*संसार में वैसे तो अनेक प्रकार के धर्म देखे जाते हैं ! इन धर्मों को मानने वालों की संख्या भी बहुत अधिक है जो अपने - अपने धर्म के लिए प्राण लेने और देने के लिए भी तैयार होते दिख जाते हैं | परंतु ऐसा करने वाले शायद धर्म की परिभाषा ही नहीं जानते | इन सभी प्रकार के धर्मों से ऊपर भी एक धर्म है जिसे मानवधर्म कहा जाता है | आदिकाल से लेकर अभी कुछ समय पहले तक लोग मानव धर्म का पालन भी करते देखे जाते रहे हैं | मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है ! समाज में अनेकों प्रकार के संकट समय - समय पर प्रकट होते रहे हैं ऐसे में लोग अपना धर्म भूलकर एक दूसरे की सहायता तो करते ही थे साथ ही किसी के प्राण बचाने के लिए अपने प्राणों की बाजी भी लगा दिया करते थे | अपनी इसी मानवता के लिए ही हमारे देश भारत की एक अलग पहचान समस्त विश्व में थी | मानव हृदय में दया , करुणा , प्रेम , एक दूसरे के प्रति समर्पण की भावना आदि यदि कहीं देखने को मिलती थी तो वह था हमारा देश भारत | कौरवों द्वारा भरी सभा में द्रौपदी का चीर हरण करने के बाद अनेकों र्रकार के कष्ट पाण्डवों को दिये गये परंतु जब युद्ध का समय आया तो अर्जुन ने अपना गांडीव रख दिया | इसे लोग अर्जुन का मोह कहते हैं परंतु यहाँ मानवधर्म भी स्पष्ट दिखाई पड़ता है | अपने ही स्वजन , सगे - सम्बन्धी का वध करके कौन सा राज्य भोगना है | परंतु दुराचारियों को दण्ड देना भी अनिवार्य था इसलिए महाभारत का युद्ध हुआ | हमारे शास्त्रों में लिखा है :- "नहिं मानववात् श्रेष्ठतरं हि किंचित" अर्थात सृष्टि में मानव से अधिक श्रेष्ठ और कोई नहीं है | इस पृथ्वी पर आकर मनुष्य समय के साथ पहले सनातन धर्म फिर अनेकानेक धर्म का अनुयायी बना , परंतु पुन: बताना चाहूँगा कि इन सभी धर्मों से उठकर के मनुष्य का पहला धर्म है मानव धर्म | क्योंकि जब जीव एक बार मानव जीवन में आ जाता है तो मानवता उससे स्वयं जुड़ जाती है , और प्रत्येक मनुष्य को इस मानवता का सदैव ध्यान रखना चाहिए , उससे अलग हो जाने पर मानव जीवन की सार्थकता समाप्त हो जाती है | किसी अन्य को संतप्त , कुंठित और प्रताड़ित करके कोई भी धर्म या संप्रदाय सम्माननीय नहीं हो सकता | मनुष्य का धर्म है अपने द्वारा कभी किसी को कोई कष्ट ना हो , क्योंकि हमारे मनीषियों ने उद्घोषणा की है :-- "ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किंचित जगत्यां जगत्" अर्थात :- इस पृथ्वी पर जो भी चराचर वस्तु है वह सब ईश्वर से आच्छादित है | तो जब सब में ईश्वर है तो किसी को कष्ट पहुंचाकर के एक तो मनुष्य मानव धर्म के विपरीत जाता है दूसरे वह ईश्वर का भी अपराधी बनता है | मानव धर्म वह व्यवहार है जो मानव जगत में परस्पर प्रेम , सहानुभूति , एक दूसरे का सम्मान करना आदि सिखा कर हमें उच्च आदर्शों की ओर ले जाता है | किसी भी धर्म का अनुयायी हो उसे सर्वप्रथम मानव धर्म का पालन करना चाहिए क्योंकि मानव धर्म का पालन किए बिना किसी भी धर्म का पालन करना असंभव है |*
