इलायची का काढ़ा बनाकर प्रयोग करें | काढ़ा बनाने के लिए एक गिलास पानी में उपरोक्त द्रव्यों को पकायें और एक चौथाई शेष रहने पर छान कर उपयोग करें | तुलसी और अदरक की चाय बनाकर पिएं | प्रतिदिन सुबह-शाम तिल तैल की दो-दो बूँदें प्रत्येक नासिका छिद्र में डालें | दूध में आधा चम्मच हल्दी मिलाकर प्रतिदिन पियें | तिल तैल या नारियल के तेल को मुंह में भरकर कुछ समय रखें फिर इसे थूक दें और गरम पानी से कुल्ला कर लें | यदि गले में खराश हो तो लौंग के चूर्ण में शहद मिला कर लें | कफ हो तो पुदीने के पत्तों की भाप लें | यह सब उपाय घरेलू एवं कम खर्चीले होने के साथ ही मनुष्य के लिए उपयोगी भी हैं , परंतु हम तो इतने आधुनिक हो गये हैं कि इन औषधियों की ओर देखना ही नहीं चाहते | जब संसार में जीवन बचाने के लिए कोई उपाय न दिखे तो हमें अपने वेदों में वर्णित जीवन रक्षक उपायों का सहारा लेना ही चाहिए | आईये आज पुन: अपनी वैदिक जीवन शैली की ओर लौट चलें ! इसी में जीवन का कल्याण है |*
*जब जब इस धरती पर मनुष्य ने स्वयं को ईश्वर व प्रकृति से भी श्रेष्ठ मानने का गर्व किया है तब तब इस प्रकृति मे मनुष्य को गोड़ सिग्ध करके अपनी श्रेष्ठता स्थापित की है | आज पुन: वही देखने को मिल रहा है |*