*आज लोग अपने अपने धर्म का पालन करने में धर्मान्ध हो गये हैं और आज मानवधर्म रो रहा है | आज समस्त विश्व के साथ-साथ हमारा देश भा एक अज्ञात एवं अदृश्य शत्रु (कोरोना वायरस) से लड़ रहा है | लोगों के समक्ष उनके प्रियजन , सगे - सम्बन्धियों के शव गिरते जा रहे हैं | चारों ओर हाहाकार मचा हुआ है | मानव समाज तो रुदन कर ही रहा है परंतु उनसे कहीं अधिक आज मानवता लज्जित होकर रुदन कर रही है | संकट के इस वीभत्स समय में भी कुछ लोग मनुष्य के प्राणों का सौदा कर रहे हैं | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" देख रहा हूँ कि आज किस प्रकार मनुष्य निर्लज्ज बनकर आपत्ति के इस समय में भी अवसर ढूंढ़ रहे हैं | जहाँ एक ओर लोग ऑक्सीजन , दवा एवं चिकित्सा न मिल पाने के कारण प्राण त्याग रहे हैं वहीं दूसरी ओर कुछ मानवता के शत्रु इन जीवनदायिनी औषधियों एवं प्राणवायु (ऑक्सीजन) की कालाबाजारी कर रहे हैं | चिकित्सक लोगों को चिकित्सा देने के नाम पर मुंहमांगा दाम ले रहे हैं | स्वर्ग विमान या एम्बूलेंस वाले मनमानी करते हुए लोगों की विवशता का दाम वसूल रहे हैं | इतना सब करने वाले भारत के ही नागरिक हैं ! सरकार द्वारा अनेक उपाय करने के बाद भी मानवता के इन दुशमनों के कृत्य हमें लज्जित कर रहे हैं और दोषी सरकार को मानते हैं | आज मानवता का पाठ पढ़ाने वाले धर्मगुरु कहाँ चले गये हैं ? आज जो अपने आपको धर्म का ठेकेदार मानते हैं उनको क्या अपने धर्मावलम्बियों के यह कुकृत्य नहीं दिखाई पड़ रहे हैं ? विचार कीजिए कि यह सृष्टि कर्मप्रधान है जो जैसा करेगा उसको वैसा ही भुगतना भी पड़ेगा | परंतु आज मनुष्य पाप - पुण्य का विचार न करके सिर्फ और सिर्फ धन कमाने में लगा हुआ है | जब ईश्वर की लाठी उठती है और चलती है तो उसमें आवाज नहीं होती | आज जो लोग दूसरों के शव पर धन कमा रहे हैं कल उनके साथ भी वही होना ही है परंतु आज मनुष्य को यह दिखाई ही नहीं पड़ रहा है | ऐसा करने नित्य पकड़े भी जा रहे हैं परंतु विचारणीय यह है कि क्या आज मानव हृदय से मानवता बिल्कुल समाप्त हो गयी है | एक तरफ तो हाहाकार मचा है और दूसरी ओर आपदा को अवसर में बदलकर सम्पूर्ण मानव समाज को छलने वाले लोग भी हैं | ऐसे में दोषी किसे माना जाय ? देश की सत्तासीन सरकार को या कि मानवता को शर्मसार करने वाले इन पापाचारियों को | ऐसे लोगों को चिन्हित करके ऐसा दण्ड देना चाहिए कि इनके विलाप को सुनने वाला भी ऐसा कुकृत्य करने से घबराने लगे | समाज के ऐसे दुशमनों को समाज से बहिष्कृत कर देना चाहिए | प्रत्येक मनुष्य को सर्वप्रथम मानवधर्म का पालन करना चाहिए | बिना मानवधर्म का पालन किये किसी भी धर्म का पालन हो ही नहीं सकता |*
*आज समाज एक विपत्ति से जूझ रहा है ऐसे में प्रत्येक मनुष्य को अपने आसपास जरूरतमन्दों की सहायता एवं सेवा का अवसर ढूंढ़ना चाहिए | इस समय तो सबसे बड़ा मानवधर्म यही है कि लोग अपने घरों में सुरक्षित रहें |*